संकट में सबसे बड़ा साथी पैसा होता है
Sunday, March 20, 2011
तय है आज लीबिया...कल कश्मीर
अमरीका ने अफगानिस्ता:न और इराक से शायद कुछ सबक नहीं
सीखे। इराक में सद्दाम हुसैन को सत्ता से हटाने के लिए समूची दुनिया से सब कुछ झूठ
बोला गया। इराक में परमाणु हथियार है, जैविक हथियार है, सद्दाम सब को मार देंगे।
इराक में परमाणु निरीक्षण के बहाने उस पर झूठे आरोप लगाए गए। सारे के सारे
अंतरराष्ट्री य निरीक्षक अमरीका की रोटियों पर पलने वाले दलाल थे। यूरोप के इशारों
पर नाचने वाले भांड थे। इराक की बेबिलोन संस्कृयति वाले पूरे इराक को ऐसी आग में
झोंक दिया, जो कभी नहीं बुझ सकती। बरसों लगेंगे, फिर से इराक में अमन चैन कायम करने
के लिए। अफगानिस्ताभन के राष्ट्रंपति हमीद करजई तो अमरीका की बैसाखी के बगैर दो दिन
नहीं चल सकते। तालिबान आज भी उन्हें् कुर्सी से उतारकर भाग खड़ा होने पर मजबूर कर
देगा।
बराक ओबामा के आने के बाद यह आस बंधी थी कि दुनिया में अमन चैन लौटेगा। मार्टिन लूथर किंग से जिस व्यनक्ति की तुलना की जा रही थी, एक अश्वे त जिस तरह से अमरीका का राष्ट्र पति बना और वाही वाही की जा रही थी, वह सब अब खत्मू हुआ। दुनिया को भाषण देने की आड़ में शायद एक कुटिल चाल तैयार की जा रही थी। दुनिया के प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जाम करने और मध्य पूर्व और अफ्रीका के कुछ हिस्सोंू को कमजोर कर एशियन टाइगर से बुरी हालत करने के लिए अमरीकी बेताब नजर आ रहे हैं।
टयूनिशिया में सत्ता परिवर्तन का चक्र भी अमरीका की देन है। विद्रोही इसने ही खड़े किए। फिर यह प्रयोग इजिप्तस में दोहराया गया। और अब लीबिया निशाने पर है। यह सही है कि जुल्मय का विरोध होना चाहिए और जनता के साथ कुछ भी गलत हो रहा हो तो उस देश की जनता को ही खड़ा होना चाहिए एवं लड़ाई लड़नी चाहिए लेकिन दूसरे देशों का हस्तेक्षेप नहीं होना चाहिए। लेकिन लीबिया के सहारे अपनी अर्थव्यदवस्थाप को मजबूत करने, मध्यह पूर्व व अफ्रीका में पकड़ बनाने एवं लीबिया के तेल को हड़पने के लिए अमरीका ने अपने चमचा देश ब्रिटेन, फ्रांस को साथ लेकर उस पर हमला बोल दिया। संयुक्ती राष्ट्रे संघ की लाचारी देखकर लगता है कि यह संघ अमरीका जैसे गुंडे देशों का संघ बन गया है जो जब चाहे मनमाने प्रस्ता व पास करा सकता है। जब चीन, भारत सहित पांच देशों ने लीबिया के खिलाफ लाए गए प्रस्तारव पर मतदान में हिस्सा। नहीं लिया तो उनकी बात को अनसुना कर प्रस्ता व पारित क्योंे कर दिया गया।
फ्रांस ने पहल की लड़ाई की और सबसे पहले हमला भी उसने किया। वह शायद भूल गया है कि नस्त्रो दामस जैसे भविष्य वेता ने अगली लड़ाई फ्रांस की धरती पर ही लडे जाने की भविष्य वाणी की थी। अमरीका व यूरोप क्यों इस्लाम धर्म वालों को भड़काने की कार्रवाई करते रहते हैं। हर इस्लायमिक राष्ट्रस पर हमला। इस्लाम वालों ने दुखी होकर ही अल कायदा जैसे संगठन बनाए जो हर संभव लड़ाई लड़ रहे हैं। गद्दाफी को क्योंं यह कहना पड़ा कि वे अल कायदा से दोस्तीर कर सकते हैं। अमरीका और यूरोप का ईसाई समुदाय शायद इस्लाडम वालों को चैन से जीने नहीं देना चाहता। जबकि वे ईसा मसीह के सिद्धांतों पर खुद नहीं चल रहे।
लीबिया का तेल हड़पने के लिए बैचेन अमरीका और यूरोप पर विश्वि समुदाय को मिलकर आवाज उठानी चाहिए। खुद अरब जगत को पहल करनी चाहिए लेकिन सऊदी अरब ने पूरे मध्यि पूर्व देशों के साथ धोखा किया है। अमरीका को अपने यहां सैनिक अड्डे बनाकर दिए है। लीबिया को तबाह करने के षडयंत्र में शामिल है। सऊदी अरब खुद चाहता है कि इराक के बाद ईरान तबाह हो जाए। लेकिन वह यह भूल रहा है कि यही आग उसे भी खत्मै कर देगी।
अमरीका की संयुक्त राष्ट्री संघ में चल रही दादागिरी को सहने से अच्छाअ है विश्व> के कई सदस्य देश इससे अपना नाता तोड़ नया संघ बना ले। अमरीका को विश्वो समुदाय से अलग थलग करने के प्रयास किए जाने चाहिए। लेकिन हिम्मात नहीं है किसी में। हमारे देश में सरकार को बचाने के लिए चार सांसदों को 40 करोड़ दिए जाने का जो खुलासा हुआ और भाजपा के महान नेता लाल कृष्णा आडवाणी की परमाणु संधि पर दोगलेपन की जो पोल खुली उससे पता चलता है कि अमरीका अपनी दबंगता हमारी संसद में चलाता है। वित्त मंत्री कौन बनना चाहिए, कौन नहीं और प्रणब मुखर्जी क्यों बन गए, वे क्याी करेंगे, किसके खास है, यह पूछने वाला अमरीका होता कौन है। हमारा देश है, हम चाहे जो फैसले लें, अमरीकी गुंडागर्दी को क्यों सहे।
जापानी परमाणु बिजली संयंत्रों की बुरी दिशा से कोई सबक लिए बगैर हमारी सरकार जैतापुर में परमाणु बिजली संयंत्र लगाने पर अड़ी हुई है। आम आदमी के विरोध को दबाया जा रहा है। हर नेता वहां जा जाकर लोगों को समझा रहा है कि यह संयंत्र लगने दो। संयंत्र की आड़ में भ्रष्टा चार भी तो करना है। परमाणु बिजली घर लगाओ, ताकि यूरोप का फायदा हो, अमरीका को लाभ हो। ईंधन के लिए इन्हीं देशों पर निर्भर रहे, जब चाहे तब ईंधन दें और चाहे तो न दें। करोड़ों का कारोबार यूरोप व अमरीका को मिल गया।
देश के मौजूदा शासकों में यह देखना चाहिए कितने नेता भारत के बजाय अमरीकी व यूरोपीय हित चिंतक हैं। देश हमारा, चिंता अमरीका व यूरोप की। जमीन से ज्या दा बाजार की लड़ाई में भारत भी यूरोप व अमरीकी कंपनियों का बाजार बन गया है। आज किसी नेता में दम नहीं है कि वह कोका कोला जैसी कंपनी का बोरिया बिस्तबर गोल कर दें। इन कंपनियों के बिस्तहर गोल करके देखों, अमरीका व यूरोप भारत को भी लीबिया,ईरान बनाने से परहेज नहीं करेंगे। ईरान के साथ देश की कंपनी रिलायंस के संबंध को लेकर अमरीका ने एतराज किया, म्या मांर से भारत के संबंधों पर उसे परेशानी है, लेकिन हमारी सरकार कुछ करने की बात तो छोडिए जोर से चिल्ला भी न सकी। ऐसी ही कोई बात चीन से करके देखिए मुंह तोड़ जवाब देता। चीनी सरकार कैसी भी हो, उसकी कई बार आलोचना भी होती है लेकिन वह अपने देश के हितों से बड़ा कुछ नहीं देखती यह उसकी खूबी है। चीनी लोग अपने देश से प्यािर करते हैं। चीनी सरकार अपनी सरकार की तरह लाचार नहीं है।
अमरीका व यूरोप ने इराक, अफगानिस्तासन, इजिप्तन, लीबिया में जो आग लगाई वह देर सवेर भारत भी पहुंचेगी। पाकिस्ता,न तो चाहता ही है कि कश्मीरर के मामले पर अमरीका हस्तिक्षेप करे। लेकिन वह कर नहीं रहा, इसका मतलब यह न निकालें कि अमरीका हमारे पक्ष में है। अमरीका किसी के पक्ष में नहीं है। जब उसका मतलब आएगा वह कश्मी र मामले पर ही हमारा चैन छिन लेगा। आओ, तुम्हासरी लड़ाई सुलझा दूं के साथ अमरीका व उसके यूरोपीयन चमचे भारत आ धमकेंगे और कश्मी,र लीबिया बना नजर आएगा। यह सब जानते हैं कि लीबिया में विद्रोह के लिए हथियार और पैसे आम जनता ने नहीं अमरीका व ब्रिटेन और फ्रांस ने दिए हैं। इजिप्तम में भी इन्होंेने ही धन बांटा था। कल कश्मी र में भी ये ही देश धन बांटकर जन विद्रोह खड़ा करेंगे और जब हमारी सरकार वहां कानून का डंडा लेकर खड़ी होगी तो अमरीका यही कहेगा, भारत सरकार कश्मीार की आवाज को न दबाएं। विद्रोहियों पर हमले न करें लेकिन तब कुछ नहीं हो सकेगा। जागो, समय रहते जागो, अन्यवथा आज लीबिया, कल कश्मीलर तय है।
बराक ओबामा के आने के बाद यह आस बंधी थी कि दुनिया में अमन चैन लौटेगा। मार्टिन लूथर किंग से जिस व्यनक्ति की तुलना की जा रही थी, एक अश्वे त जिस तरह से अमरीका का राष्ट्र पति बना और वाही वाही की जा रही थी, वह सब अब खत्मू हुआ। दुनिया को भाषण देने की आड़ में शायद एक कुटिल चाल तैयार की जा रही थी। दुनिया के प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जाम करने और मध्य पूर्व और अफ्रीका के कुछ हिस्सोंू को कमजोर कर एशियन टाइगर से बुरी हालत करने के लिए अमरीकी बेताब नजर आ रहे हैं।
टयूनिशिया में सत्ता परिवर्तन का चक्र भी अमरीका की देन है। विद्रोही इसने ही खड़े किए। फिर यह प्रयोग इजिप्तस में दोहराया गया। और अब लीबिया निशाने पर है। यह सही है कि जुल्मय का विरोध होना चाहिए और जनता के साथ कुछ भी गलत हो रहा हो तो उस देश की जनता को ही खड़ा होना चाहिए एवं लड़ाई लड़नी चाहिए लेकिन दूसरे देशों का हस्तेक्षेप नहीं होना चाहिए। लेकिन लीबिया के सहारे अपनी अर्थव्यदवस्थाप को मजबूत करने, मध्यह पूर्व व अफ्रीका में पकड़ बनाने एवं लीबिया के तेल को हड़पने के लिए अमरीका ने अपने चमचा देश ब्रिटेन, फ्रांस को साथ लेकर उस पर हमला बोल दिया। संयुक्ती राष्ट्रे संघ की लाचारी देखकर लगता है कि यह संघ अमरीका जैसे गुंडे देशों का संघ बन गया है जो जब चाहे मनमाने प्रस्ता व पास करा सकता है। जब चीन, भारत सहित पांच देशों ने लीबिया के खिलाफ लाए गए प्रस्तारव पर मतदान में हिस्सा। नहीं लिया तो उनकी बात को अनसुना कर प्रस्ता व पारित क्योंे कर दिया गया।
फ्रांस ने पहल की लड़ाई की और सबसे पहले हमला भी उसने किया। वह शायद भूल गया है कि नस्त्रो दामस जैसे भविष्य वेता ने अगली लड़ाई फ्रांस की धरती पर ही लडे जाने की भविष्य वाणी की थी। अमरीका व यूरोप क्यों इस्लाम धर्म वालों को भड़काने की कार्रवाई करते रहते हैं। हर इस्लायमिक राष्ट्रस पर हमला। इस्लाम वालों ने दुखी होकर ही अल कायदा जैसे संगठन बनाए जो हर संभव लड़ाई लड़ रहे हैं। गद्दाफी को क्योंं यह कहना पड़ा कि वे अल कायदा से दोस्तीर कर सकते हैं। अमरीका और यूरोप का ईसाई समुदाय शायद इस्लाडम वालों को चैन से जीने नहीं देना चाहता। जबकि वे ईसा मसीह के सिद्धांतों पर खुद नहीं चल रहे।
लीबिया का तेल हड़पने के लिए बैचेन अमरीका और यूरोप पर विश्वि समुदाय को मिलकर आवाज उठानी चाहिए। खुद अरब जगत को पहल करनी चाहिए लेकिन सऊदी अरब ने पूरे मध्यि पूर्व देशों के साथ धोखा किया है। अमरीका को अपने यहां सैनिक अड्डे बनाकर दिए है। लीबिया को तबाह करने के षडयंत्र में शामिल है। सऊदी अरब खुद चाहता है कि इराक के बाद ईरान तबाह हो जाए। लेकिन वह यह भूल रहा है कि यही आग उसे भी खत्मै कर देगी।
अमरीका की संयुक्त राष्ट्री संघ में चल रही दादागिरी को सहने से अच्छाअ है विश्व> के कई सदस्य देश इससे अपना नाता तोड़ नया संघ बना ले। अमरीका को विश्वो समुदाय से अलग थलग करने के प्रयास किए जाने चाहिए। लेकिन हिम्मात नहीं है किसी में। हमारे देश में सरकार को बचाने के लिए चार सांसदों को 40 करोड़ दिए जाने का जो खुलासा हुआ और भाजपा के महान नेता लाल कृष्णा आडवाणी की परमाणु संधि पर दोगलेपन की जो पोल खुली उससे पता चलता है कि अमरीका अपनी दबंगता हमारी संसद में चलाता है। वित्त मंत्री कौन बनना चाहिए, कौन नहीं और प्रणब मुखर्जी क्यों बन गए, वे क्याी करेंगे, किसके खास है, यह पूछने वाला अमरीका होता कौन है। हमारा देश है, हम चाहे जो फैसले लें, अमरीकी गुंडागर्दी को क्यों सहे।
जापानी परमाणु बिजली संयंत्रों की बुरी दिशा से कोई सबक लिए बगैर हमारी सरकार जैतापुर में परमाणु बिजली संयंत्र लगाने पर अड़ी हुई है। आम आदमी के विरोध को दबाया जा रहा है। हर नेता वहां जा जाकर लोगों को समझा रहा है कि यह संयंत्र लगने दो। संयंत्र की आड़ में भ्रष्टा चार भी तो करना है। परमाणु बिजली घर लगाओ, ताकि यूरोप का फायदा हो, अमरीका को लाभ हो। ईंधन के लिए इन्हीं देशों पर निर्भर रहे, जब चाहे तब ईंधन दें और चाहे तो न दें। करोड़ों का कारोबार यूरोप व अमरीका को मिल गया।
देश के मौजूदा शासकों में यह देखना चाहिए कितने नेता भारत के बजाय अमरीकी व यूरोपीय हित चिंतक हैं। देश हमारा, चिंता अमरीका व यूरोप की। जमीन से ज्या दा बाजार की लड़ाई में भारत भी यूरोप व अमरीकी कंपनियों का बाजार बन गया है। आज किसी नेता में दम नहीं है कि वह कोका कोला जैसी कंपनी का बोरिया बिस्तबर गोल कर दें। इन कंपनियों के बिस्तहर गोल करके देखों, अमरीका व यूरोप भारत को भी लीबिया,ईरान बनाने से परहेज नहीं करेंगे। ईरान के साथ देश की कंपनी रिलायंस के संबंध को लेकर अमरीका ने एतराज किया, म्या मांर से भारत के संबंधों पर उसे परेशानी है, लेकिन हमारी सरकार कुछ करने की बात तो छोडिए जोर से चिल्ला भी न सकी। ऐसी ही कोई बात चीन से करके देखिए मुंह तोड़ जवाब देता। चीनी सरकार कैसी भी हो, उसकी कई बार आलोचना भी होती है लेकिन वह अपने देश के हितों से बड़ा कुछ नहीं देखती यह उसकी खूबी है। चीनी लोग अपने देश से प्यािर करते हैं। चीनी सरकार अपनी सरकार की तरह लाचार नहीं है।
अमरीका व यूरोप ने इराक, अफगानिस्तासन, इजिप्तन, लीबिया में जो आग लगाई वह देर सवेर भारत भी पहुंचेगी। पाकिस्ता,न तो चाहता ही है कि कश्मीरर के मामले पर अमरीका हस्तिक्षेप करे। लेकिन वह कर नहीं रहा, इसका मतलब यह न निकालें कि अमरीका हमारे पक्ष में है। अमरीका किसी के पक्ष में नहीं है। जब उसका मतलब आएगा वह कश्मी र मामले पर ही हमारा चैन छिन लेगा। आओ, तुम्हासरी लड़ाई सुलझा दूं के साथ अमरीका व उसके यूरोपीयन चमचे भारत आ धमकेंगे और कश्मी,र लीबिया बना नजर आएगा। यह सब जानते हैं कि लीबिया में विद्रोह के लिए हथियार और पैसे आम जनता ने नहीं अमरीका व ब्रिटेन और फ्रांस ने दिए हैं। इजिप्तम में भी इन्होंेने ही धन बांटा था। कल कश्मी र में भी ये ही देश धन बांटकर जन विद्रोह खड़ा करेंगे और जब हमारी सरकार वहां कानून का डंडा लेकर खड़ी होगी तो अमरीका यही कहेगा, भारत सरकार कश्मीार की आवाज को न दबाएं। विद्रोहियों पर हमले न करें लेकिन तब कुछ नहीं हो सकेगा। जागो, समय रहते जागो, अन्यवथा आज लीबिया, कल कश्मीलर तय है।