2014 का आम चुनाव
करीब है ऐसे में सियासी दल अपने – अपने पक्ष में माहौल बनाने में जी जान से जुटे
हुए हैं। वे अपने विरोधियों की किसी भी गलती या कमजोर कड़ियों को कैश कराने का कोई
मौका नहीं छोड़ रहे हैं। लेकिन ऐसे वक्त में पीएम इन वेटिंग की पदवी पाए भाजपा के
वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी का ये कहना कि यूपीए से जनता की नाराजगी के बाद भी
जनता का भाजपा से मोहभंग हो गया है...अपने आप में कई बातें सोचने पर मजबूर करता है..!
भाजपा के एक वरिष्ठ
नेता का बयान साफ ईशारा करता है कि न तो पार्टी विपक्ष मे रहते हुए जनता की
अपेक्षाओं पर खरी उतर पाई है और न ही पार्टी में अंदरखाने सब कुछ ठीक ठाक चल रहा
है। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री येदुरप्पा के बहाने भाजपा पर लगे भ्रष्टाचार के
दाग पर भी आडवाणी खिन्न नजर आए।
आडवाणी भले ही अपने
इस बयान में ये भी जोड़ते हुए नजर आए कि इसके बाद भी पार्टी के बेहतर भविष्य को
लेकर वे आशान्वित हैं लेकिन चिंता और आशा के इस गठजोड़ के गणित में कहीं न कहीं चिंता
आशा पर हावी दिखाई देती है, जो भाजपा के लिहाज से तो बहुत अच्छा नहीं कहा जा
सकता..!
लंबे वक्त से
केन्द्र की सत्ता से दूर भाजपा की बेचैनी साफ दिखाई देती है लेकिन इस बेचैनी की
दवा 2014 में भाजपा को मिल पाएगी इसकी भी उम्मीद बहुत ज्यादा नहीं है..! खासतौर पर चुनाव
पूर्व पीएम केंडिडेट के लिए एनडीए में तो दूर भाजपा में ही एक सर्वमान्य नाम के
लिए जद्दोजहद इस उम्मीद को धुंधला कर देती है..!
यहां पर दूसरा
फैक्टर जो भाजपा की इस उम्मीद को और धुंधला करता दिखाई दे रहा है वो कहीं न कहीं
भ्रष्टाचार के खिलाफ भाजपा का लड़ाई में लगातार कमजोर पड़ना भी है। इस पर कर्नाटक
भाजपा सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप के साथ ही नितिन गडकरी की कंपनी पर लगे
कथित गड़बड़ी के आरोप भी भाजपा को दो कदम पीछे ही धकेलते हैं..!
ये कहना गलत नहीं
होगा कि भाजपा को 2014 में यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार और घोटालों का जो फायदा मिल
सकता था उसे भाजपा अपनी कारगुजारियों के चलते गंवाती दिख रही है। ऐसे में आडवाणी
की बात को नकारा नहीं जा सकता कि जनता अगर यूपीए सरकार से खुश नहीं है तो लोगों को
भाजपा से भी बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं है। जाहिर है भाजपा 2014 में भ्रष्टाचार और
घोटालों से घिरी सरकार का एक मजबूत विकल्प बनती नहीं दिखाई दे रही है..!
बात 2014 की हो...भाजपा
की हो तो मोदी के जिक्र के बिना ये बात अधूरी सी लगती है। मोदी को लेकर भाजपा भले
ही एकराय होती नहीं दिख रही है लेकिन हालिया तमाम चैनल के ओपिनियन पोल और सोशल
नेटवर्किंग साईट्स के ट्रेंड पर नजर डालें तो कहीं न कहीं मोदी ही 2014 के
मद्देनजर भाजपा के लिए संजवनी की तरह नजर आ रहे हैं लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या
मोदी भाजपा में पीएम बनने की लालसा लिए बैठे पार्टी के दूसरे बड़े नेताओं की महत्वकांक्षाओं
को पार कर पाएंगे..?
बहरहाल जोर आजमाईश
जारी है और अंतिम फैसला जनता को ही करना है...ऐसे में देखना रोचक होगा कि सत्ता की
इस लड़ाई में जनता का किससे मोहभंग होता है और कौन जनता के दिलों पर राज करता है..? अन्ना हजारे, योगगुरु बाबा रामदेव और आम
आदमी पार्टी भी तो है मैदान में..!
deepaktiwari555@gmail.com
1 comment:
In fact, now Adwani knows that the population graph of his is no more impressive than earlier compared to Modi,so he is telling now without any reservation and favour. And When a person tells something without any favoure or reservation, he tells almost Right--his analysis becomes more compact and more sharp.
Secondary thing is that he sees himself now as a olderly leader like Dadaji in his own-growned Party BJP, so perhaps dose of critics is now mandatory for the party and I think, It would be beneficial to party.
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