डॉ. विक्रम चौरसिया-
मर्द को दर्द नहीं होता कहावत को सच मानकर,जो हम पुरुष ता उम्र अपना दर्द छिपाते है,जी हां वो पुरुष ही होते है,जी हां, मैं पुरुष हूं ! ध्यान से देखो मां के पेट से जब मैं दुनियां में आता हूं, परिवार के सपने पूरे करने का जरिया बन जाता हूं, कोई मुझे बुढ़ापे का सहारा कहता है, तो किसी की आंखों का तारा बन जाता हूं। लेकिन फिर भी मैं अत्याचारी कहलाता हूं। जी हां, मैं पुरुष हूं ! देखे तो किसी भी सभ्य समाज के जीवन रूपी गाड़ी के पुरुष और महिला दोनों ही पहिये हैं ,जबकि अक्सर पुरुष नेपथ्य में रहते हुए अपनी जिम्मेदारियों व दायित्वों का भलीभांति निर्वहन करते हुए जीवन गुजार देता है,जबकि किसी भी लोकतांत्रिक देश या सभ्य समाज में दोनों को बराबर का अधिकार मिलना चाहिए, लेकिन हमने पिछले दिनों लखनऊ में सरेआम पुरुष का धज्जियां उड़ते हुए देखें तो वही ऐसे ही बहुत से झूठे आरोप पुरुषों पर लगा दिया जाता है।
पुरुष पहाड़ के भांति परिवार पर आने वाली हरेक विपदा से टकराता है और रक्षा के लिए मर मिट जाता है, लेकिन इन सबके बाद भी पुरुषों को हमारे समाज में एक बलात्कारी, अत्याचारी छवि के रूप में देखने का चलन बदस्तूर जारी है, क्योंकि पुरुष अपनी विनम्रता और सहनशक्ति के कारण हर जख्म को हंसते-हंसते सह जाता है,'मर्द को दर्द नहीं होता' कहने वाले हकीकत से दूर ही रहते हैं कि मर्द को भी दर्द होता है।
लेकिन वह कभी भी अपने दर्द का प्रदर्शित नहीं करता।आज हमारे समाज की ये मानसिक रुग्णता ही है कि जब भी कोई गलत कार्य अंजाम लेता है तो सारा ठीकरा पुरुष के सिर मढ़ दिया जाता है, परिस्थिति चाहे कैसी भी हो पुरुष को ही सवालों के कठघरे में खड़ा करके दोषी साबित किया जाता है। महिला यदि पुरुष पर झूठा ही बलात्कार का इल्जाम लगा दे तो पुरुष को सजा से कोई नहीं बचा सकता,जबकि पुरुष के साथ यदि कोई महिला वास्तव में जबरदस्ती करें और वो अपने दुष्कर्म की रिपोर्ट लिखवाना चाहे तो हास्य का पात्र बनकर रह जाता है।
गौरतलब है कि भारत में पहली बार पुरूष दिवस को साल 2007 में मनाया गया था,सरकार से यह मांग है कि महिला विकास मंत्रालय की तरह पुरुष विकास मंत्रालय भी बनाया जाए। सवाल उठना लाजिमी है कि पुरुषों को एक खास दिन की जरूरत आखिर क्यों है? तो जवाब है कि महिलाओं की तरह पुरुष भी असमानता का शिकार होते हैं, हमारा समाज पुरुष प्रधान है, मतलब यहां पुरुषों का वर्चस्व है।
यह सोच सिर्फ भारत जैसे देशों की ही नहीं है, बल्कि दुनियां के कई देशों में इस तरह की सोच आज भी है। मगर इसका मतलब यह नहीं है कि पुरुषों को कोई समस्या नहीं है। हकीकत यह है कि वह भी भेदभाव, शोषण और असमानता का शिकार होते हैं , देखिए मेरे नजर में हर एक नारी मां का स्वरूप होती है चाहे उनसे हमारा कोई भी रिश्ता हो कभी मां, बहन, बेटी, दादी, पत्नी,दोस्त और भी ऐसे ना जाने कितने रिश्ते में हमें समेट कर सवारती है तो वही कुछ इसके विपरीत भी करती है ,हम देख रहे है की कितना अधिक आईपीसी के सेक्शन 498ए जैसे ही और भी बहुत सी झूठी आरोप लगाया जा रहा है।
Vikram
vikramchourasia1995@gmail.com
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