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19.11.21

किसानों का ऐतिहासिक संघर्ष ज़िंदाबाद!

साल भर से जारी अभूतपूर्व किसान आंदोलन के दबाव में आज केंद्र सरकार को तीनों प्रतिगामी कृषि क़ानूनों को वापस लेने की घोषणा करनी पड़ी। यह किसानों की एक ऐतिहासिक जीत है। जनवादी लेखक संघ किसान संगठनों के संयुक्त मोर्चे को इस जीत के लिए मुबारक़बाद देता है और उनका क्रांतिकारी अभिनंदन करता है। 

यह फ़ैसला इस बात का सबूत है कि अगर दिशा सुचिन्तित और संकल्प अडिग हो तो जनता की संगठित ताक़त के आगे तानाशाहों को भी झुकना पड़ता है। इस आंदोलन में लगभग 700 किसानों की शहादत हुई है। शीतलहर, लू और घमासान आँधी-पानी को झेलते हुए लाखों किसान इस आंदोलन के मुख्तलिफ़ मोर्चों पर जमे रहे हैं। यह जीत उन सभी किसान परिवारों की अकथ पीड़ाओं की क़ीमत पर मिली है। हम इन क़ुर्बानियों को नमन करते हैं।

जैसा कि संयुक्त किसान मोर्चे द्वारा जारी किए गए बयान में स्पष्ट किया गया है, उनका संघर्ष तीनों कृषि क़ानूनों की वापसी के अलावा एकाधिक अन्य मांगों को लेकर भी है जिनमें बिजली संशोधन विधेयक की वापसी और सभी कृषि उत्पादों के लिए लाभकारी मूल्य की गारंटी जैसे मांगें शामिल हैं। संयुक्त किसान मोर्चा अपनी बैठक में नई घोषणा के बाद की स्थितियों की समीक्षा करके आगे की कार्यनीति तय करेगा। किसान आंदोलन के नेतृत्व ने अभी तक जिस तरह उसका संचालन किया है, उसे देखते हुए हम उनकी समीक्षा बैठक के प्रति अपना पूरा भरोसा व्यक्त करते हैं। जनवादी लेखक संघ संयुक्त किसान मोर्चे के साथ अपनी एकजुटता और आगे भी हर क़दम पर उसके साथ रहने का संकल्प व्यक्त करता है।   

 मुरली मनोहर प्रसाद सिंह (महासचिव)

राजेश जोशी (संयुक्त महासचिव)

संजीव कुमार (संयुक्त महासचिव)

जनवादी लेखक संघ

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