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29.9.08

कौन सफल है आतंकवाद या राजनीति?

पिछले कई माह देश के लिए बम के धमाके लाते रहे. हरेक धमाकों में लोग मरते रहे और राजनीति जिन्दा होती रही. हर धमाके के बाद पुलिस, जांच संगठन, सरकारें, मंत्री आदि बड़ी तेजी दिखाते नजर आए. लगा कि एक झटके में आतंक फैलाने वाले पकड़ लिए जायेंगे पर जब तक किसी तरह की सफलता मिलती तब तक एक और धमाका हो जाता. धमाकों पर धमाके और बयान पर बयान, आतंक और राजनीति एक साथ चलती रही। समझ नहीं आ रहा था कि जैसे आतंकवाद से राजनीति हो रही है या फ़िर राजनीति के कारण ये आतंकवाद फ़ैल रहा है।
कुछ भी हो पर नेताओं ने अपने-अपने स्तर पर अपनी जानकारी देनी शुरू कर दी. किसी को लग रहा था कि पकिस्तान का हाथ है, कोई कह रहा था कि सिमी अपना जाल फैला रहा है किसी का कहना था कि इस संगठन पर प्रतिबन्ध सही है तो कोई कह रहा था कि यदि सिमी पर प्रतिबन्ध है तो बजरंग दल पर भी प्रतिबन्ध होना चाहिए. जितने मुंह उतनी बातें, अब सबका ध्यान इस तरफ़ था कि किस दल पर क्यों और किस तरह का प्रतिबन्ध लगे? अब जांच बंद हो गई, सुरक्षा का बंदोबस्त ढीला कर दिया गया. बस आतंकियों को मौका मिला और फ़िर धमाका.............
अब फ़िर शुरू हुई जांच, बयानवाजी, प्रतिबन्ध की बातें बगैरह-बगैरह........... इन सबके बीच कभी मन में आता है कि कौन सफल रहा "आतंकी" जो धमाके करके दहशत फैला रहे हैं या फ़िर "राजनेता" जो इसी दहशत का लाभ उठा कर भेदभाव को और हवा दे रहे हैं?
सुरक्षा व्यवस्था तो सफल है ही नहीं पर सोचना होगा कि कौन सफल है आतंकवाद या राजनीति?