arun srivastava-
अच्छा-खासा समय लग गया यह सोचने में कि, कंगना पर लिखूं या न लिखूं। आखिर में बाल लोकतंत्र में कम्युनिस्टों ने भी तो कहा था कि, देश की जनता भूखी है ये आजादी झूठी है जेएनयू के छात्रों ने भी हमें चाहिए आजादी वाला गीत गाया था। पर इसको लेकर पार्टी के अंदर अच्छी-खासी बहस चली और कन्हैया ने आजाद भारत में क्यों चाहिए आजादी पर अपना पक्ष रखा था।
भगत सिंह सहित अधिकतर शहीदों का कहना था कि आजादी का मतलब सिर्फ गोरी चमड़ी के लोगों से आजादी हासिल कर लेना नहीं है बल्कि वास्तविक आजादी तभी आ सकती है जब देश के मजदूरों, गरीब किसानों, नौजवानों, महिलाओं यानी हरेक दबे-कुचले वर्ग को हर प्रकार के शोषण से आजादी मिले।
अब मैं कंगना को घटिया फिल्मों में घटिया काम करने वाली घटिया अभिनेत्री तो नहीं कहूंगा क्योंकि मणिकर्णिका के अलावा मैंने उनकी कोई फिल्म नहीं देखी। कंगना को घटिया बयानों, घटिया भाषा, घटिया बोली और हर एक के मामले में ' टांग अड़ाने' वाले के रूप में जानता था और अब घटिया ज्ञान के रूप में जाना।
1947 को मिली आजादी को नकली बताना और 2014 को असली आजादी मिलने की बात करना के लिए सिर्फ कंगना ही नहीं हिंदी खबरिया चैनल की ऐंकराइन नविका कुमार भी दोषी हैं और ताली बजाने वाले भी। ऐंकरा ने न कंगना को रोका न टोका। बल्कि आग में घी डालते हुए क्रास क्वैश्चन में कहा कि,' लोग इसीलिए आपको भगवा कहते हैं। इस कार्यक्रम में दर्जनों दर्शक भी रहे होंगे पर किसी ने विरोध नहीं किया। विरोध की छोड़िए लोगों ने ताली बजायी। मतलब समर्थन ही नहीं किया खुशी भी जतायी।
अब आपको थोड़ा पीछे ले चलते हैं। बमुश्किल एक पखवारा बीता होगा 'द लल्लनटाॅप' के खुले समारोह में आरएसएस के एक आनुशंगिक संगठन की पदाधिकारी रुचि पाठक ने कहा कि, भारत को 90 या 99 साल की लीज पर आजादी मिली है। रुचि पाठक के श्रीमुख से लीज पर मिली आजादी की बात निकली नहीं कि कार्यक्रम का संचालन कर रहे ऐंकर सौरभ ने न केवल रुचि पाठक को टोका बल्कि नाराजगी की मुद्रा में दो-चार सवाल भी दाग दिये। हालांकि कि थोड़ा ना-नुकुर के बाद वह चुप हो गईं। पर हाल ही में माफी मांगने वाली ओजस्वी ऐंकरा नविका कुमार ने अपने होंठ सिल लिए। जबकि उन्हें कहना चाहिए (डरते-डरते ही सही) कि मैडम मैंने सवाल सावरकर पर किया था। अगर कंगना घुटी हुई खिलाड़ी न होती तो रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के बयान (गांधी जी के कहने पर सावरकर ने माफी मांगी थी) का आड़ बच निकलतीं। पर कंगना ने अपने बयानों से जिस तरह की पहचान बना रखी है उससे चाह कर भी नहीं निकल सकतीं क्यों...इसलिए कि तब उनसे Z+ की सुरक्षा वापस ले ली जाएगी और तमाम मामलोंमें फंसती जाएंगी।
कंगना का बयान मधुशाला में मस्ती कर रहे पियक्कड़ का बयान नहीं है उन्होंने एक बड़े मीडिया घराने के चैनल पर यह बात कही थी। सुशांत सिंह राजपूत के मामले में भी कंगना ने महेश भट्ट और रिया को सुशांत की मौत का जिम्मेदार ठहराया। जब की मौत हत्या और आत्महत्या के बीच झूल रही है। उन्होंने शिवसेना के कद्दावर नेता संजय राउत ही नहीं मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को भी तुच्छ व्यक्ति कहा। ॠतिक रोशन पर भी गंभीर आरोप लगाए थे।
यह सारी चीजें एक ऐसी विचारधारा वाले सोच की देन है जिसका आजादी की लड़ाई में कोई योगदान नहीं था। चूंकि अभी तक उसकी विचारधारा से उत्पन्न राजनीतिक पार्टी राक्षसी बहुमत के साथ कभी सत्ता में नहीं थी और न इस स्थिति में कि वह खुलकर अपनी अंदर की सोच को सार्वजनिक रूप से कहे, प्रचारित करे। पहली बार न केवल अपने दम पर सत्ता में काबिज हुई बल्कि कुछ भी कर सकने की स्थिति में भी है। धीरे-धीरे कर संवैधानिक संस्थाओं को भी मुट्ठी में कर लिया। दूसरी तरफ कम्युनिस्टों को छोड़ कर किसी अन्य दल के न तो संगठन है और न ही अनुशासित कार्यकर्ता पर उनके पास खर्चीले चुनाव में अपने प्रत्याशियों को जिताने की ताकत जबकि एक चुनाव के बाद से लेकर दूसरे चुनाव तक सड़कों पर वही संघर्ष करते हैं।
बहरहाल बात मुद्दे की। अभी कुछ ही साल हुए एक अतिवादी हिंदूवादी संगठन की एक महिला पदाधिकारी ने प्रतीक स्वरूप बापू की मूर्ति बनायी और गोली मारी, खुशियाँ मनायी। उस संगठन के पदाधिकारी का क्या हुआ? रस्मी तौर पर गिरफ्तारी। ये अकेली महिला पदाधिकारी नहीं हैं। साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को ही ले लीजिए। आयेदिन विवादास्पद बयान देंती हैं सड़क पर भी और संसद में भी। हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने कहा कि मैं कभी प्रज्ञा को दिल से माफ करूंगा पर इससे फर्क क्या पड़ा। जब प्रज्ञा पर फर्क नहीं पड़ा तो पद्मश्री कंगना पर क्यों पड़ेगा। आखिर कंगना भी तो उसी सोच को आगे बढ़ा रहीं हैं जिसे उनके लोग बढ़ाते रहें हैं। जब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने गांधी जी को चतुर बनिया बता दिया, केंद्रीय राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने " देश के गद्दारों को, गोली मारो सालों को" नारा लगवा दिया। यानी गद्दारों को खुद ही चिह्नित किया, खुद ही फैसला सुना दिया और उसे अमल में लाने के लिए खुद ही ललकारने भी लगे। अब जब जिम्मेदारी के पद पर बैठे लोग ही कुछ भी बोल बैठेंगे तो कंगना तो अनर्गल बात करेंगे ही। और कंगना ही क्यों...? गिरीराज सिंह, तेजस्वी सूर्या कपिल मिश्रा भी समय-समय पर अपना नंबर बढ़ाने के लिए ऐसी ही सीढ़ियों का सहारा लेते हैं। सत्ता के करीबियों का न पहले कुछ हुआ है न अब होगा। याद करिये फरवरी 16 में जेएनयू में कुछ बाहर से आये लोगों ने या वहीं के असामाजिक तत्वों ने आपत्तिजनक नारे लगा दिये। उसके बाद जेएनयू छात्रसंघ के तत्कालीन अध्यक्ष कन्हैया कुमार को गिरफ्तार कर लिया गया। जमानत से आने के बाद कन्हैया ने आजादी गीत ' हमें चाहिए आजादी, आजाद भारत में आजादी " गीत गाया। वे बताते हैं कि क्यों चाहिए, किससे चाहिए हमें आजादी। कन्हैया कुमार कई बार बता चुके हैं कि आजाद भारत में हमें क्यों और किससे आजादी चाहिए।
क्या पद्मश्री कंगना बताएंगी कि, नकली आजादी का ज्ञान कहां से मिला ? उन्हें कब और कैसे पता चला कि ये आजादी नकली है और 2014 के बाद असली आजादी मिली।
क्या भाजपा के भीष्म पितामह अटल बिहारी वाजपेयी नकली भारत वाली आजादी पाने वाले देश के प्रधानमंत्री थे ? फिर नकलीआजादी का अमृत महोत्सव जो कि 75 साल होने पर मनाया जाता है उसे असली आजादी वाले देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी की अगुवाई में क्यों मनाया जा रहा है।
दरअसल कंगना तो बहाना हैं अपनी सोच को मनवाना है।
अरुण श्रीवास्तव
देहरादून।
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