दिल्ली, अहमदाबाद या फिर देश के किसी भी कोने में आंतकियों द्वारा किए जा रहे बम धमाके केवल एक डरी हुई मानसिकता का परिणाम है। आंतकवाद फैलाने का काम कर रहे यह जेहादी और आंतकवादी असल में खुद ही डरे हुए है, इन्हें डर है कि इन चंद मुठ्ठी भर लोगों की कुत्सित मनोवृत्तियां पर कहीं अच्छे और पाक -साफ जज्बात हावी न हो जाए। दुनिया में कहीं भी आंतक के निगेहबान बने यह लोग क्या यह नहीं समझ पा रहे है कि ज़िन्दगी कभी नहीं हारती वह अपनी राह तलाश ही लेती है, चंद बम धमाके और जीवन की मौत उसे नहीं रोक पाते। देश के जिन राज्यों में भी आंतकवादियों ने बम धमाकों को अंजाम दिया वहां की आम आवाम इस सदमे से उबरने के लिए दुगुने जोश से उठ खड़ी होती है। वहीं मानवता को बचाने के लिए मोहन चंद शर्मा जैसे जांबाज जो अपनी जान की परवाह किए बिना आंतक को नेस्तानाबूद करने के लिए कमर कस लेते है, ऐसे शूरवीरों की भी यहां कमी नहीं है... इससे भी बड़ी बात आंतक के ये चेहरे कितने कमजोर होते है कि कुछ निहित स्वार्थों की वजह से यह अपना ही खून बहाने में नहीं झिझकते। इनमे इतना दम नहीं की यह जीवन को रोक पाए, बच्चे की निश्छल मुस्कान, युवाओं की आसमान, छू लेने की इच्छा, बुजुर्गों की हर-पल जीवन को नए अंदाज से देखने की जीवटता क्या यह आंतक इन्हें रोक पाया नहीं और ऐसा संभव भी नहीं है, इसलिए आंतक के इन सायों से हमे डरने की जरूरत नहीं.... आम आदमी से भय खाने की अब आंतक की बारी है। आंतक अब बस कुछ पल का ऐसा मेहमान है जो बस तब-तक टिका है जब-तक हम इस अनचाहे मेहमान की बेइज्जती नहीं शुरू कर देते। यह मेहमान ना हिंदु का है और ना ही मुसलमान का यह तो केवल चंद राह से भटके लोगों से अपनी तीमारदारी करवा रहा है, लेकिन यह तीमारदारी भी अब खुद ही चंद रोज की मेहमान है...
20.9.08
आंतक का कोई चेहरा नहीं होता,लेकिन जिजिविषा हरपल एक नए रूप में दिखाई देती है
Posted by Apni zami apana aasam
Labels: आंतक बस कुछ पल का मेहमान
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2 comments:
very good thought...and u hv used a some sensitive and touching words...
keep it up...
भाई,
बहुत बढ़िया विचारों को सलाम क्यूंकि की इसी भावना की जरुरत है हमें.
बहुत शानदार लिखा, आपको बधाई.
जय जय भड़ास
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