भोंहें चढी हुई हैं चेहरा भी लाल है,
जलवों का उसके देखिये कैसा जमाल है।
अखबार जबसे देख लिया जोहराजबीं ने,
संसद की तरह हो रहा घर में धमाल है।
कश्मीर है तुम्हारा या हमारे बाप का,
पुश्तों से नही सुलझा ये ऐसा सवाल है।
रिश्वत के जुर्म में जो बर्खास्त हो गया,
रिश्वत खिला के हो गया फ़िर से बहाल है।
हासिल फतह मकबूल इन्हे हो या फ़िर उन्हें,
मुर्गे को हरइक हाल में होना हलाल है।
मकबूल.
22.9.08
भोंहें चढ़ी हुई हैं चेहरा भी लाल है.
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