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23.9.08

क्या यह सब एक मज़ाक है ??

एक था देश,बड़ा ही विभिन्नताओं वाला और विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहलाने वाला !!इस देश की लोक - तांत्रिकता इतनी बहुमुखी और उदार थी कि यहाँ कोई भी कुछ भी करता रहता था,किसी पर भी कोई बंदिश या पाबंदी वगैरह बिल्कुल नहीं थीं और थोडी- बहुत अगर थी भी तो वह सिर्फ़ गरीब और मजलूमों के लिए ही थीं !! देश की इस उदारता का लाभ देश के तमाम लोग तमाम वक्त उठाया करते थे,हर जगह गन्दगी करने,मल-मूत्र निकास करने वगैरह के लिए तो खैर देश में कोई कमी ही न थी,मगर हद तो यहाँ तक थी कि यह देश तमाम तरह के आतंकवादिओं और देशद्रोहियों की भी पनाहगाह था ,अचरज की बात तो यही थी कि इस देश की तमाम जेलों में तो आधे से ज्यादा लोग तो निर्दोष ही कैद रहते थे, मगर दुर्दांत से दुर्दांत अपराधी,हत्यारे,लूटेरे, व्यभिचारी,आतंकवादी और देशद्रोही छुट्टे सांड की तरह खुलेआम अपने "लिंग"(ताकत)का प्रदर्शन करते घुमते रहते थे !!तथा बड़े आराम से वे रंगधारी वसूलते,डकैती करते, गोली-चाकू या कुछ भी चलाते,माँ-बहनों की इज्ज़त लूटते,जमीन हड़पते,किडनैप करते या कुछ भी ऐसा करते , जिससे लोगों की जिंदगी हराम होती थी,कर के किसी नेता या किसी सफेदपोश की पनाह में चूहों की तरह छिप जाते थे !!...मज़ा यह कि सारी राज्य-सरकारें और केन्द्र-सरकार उनकी पनाहगाह और पनाह्गारों का पता जानती थी,मगर भूले से भी उनके गिरेबान हाँथ नहीं डालती थीं,किसी ऊपर की गाज गिरने की संभावना तथा अपने भविष्य के मटियामेट होने से डरती थीं !!बेशक इस डर से देश ही क्यूँ न मटियामेट हो जा रहा हो!!और वह देश सचमुच वहां के आम लोगों की कब्रगाह होता जा रहा था !!क्योंकि उस देश का कानून भी इतना पेचीदा था कि एक साफ़ तौर पर मुकम्मल अपराधी और देश की सुरक्षा के लिए खतरनाक व्यक्ति को भी सज़ा होते- होते वर्षों-वरस लग जाते थे !!तुर्रा यह कि अधिकाँश लोग तो बा-इज्ज़त !!ही बरी हो जाते थे,बहुत कम मामलों
दोषियों को सज़ा मिल पाती थी !!सो कानून की जटिलता और राजनीतिकों के द्वारा अपराधियों को संरक्षण देने के कारण समयांतर में ऐसे लोगों का मनोबल इतना ज्यादा बढ़ गया कि जिन आतंकवादियों को किसी पश्चिमी देश में मच्छर की तरह मसल दिया जाता,वे टुच्चे लोग यहाँ ई-मेल करके देश को बताते कि आज अमुक शहर में इतने स्थानों पर बम का धमाका कर पूरे शहर को दहला दिया जाएगा !!और सचमुच अगले कुछ ही मिनटों
सारा शहर थर्रा देने वाली चीखों और रोंगटे खड़े कर देने वाले बम-धमाकों से सुबक उठता !!बेशक वहां खुफिया एजेंसी और देश की सुरक्षा के लिए काम करने वाली कई संस्थाएं मौजूद हों ....मुस्तैद अलबत्ता नहीं थीं!!आए दिन शहर-दर-शहर एक- के-बाद-एक धमाकों से पूरा शहर हिल जाता.....और पूरा तंत्र यकायक जाग उठता ....अच्छा जी !हाँ जी !नहीं जी !ठीक है जी !अबके नहीं होगा जी !हम इस सबका जवाब देने को तैयार हैं जी ! ये देश शत्रु हैं जी !बस चार दिनों में इनसे निबट लेंगे जी !ये कायरतापूर्ण कृत्य है जी !!....और अगले चार दिनों में कोई कारवाई होती-ना-होती....तमाम महकमे फिर खर्राटे भरते दिखाई देते.....!!और चार हफ्ते बीतते-न- बीतते फिर वैसे ही धमाकों से सब चौंक पड़ते !!हालत तो यहाँ तक थी कि देश की राजधानी भी इन सबसे महफूज़ न थीं ,बल्कि वह बार-बार इसका निशाना बनती थी ! ऐसा लगता था कि आम आदमी से ज्यादा वहां आतंकवादी ही सुरक्षित थे,क्योकि देश संसद तक को वे नहीं छोड़ते थे !!उस नामालूम से नाम वाले देश की राजधानी का नाम बिल्ली या ऐसा ही कुछ था !!मगर बिल्ली बेचारी बचती तो बचती कैसे ??क्योकि उसे कुत्ते नोच-नोच कर खा रहे थे !और उस देश के तो कुत्ते,कहते हैं,हड्डी भी नहीं छोड़ते थे !!

1 comment:

Anonymous said...

भैये,
बहुत खूब लिखा, बेहतरीन है, उगलते रहिये और साड़ी उल्टियां पेले रहिये.