स्वर्ग और नरक
एक बार एक विचारक स्वर्ग और नरक के बारे में उपदेश दे रहे थे .तभी एक पढ़ा लिखा युवा खडा हुआ
और उपदेशक से पूछा-"श्रीमान ,आप जिस स्वर्ग और नरक के बारे में उपदेश दे रहे हैं वे वास्तव कुछ
भी नहीं है आप या तो स्वर्ग और नरक का साक्षात्कार करवाये या श्रद्धालु लोगो को बरगलाना बंद करे."
विचारक महोदय ने जबाब दिया -"मैं स्वर्ग और नरक से साक्षात्कार करवा सकता हूँ मगर शर्त ये है
आप अपने शहर के दस भले और दस बदमाश लोगो को लेकर आये और साथ में एक बीस फिट लम्बी
सीढ़ी भी ले आये."
उस युवक ने उपदेशक की बात स्वीकार कर ली और अगले दिन एक सीढ़ी, दस भले और दस बदमाश
लोगों को लेकर उपदेशक की कुटिया पर पंहुच गया .उपदेशक सबसे पहले दस बदमाशो और सीढ़ी के
साथ एक सूखे कुएं के पास पहुंचा और बोला -"आप सभी दस व्यक्ति सीढ़ी की सहायता से कुएं के अन्दर
उतर जाएँ ." उपदेशक की आज्ञा के अनुसार दसों बदमाश सीढ़ी की सहायता से कुएं में उतर गये .उपदेशक
ने कहा -" ये सीढ़ी हम कुएं से बाहर खीँच लेते हैं आप लोग बिना सीढ़ी के बाहर निकल जाना". इतना कहकर
उपदेशक ने सीढ़ी को कुए से बाहर खीँच लिया और उस युवक से बोले -इस सीढ़ी को दोनों मिलकर उठा ले
और पुन: कुटिया पर पहुंचे .
उपदेशक और युवक सीढ़ी को उठाकर कुटिया पर पहुंचे .वहां पर दसों भले लोग उनका इन्तजार कर रहे थे
उपदेशक ने उन सबको संबोधित करते हुए कहा कि आप लोग मेरे साथ सीढ़ी को लेकर चले .उपदेशक ने
दुसरे सूखे कुएं के पास पहुँच कर उन सब दस लोगो को आदेश दिया कि आप सभी इस सीढ़ी कि सहायता
से कुए के अन्दर उतर जाए ,जब दसों भले लोग कुएं में पहुँच गये तो उपदेशक ने कहा-'हम ये सीढ़ी वापस
खीँच लेते हैं आप बिना सीढ़ी के बाहर निकल आना ."
इतना कहकर उपदेशक ने युवक कि सहायता से सीढ़ी बाहर खीँच लीया .युवक विस्मित सा उपदेशक के
करतब को देख रहा था पर कुछ समझ नहीं पाया तो उपदेशक से पूछा -महोदय,इस करतब से मेरे प्रश्न
का हल कैसे आयेगा ?"
उपदेशक बोले-प्रतीक्षा करे और देखे बिना सीढ़ी के कौन कौन बाहर निकल कर आते हैं .कुछ घंटो के बाद
भले आदमी वाले कुएं से एक आदमी बाहर निकल आया तथा युवक और उपदेशक के पास पड़ी सीढ़ी को
उठाकर कुएं में पड़े अपने साथियों के पास पहुंचा दी और सीढ़ी की सहायता से एक-एक करके सभी भले
आदमी बाहर आ गये .उपदेशक ने उनसे पूछा -आपने इतने गहरे कुए से एक आदमी को बाहर निकालने
में कैसे सफल हो गये ?
भले आदमी में से एक ने बताया- यह तो बहुत आसान था .हम सबने मिलकर कुएं से बाहर निकलने की
योजना तैयार की तदुपरांत सबसे पहले चार आदमी खड़े हो गये उनके ऊपर तीन आदमी उनके ऊपर दौ
और सबसे ऊपर एक आदमी चढ़ गया ,इस प्रयास में बहुत बार असफल भी हुए मगर हार नहीं मानकर
प्रयास करते रहे और एक आदमी को बाहर निकालने में सफल हो गये और उसके बाद आपके पास पड़ी
सीढ़ी का उपयोग कर सभी आसानी से बाहर निकल गये .
उपदेशक ने उस युवक से कहा-आपस में सहयोग करना और मिलजुल कर लक्ष्य की और आगे बढना
ही स्वर्ग है .
दुसरे कुए से किसी को भी लम्बे इंतजार के बाद में भी बाहर नहीं निकलते देख उपदेशक ने उस युवक
से कहा-अब तक बदमाश बाहर नहीं आ पाए हैं जरा उधर चल कर माजरा समझ ले .उपदेशक उस युवक
को लेकर कुए के पास पहुंचे .कुएं के अन्दर से लड़ने -झगड़ने की आवाजे आ रही थी .सभी लहुलुहान
हो गये थे .उपदेशक ने युवक को कुएं में झांखकर देखने को कहा .सभी बदमाश एक दुसरे के कंधे पर
चढ़ कर बाहर निकलने की कोशिश कर रहे थे जैसे भी दुसरा घेरा लगता की तभी बाकी बचे आपस में
लड़ने लग जाते और बंद(घेरा)बिखर जाता और एक दुसरे को मारकर फिर नया बंद बनाने की कोशिश
करते .
उपदेशक ने युवक से कुएं के अन्दर का हाल पूछा तो युवक ने कहा-महोदय ये सभी" पहले मैं -पहले मैं "
बाहर निकलने की बात पर झगड़ रहे हैं और एक दुसरे की टांग खींचकर गिर जाते हैं .सभी लहुलुहान
हो चुके हैं .
उपदेशक ने कहा -वत्स, असहयोग और स्वार्थ की भावना ही नरक है.मुझे लगता है तुम्हे तेरी बात का
उत्तर मिल गया होगा .यदि स्वर्ग और नरक का साक्षात्कार हो गया हो तो सीढ़ी को कुए में डालकर
इन बदमाशो को बाहर निकाल दे .
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