Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

25.9.08

फिर सुर्खियों में आया जामिया नगर

शुक्रवार, 19 सितंबर, 2008 को 14:40 GMT तक के समाचार
बीबीसी हिंदी डॉटकॉम से साभार
अब्दुल वाहिद आज़ाद बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए, दिल्ली से

फिर सुर्खियों में आया जामिया नगर
दिल्ली का जामिया नगर इलाक़ा फिर सुर्खियों में छाया हुआ है. शुक्रवार की सुबह पुलिस मुठभेड़ में वहाँ दो संदिग्ध चरमपंथी मारे गए.
जामिया नगर में पुलिस और चरमपंथियों के बीच मुठभेड़ की ये कोई पहली घटना नहीं है. इससे पहले भी वहाँ वर्ष 2000 में पुलिस और चरमपंथियों के बीच मुठभेड़ हो चुकी है.
पिछले वर्ष भी इसी महीने में कथित तौर पर कुरान की तौहीन को लेकर पुलिस और आम लोगों के बीच झड़पें हुईं थीं और एक पुलिस चौकी को आग लगा दी गई थी।

मुस्लिम बहुल इलाक़ा
जामिया नगर एक मुस्लिम बहुल इलाक़ा है. जाकिर नगर, बाटला हाउस, जोगा बाई, ग़फ़्फ़ार मंज़िल, नूर नगर, ओखला गाँव, अबुल फ़ज़ल एनक्लेव और शाहीन बाग सभी जामिया नगर में पड़ते हैं.
ओखला गाँव को छोड़ दें तो सभी मुहल्लों में लगभग पूरी आबादी सिर्फ़ मुसलमानों की ही है।

इन इलाक़ों में अधिकतर लोग उत्तर प्रदेश और बिहार से आकर बसे हैं.
नब्बे के दशक में जब देश में हिंदू-मुस्लिम सांप्रदायिकता की लहर तेज़ थी तब दिल्ली के कई हिंदू बहुल इलाक़ो को छोड़ मुसलमान इस इलाक़े में बसते चले गए।

छात्रों की आबादी
आबादी घनी होती चली गई. अधिकारी मानते हैं कि ये शायद दिल्ली के सबसे तेज़ आबादी बढ़ने वाले इलाक़ों में से एक है.
दूसरी तरफ़ इसी इलाक़े में जामिया मिल्लिया इस्लामिया स्थित है. इस विश्वविद्यालय के कारण ये सिर्फ़ मुस्लिम बहुल इलाक़े के तौर पर ही नहीं बल्कि ऐसे इलाक़े के तौर पर भी जाना जाता है जहाँ पढ़े-लिखे मुसलमान रहते हैं.
हज़ारो की तादाद में छात्र भी वहाँ रहते हैं और वो समाज का एक अहम हिस्सा हैं. छात्र जामिया नगर के धार्मिक और राजनीतिक मामलों में काफ़ी सक्रिय भूमिका निभाते हैं.
इस सबके साथ देश में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करने वाले मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जामात-ए-इस्लामी हिंद सहित अनेक मुस्लिम धार्मिक संगठनों और अन्य ग़ैरसरकारी संगठनों के दफ़्तर भी वहीं हैं।

सद्दाम, मोदी चर्चा का विषय
देश-दुनिया में कहीं कुछ हो, अगर उसका संबंध मुसलमानों से हो तो उस इलाक़े में उसके पक्ष या विपक्ष में आवाज़ें उठनी लाज़मी हैं. सद्दाम, मोदी, कार्टून विवाद, सभी चर्चा का गरमागरम विषय रहे हैं.
जामिया नगर के बाटला हाउस चौक पर अक्सर धार्मिक और राजनीतिक जलसे जुलूस होते रहते हैं.
मैंने देखा है कि इन भाषणों में ऐसी अनेक बाते खुल कर बोली जाती है जिन्हें हर जगह पर सार्वजनिक तौर पर बोलना आसान नहीं है. इनमें 'हिन्दुत्व के प्रतीक' लाल कृष्ण अडवाणी और बाल ठाकरे की कड़ी आलोचना शामिल है.
हालाँकि वक्ताओं के अंदर का उबाल इन भाषणों में साफ़ ज़ाहिर होता है लेकिन आम लोगों का सरोकार इन सब बातों से कम ही होता है। एक बड़ी आबादी के बावजूद किसी भी जलसे जुलूस में मैंने 200-300 से अधिक लोग मौजूद नहीं देखे हैं.

उग्र रवैया और पुलिस की गश्त
जहाँ मुसलमानों की घनी आबादी के कारण कुछ लोग उग्र भी नज़र आते हैं तो पुलिस की निगरानी भी उस इलाक़े में बहुत ज़यादा रहती है. कई मुहल्लों में पुलिस हर समय गश्त लगाती रहती है.
जामिया नगर का काफ़ी इलाक़ा अनाधिकृत है और पुलिस से लेन-देन स्थानीय नागरिकों के लिए कोई असाधारण बात नहीं है. ऐसे में अनेक लोगों को लगता है कि पुलिस उनके साथ ज़्यादती बरत रही है. ये भावना इसलिए भी ज़्यादा होती है कि क्यों कि अधिकतर पुलिस वाले ग़ैर मुसलमान होते हैं.
अनाधिकृत कॉलोनी होने के कारण जामिया नगर के अनेक इलाक़ों में नागरिक सुविधाएँ - बिजली, पानी, सीवर और सड़को की हालत ख़राब है। लेकिन मुसलमानों में ये आम धारणा है कि सरकार मुस्लिम मुहल्ला होने के कारण 'सौतेला सुलूक' कर रही है. कई आम निवासी बातचीत में यह भी अक्सर कहते हैं कि ऐसा तो पूरे भारत में हो रहा है.

थाना आया पर सुविधाएँ नहीं
अनेक निवासियों का तर्क है कि पिछले वर्ष जब पुलिस और आम लोगों की झड़पें हुईं तो वहाँ थाना बना दिया गया.
कई जगह पर चिपकाए गए पोस्टरों में ये सवाल उठाए गए हैं कि सड़क, बिजली, पानी, सीवर, अस्पताल और स्कूल की ख़राब हालत कब सुधरेगी.
वहाँ के मुसलमान निवासी ये कहते हैं कि जब भी देश में धमाका होता है तो डर लगने लगता है क्योंकि पुलिस अक्सर कई लोगों को पूछताछ के लिए उठाकर ले जाती है.
दिल्ली बम धमाकों के बाद भी यहाँ से दो लोगों को पूछताछ के लिए पुलिस ले गई थी. वो दोनों पढ़े लिखे थे. इस घटना के बाद पढ़ा-लिखा वर्ग भी सहमा हुआ है.
शुक्रवार की मुठभेड़ से इलाके में क्या माहौल बनता है ये तो देखना बाक़ी है लेकिन ग़ौरतलब है कि पिछले पाँच साल से इस क्षेत्र में रहने वाले हिंदू छात्रों की संख्या बढ़ रही है. भय सा लगता है कि कहीं इस पनपती साझा संस्कृति पर विराम न लग जाए.

No comments: