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23.9.08

"सेल !!" (लघुकथा)

" आशा,चल ,चिंकारा मॉल में सेल लगी हुई है,सभी चीजों पर फिफ्टी परसेंट की छूट है !"लता ने अपनी सहेली से कहा
"हाँ-हाँ,मैं भी यही सोच रही थी,अभी मैं तुझे फोन करने ही वाली थी,अच्छा हुआ कि तू ख़ुद ही गई ,अरे ये एन नाइंटी फाइव कब लिया तूने ?ये तो थ्री जी है ना ?कितना क्यूट है ?कितने का पड़ा ?"
"कितने का तो पता नहीं,कल ये बॉम्बे से आयें है वही लाये है,अपने लिए भी उन्होंने एप्पल ख़रीदा है,वो तो इससे भी ज्यादा स्मार्ट है,अच्छा-अच्छा चल ना देर हो रही है,फिर बच्चों के स्कूल से वापस आने का समय हो जायेगा,चल जल्दी कर !"
" हाँ-हाँ,चल मैं तो तैयार ही बैठी हूँ,गाड़ी लायी है ना कि मैं अपनी निकालूं ?"
"लायी हूँ ना,तू क्यूँ चिंता करती है मेरी जान,गाड़ी भी है और मनी से भरा ये बैग भी !"
"बाप-रे-बाप !अरे,सारा का सारा मॉल ही खरीदे कि क्या ?"
"नहीं रे,कई दिन से मार्केटिंग में निकली नहीं हूँ ना,बोर हो गई थी,आज निकल रही हूँ, जाने क्या-क्या पसंद जाए !!"
"लेकिन ये तो बता कि हम लोग आख़िर खरीदेंगे क्या? हमारी आलमारियाँ तो पहले ही सौओं कपडों और पचासों जूतियों से भरी पड़ी हैं "हँसते हुए आशा बोली
"तो पहले आलमारी खरीद लेते हैं यार!टेंशन काई कू लेने का !!"लता ने ठहाका लगाया
अगले कुछ मिनटों में दोनों मुंहलगी सखियाँ चिंकारा मॉल के भीतर थीं.फूल .सी.मॉल में जैसे लोग भेड़-बकरियों की तरह चले रहे थे,ये सारे वे लोग थे जिनको वास्तव में किसी भी चीज़ की जरुरत ही नहीं थी,वस्तुतः खाने-पीने की चीजों के सिवा अगर वे दस साल भी कोई अन्य चीज़ खरीदते तो उनका कोई काम हर्ज़ ना होता,मगर सेल थी कि लगी हुई थी और विज्ञापन ऐसे कि सारी चीजें गोया फ्री ही मिल रही हों !!
लोग यों टूट पड़ रहे थे कि आज ही सब-कुछ खरीद लिया तो कल प्रलय जायेगी और अपने मन की इच्छा पूरी किए बगैर वे अल्लाह को प्यारे हो जायेंगे !! मॉल के तमाम कैश-काउंटरों पर ऐसी ही मतवाली बावली भीड़ एक-दूसरे के ऊपर समाये जा रही थी !!
दोनों सखियाँ जब दो घंटे बाद खरीदारी करके बाहर निकलीं,तो उनके माथे पर इस जद्दोजहद से उपजा पसीना बह रहा था,वे बेहाल थीं और लोगों को कोस रही थीं !मॉल की सीढियों से नीचे उतरते ही एक कातर मुलायम आवाज़ ने उन्हें टोका ,
"एक रूपया दे ना माईजी !!"
इस वक्त असल में वो अब घर जाने या किसी रेस्टोरेंट में जाने के सिवा कुछ सोचना भी नहीं चाहती थीं मगर वह आवाज़ इतनी भींगी हुई थी कि उनके कान ना चाहते हुए भी उस आवाज़ की और मुड गए
यह एक छोटी-सी बच्ची थी,जो अपनी गोद में एक मरियल-से बच्चे को चिमटाये हुए थी
"मेरे तो हाथ खाली नहीं हैं, लता तू अपने पास से इसे कुछ दे-दे ना !"
लता ने अपने पर्स में हाथ डाला ,उसमें उसे पाँच और दो के सिक्के हाथ लगे ,एक का एक भी सिक्का था ,लड़की बड़ी आशा से उन्हे ताक़ रही थी
"छुट्टे नहीं हैं,बाद में ले लेना !!"और दोनों सखियाँ गाड़ी में बैठ गयीं,गाड़ी ने तुंरत रफ़्तार पकड़ ली,धूल उडाती जा रही उस चमकती महँगी गाड़ी को वह चोटी-सी बच्ची अवाक-सी देखे जा रही थी ,शायद सोच रही थी कि यह "बाद "कब आएगा !!

2 comments:

shelley said...

achchhi story hai. bade logon ka yahi sach hai

Anonymous said...

हमारे देश के इस कड़वे सच को कहानी का रूप देने के लिए आपको बधाई, मार्मिक है और इंसानियत पर चोट करती है, मानवता के समाप्त होने के कारण का भी खुलासा करती है. और हां ये बड़े लोग नही अपितु चिल्ल्हर से ज्यादा नही हैं और वोह फूले हुए गुब्बारे जिनके फूटने का समय हो चुका है.
जय जय भड़ास