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11.2.24

अरे गधा है हमारा दर्शक, उसे तब भी कुछ नहीं समझ आने वाला!

 

शोभा शमी-

ज़रूरी कहानी लेकिन फ़िल्म.....
मैं अक्सर सिनेमा में जेंडर बेस्ड वायलेंस के दृश्यों को देखती हूं तो ज्यादातर बार घबराहट होती है. वो सब के सब दृश्य ट्रिगर की तरह होते हैं. संभव है आप कहेंगे कि हां ऑब्वियस सी बात है. पर पता है इसमे एक बात और है, वो ये कि ज्यादातर बार मुझे लगा कि उन दृश्यों की ज़रूरत थी नहीं.
फिल्मों में औरतों के खिलाफ हिंसक दृश्यों को जस का तस दिखाने पर इतना ज़ोर क्यों है? उससे क्या हासिल है? आप किसके मन मस्तिष्क को झिंझोड़ना चाहते हैं? क्या वह मन मस्तिष्क उन दृश्यों से भी जागेगा या उसके लिए कुछ इशारे, कुछ शब्द, कोई संगीत काफ़ी होने चाहिए थे?

और फिर हाशिए पर मौजूद तमाम जेंडर के लोगों को हिंसा की किसी कहानी को सुनने और समझने के लिए तो इन दृश्यों की ज़रूरत है नहीं. तो क्या हम तमाम मर्द और प्रविलिज्ड औरतों को ख़्याल में रखकर ऐसे दृश्य रचते हैं? तो फिर तो हमारी कहानी के केंद्र से सर्वाइवर की जगह वही मुख्यधारा के लोग आ गए. (अरे लेकिन इस बहाने ऐसी कहानियां तो बनती हैं और लोग देखते हैं वाली नॉनसेंस तो बिल्कुल मत बोलिएगा.)

पिछले कुछ सालों में मैंने दुनियाभर में बनी ट्रू क्राइम बेस्ड काफी सारी फिल्में और सीरीज़ देखीं. और एक से एक नाज़ुक फ़िल्में सामने आईं. एक फिल्म में तो घटनास्थल और पोस्टमार्टम की कुछ तस्वीरों के अलावा और कोई दृश्य नहीं था.
दरअसल अगर आप एक संवेदनशील व्यक्ति हैं तो आप अपने आसपास के दुख बहुत कम में भी समझ सकते हैं. उसके लिए आपको पूरे एक वर्ग को दुबारा ट्रिगर करने की ज़रूरत है नहीं.
और फिलहाल तो हम इस बारे में बात ही नहीं कर रहे कि जिन लोगों की कहानियां पर्दे पर कह रहे हैं. उनके बारे में सोचा है? वो कैसा महसूस करते हैं?? बेसिक बात कि आपके साथ कभी ऐसा कुछ हो जाए तो आप ख़ुद को पर्दे पर इस तरह देखना चाहेंगे. वो भी बिना आपसे पूछे??
बैंडिट क्वीन की बहुत तारीफ की होगी लेकिन आपको फिल्म की स्क्रीनिंग से लेकर हाईकोर्ट में चले मामले पर गौर करना चाहिए. कैसे हमारे यहां सर्वाइवर के कन्सेंट को ताक पर रखकर कुछ भी बना दिया जाता है, दिखा दिया जाता है. सिर्फ़ इस लॉजिक से कि अरे दर्शक रिलेट करेगा.
अरे गधा है हमारा दर्शक. उसे तब भी कुछ नहीं समझ आना है.
बार बार.. सैकड़ों बार वही ख़्याल आता है. कि दुनिया में औरतों ने जो फिल्में बनाई है उन्हें देखो. ख़ैर इस फ़िल्म की भी कहानी ज़रूरी है. उसके लिए एक बार देखी जानी चाहिए.

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