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20.9.08

आतंक पर अभिनय बंद हो

आतंक पर अभिनय बंद हो .
क्या कोई कानून आतंक पर रोक लगा सकता है ? बिलकुल वैसा ही प्रश्न क्या कोई तलवार स्वयं किसी पर वार कर सकती है ? उत्तर सिर्फ एक नहीं बिलकुल नहीं ।
क्यों जब कोई आतंकी वारदात होती उसी समय इस तरह के बेहूदी चर्चा होने लगती है । विरोध के लिए सिर्फ विरोध कहाँ तक ठीक है । पोटा लागू हुआ किस पर लगा, रघुराज सिंह और वाइको पर । क्या हुआ ,कुछ नहीं सिर्फ राजनीति केवल राजनीति ।
आतंक सिर्फ एक हथियार से कम हो सकता है वह है 'इक्छाशक्ति' । अगर राजनीति से थोडा ऊपर उठ कर सोचे तो यही एक हथियार है जिससे आतंक का अंत किया जा सकता है ।
आतंकवादी के प्रति नरमी सिर्फ इसलिए की वह अल्पसंख्यक हो सकता है यह ठीक नहीं ,और हिंदुस्तान में सब आतंकी मुसलमान हो यह भी सच नहीं । माओवादी ,नक्सलवादी ,जो पूर्वोत्तर से दखिन तक जो फैले है वह मुसलमान नहीं है यह सत्य है ।
आतंक को धर्म के चश्मे से न देखा जाये तो हिंदुस्तान की सेहत के लिए ठीक रहेगा । आतंकी सिर्फ आतंकी होता है ,उसकी गोली हिन्दू या मुसलमान का सीना नहीं देखती गोली जिस सीने पर लगती है अपना काम कर देती है। आतंक को महिमामंडित न करे ।
सब हिन्दुस्तानी मिल कर सोचे ,एक स्पष्ट नजरिया रखे तब ही इस दानव से पार पा सकेंगे । सब अपनी जिमेदारी महसूस करे ,चाहे वह नेता हो ,मीडिया हो ,आम आदमी हो ।
बहुत हो चुका अभिनय बंद हो , आरोप -प्रत्यारोप बंद हो ,तथाक्तित मानवाधिकार के हिमायतियों पर रोक लगे, हो सके तो कुछ ठोस कदम उठे जिससे कुछ तो शांति मिले । आतंक के खिलाफ जेहाद या कहो धर्म युद्ध शुरू होना चाहिए ।

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