4 तारीख को पत्रकार संघ के चुनाव हैं। ऐसे तो बीस दिन पहले से ही मोबाइल पर टैक्स्ट मैसेज आने शुरू हो गए थे, लेकिन आज से उम्मीदवारों की फोन कॉल्स ने भी परेशान कर दिया। ऐसे-ऐसे लोग जो कभी शायद किसी से सीधे-मुंह बात तक न करते थे, इस एक-डेढ़ महीने से शायद उनकी मानवता जाग उठी है, सबसे जी, जी और साब-साब करके बात कर रहे हैं। पर शायद मधुरता की उम्र इतनी ही होती है, पांच तारीख से सब अपनी पुरानी लय में आ जाएंगे। आज ही एक संपादक साहब (जयपुर से बाहर) का फोन आया, जिनसे शायद मैं एक बार ही मिला हूं, कहने लगे- आप तो पुराने परिचित हैं, आपका वोट तो पक्का ही है। साथ ही साथ कुछ अन्य साथियों का भी मैं वोट पक्का करा दूं, उनका कहना था, शायद मानना भी। उन्होंने स्वयं की जीत के पीछे जो दलील दी, वह कुछ ऐसे थी- `मेरा मानना है कि संगठन में बाहर के व्यक्तियों का जितना अधिक प्रतिनिधित्व होगा। संगठन उतना ही अधिक विकास करेगा।´
उनकी इसी बात से मुझे एक पुराने वाकये की याद आ गई। हुआ यूं कि मेरी होमसिटी (श्रीगंगानगर) से इसी संगठन के जिलाध्यक्ष और महासचिव महोदय जयपुर आए थे। मेरे शहर का ही एक मित्र दिलीप नागपाल मेरे घर के ही पास किराए पर रहता है, वे पहले उसके पास गए। शायद मुझसे बात भी नहीं करना चाहते थे। शाम को दिलीप तो ऑफिस आ गया और वे दोनों उसके घर रुक गए। अब गर्मी का टाइम तो था ही, जिलाध्यक्ष और महासचिव महोदय दोनों ने आधी रात तक तो कमरे में उधम मचाया और रात करीब डेढ़ बजे केवल अंडरवीयर -बनियान में छत पर जाकर सो गए। यह भी नहीं देखा कि पास ही मकान मालकिन की बेटी और जंवाई भी सो रहे हैं। या देखकर भी अनदेखा कर दिया कि हमें कौन रोकेगा। मकान मालकिन ने सुबह-सुबह पांच बजे ही गेट बजाकर दिलीप को कह दिया कि या तो अभी इन तेरे दोस्तों को बाहर कर नहीं तो आठ बजे तक तू भी तेरा सामान समेट ले। आखिर वहां से उन दोनों ने मेरे मोबाइल पर कॉल किया कि हमें केवल फे्रश होना है और नहाना-धोना है। मैंने अपने घर बुला लिया। आखिर दस बजे उन्हें चाय-नाश्ता कर विदा किया, लेकिन उन दोनों भाइसाहब ने ना धन्यवाद ना बाद में मिलेंगे कहा। केवल `ओके´ कहकर विदा हुए। बाद मेंे मैडम ने आकर मुझे डांटा कि आपके दोस्त ऐसे हैं क्या, पूरा टॉयलेट गंदा कर गए। बाथरूम गंदा कर गए।
अब मैं सोचता हूं कि यदि ऐसे लोग किसी भी संगठन के किसी भी जिला विशेष के किसी भी ऊंचे पद पर होंगे, तो समाज में क्या इम्पैक्ट जाएगा। संगठन की क्या छवि बनेगी, राम जाने।
27.9.08
पत्रकार संघ के चुनाव
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4 comments:
sir jee inke naam to likhe hote taki pata chalta kee aapke sriganganagar me koun kaisa hai
sir jee inke naam to likhe hote taki pta chalta ki aapke ganganagar me kaise kaise patrkaar hai
aapne dard to bayan kar diya magar unke naam nahin likhe. kam se kam ismadhutalwar ko ta batane the unke naam.
ye sab baat aap jaipur me sangh ke president ISH MADHU TALWAR ko batao. taki unki pata lage ki unhone kaisi kaisim toom pal rakhi hain.
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