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हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानून वापस ले लिए यह बात तो हम सभी जानते हैं। मगर कुछ बातें हैं जो अब सभी लोगों को सोचने पर मजबूर करती हैं। पहली बात, कई बार भाषणों में बीजेपी के मंत्रियों द्वारा यह कहते हुए हमने भी सुना है कि जो किसान वहां बैठे हैं। वह वास्तव में किसान नहीं उपद्रवी, खालिस्तानी और नकली किसान जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जाता था। सबसे बड़ा सवाल यहां पर, जब दिल्ली को घेरे वहां पर बैठे हुए लोग किसान नहीं थे तो फिर नरेंद्र मोदी ने आखिर बिल वापस क्यों ले लिया।
यह बात अपने आप में एक रिसर्च का विषय बन चुका है। जब आंदोलन के आरंभ से आंदोलन के अंत तक यही कहा जा रहा था कि जो किसान वहां बैठे हैं। वास्तव में वह किसान नहीं नकली किसान हैं। और राजनीति का एक एजेंडा आंदोलन है फिर क्यों नरेंद्र मोदी को जरूरत पड़ी, इस कृषि कानून को वापस लेने की, जबकि वह लोग किसान थे ही नहीं।
जब वह किसान नहीं थे तो बिल वापस किस लिए लिया गया। क्योंकि असली किसान तो अपने अपने खेतों में हैं जो कि यह बात बीजेपी के कार्यकर्ता और मंत्री द्वारा अक्सर भाषणों में कहा जाता था। फिर क्यों कृषि कानून को वापस लिया गया। जब आंदोलन में बैठे किसानों को कभी किसान माना ही नहीं गया तो कृषि कानूनों को वापस लेकर आखिर नरेंद्र मोदी सरकार लोगों को क्या संदेश देना चाहती है।
जब सभी लोग नरेंद्र मोदी के साथ हैं कि आंदोलन में बैठे सभी किसान खालिस्तानी, उपद्रवी और नकली किसान हैं जैसा कि पूरा देश भी आंदोलन में बैठे किसानों को नकली किसान ही मानते हैं। फिर अचानक से नरेंद्र मोदी ने उन किसानों को असली किसान मानकर कृषि बिल वापस क्यों ले लिए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास इस समय पूरे भारत का सपोर्ट था। मोदी के साथ अधिकतर जनता भी दिल्ली के बॉर्डर को घेर कर बैठे किसानों को नकली किसान मानती थी। उन्होंने कृषि कानुन वापस ले कर एक बार यह साबित कर दिया है कि उनकी करनी और कथनी में बहुत अंतर होता है। मैं भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आए दिन उनके मंत्रीयों द्वारा नकली किसान वाली बातों को लेकर बीजेपी की बातों में आ गया था। मगर अब जब उन किसानों को असली मानकर कृषि कानून वापस ले ही लिया है तो बात ही क्या है। सरकार की महिमा सरकार ही जाने।
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