बाजार से बाहर जब सभी बिकने वाली
चीजें खरीदी जा रही थीं
तुम्हारा अंतिम प्रेम पत्र छिपाने को
मैंने खरीदा एक संदूक
जब बड़ी कविता बड़े शिल्प बड़े कैनवस
बड़े हादसे बड़ी खुशियां और बड़े फरेब
बदले जा रहे थे रुपयों में
एक संदूक में बदल लिए मैंने रुपए
तुम्हारे जैसा छिछोरापन
तुम्हारे जैसी लालसाएं
तुम्हारे जैसी मुस्कराहटें
झांक रही थीं अपने-अपने फ्रेम से
उन्हें में झांक कर पढ़ा मैंने
उसी बाजार में तुम्हारा प्रेम पत्र
बाजार में प्रेम पत्र भी हो रहे थे नीलाम
टालस्टाय के लेनिन के नेहरू के
एक छोटे कवि को लिखा गया प्रेम पत्र भी
नीलाम हुआ था और उसे मिले थे पूरे एक लाख
पर तुम्हारे प्रेम पत्र को पैसों में
बदलने से मैंने किया परहेज
बाजार में साधुओं ने खरीदे भक्त
आतंकियों ने खरीदी अमानुषिकता
नेताओं ने खरीदे वोटर मंत्रियों ने खरीदे सांसद
और पूंजीपतियों ने सरकार
वैसे ही लेकिन मैंने खरीदा एक संदूक
यह भी तो नहीं हो पाता कि हाट लगे
और बिकवाली न हो
बाजार में हों आप और कुछ भी न खरीद कर लौंटें
वैसे भी अपने कुछ रुपयों में मैं नहीं खरीदता संदूक
तो मां खरीदती चिमटा बहन खरीदती नेपकिन
या पापा खरीदते ऐसे ब्लेड वाला रेजर
जो उनकी खुरदरी दाढ़ी को
एक महीने तक साफ कर पाता
लेकिन मैंने खरीदा एक संदूक
छिपाए रखने के लिए तुम्हारा प्रेम पत्र
उस अकेलेपन के लिए
जब मैं नितांत अकेला होऊं और
बाजार के बाजीगर ढोल मजीरा पीट रहे हों
स्त्रियों के विमर्श से अकेलापन ऐसे
दूर रहता है आदमियों से जैसे अंधेरा उजाले से
और बाजार ऐसे दूर रहता है हर उस आदमी से
जो उनका ग्राहक न हो इसीलिए
जब खरीदी जा रही थीं सभी बिकने वाली चीजें
मैंने खरीद लिया एक संदूक
बुरे समय के लिए यह निवेश
क्या कभी बेवकूफी कहा जाएगा
22.9.08
अनसेफ नहीं है मेरा निवेश
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1 comment:
बहुत अच्छी लगी कविता।
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