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11.9.08

समाज की स्थिति और वैज्ञानिक परीक्षण

आज दो-तीन दिन बाद ब्लॉग पर लौटना हुआ. इधर कुछ अजीब तरह की व्यस्तता रही. इसी बीच कुछ काम मिला लोगों से मिलने-जुलने का, वो भी अजीब से विषय को लेकर. सरगर्मी हर तरफ़ छाई रही कि दस तारीख को वैज्ञानिक परीक्षणों के कारण प्रलय आने वाली है, सारी धरती नष्ट हो जायेगी. अपनी सामाजिक शोध संस्था "समाज अध्ययन केन्द्र" (SOCIETY STUDY CENTRE) के द्वारा एक छोटा सा सर्वे करने में लग गए. आश्चर्य तो तब हुआ कि पढ़े-लिखे समाज में आज भी ऎसी बातों पर जयादा ध्यान दिया जाता है जिनका कोई भी सर-पैर नहीं होता है। इससे अधिक आश्चर्य की बात तो ये है कि एक ओर तो हम पढ़े-लिखे होने का दम भरते हैं और दूसरी तरफ़ किसी भी आपदा से बचने के लिए उपाय न करके पूजा-अर्चना या फ़िर ज्योतिष के चक्कर में पड़ जाते हैं.
इस वैज्ञानिक घटना को लेकर भी यही सब होता रहा. लोगों में भय रहा और पंडितों-पुरोहितों ने नक्षत्रों का भय दिखा कर अपना उल्लू सीधा किया. यहाँ पंडितों को बढावा देने का काम हमारे तेज-तर्रार मीडिया ने भी किया. समाचार-पत्रों में ख़बरों के अनुसार एक-दो स्थानों पर बच्चों ने डर के कारण आत्महत्या कर ली. मीडिया ने यह दिखाने के कि वैज्ञानिकों के परीक्षण के क्या परिणाम होंगे यह दिखाने में अधिक दिलचस्पी दिखाई कि धरती किस समय नष्ट होगी, कैसे नष्ट होगी?
इस तरह के वैज्ञानिक परीक्षण क्या सिद्ध करेंगे ये तो वैज्ञानिक ही बता पाएंगे पर जहाँ तक व्यक्तिगत रूप से मेरा मानना है कि भारत जैसे देशों को अभी कई वर्षों तक ऐसे परीक्षणों से दूर रहने की जरूरत है. बताया जा रहा है कि इस परीक्षण में भारत ने भी चार करोड़ डालर की धनराशी खर्च की है. यदि एक पल को मान लिया जाए कि इस महाप्रयोग से ज्ञात हो जाएगा कि धरती का जन्म कैसे हुआ, किस तरह अन्य चीजों का विकास हुआ तो उससे किस तरह की तरक्की हो सकती है? एक ऐसे देश में जहाँ अभी भी एक बड़ी आबादी खाने-पीने की समस्या से जूझ रही है, एक बहुत बड़ा भाग अपनी आजीविका के लिए भाग-दौड़ कर रहा है, एक बहुत बड़ा भाग बीमारियों से लड़ रहा है, पोलियो, एड्स, कैंसर आदि जैसी अनेकानेक बीमारियाँ प्रतिदिन जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा समाप्त कर रहीं हो वहाँ इस तरह के प्रयोग पर करोड़ों डालर की रकम खर्च कर देना मेरी दृष्टि में उपयोगी नहीं है।
यदि हम अपने देश की स्थिति पर नजर डालें तो पता चलेगा कि जितना भाग स्वस्थ लोगों का है उससे अधिक बड़ा भाग विकलांगों, परेशानो, बीमारों, भ्रष्टाचारियों, घूसखोरों आदि का है पहले सरकार इस तरफ़ ध्यान दे कि इनकी उत्पत्ति कैसे हुई? इनके जन्म कहाँ से हुआ और इनको रोकने का उपाय क्या हैं? यदि हम स्वस्थ समाज देने के प्रयोग में सफल हो सके तो उसके बाद धरती-आकाश-चाँद-तारों-मंगल आदि के रहस्यों को खोजना सुखद प्रतीत होगा.
तब तक हम किसी भी प्रयोग पर प्रलय आने की आशंका से ही डर कर जीवन जीते रहेगे.

2 comments:

SHEHZAD AHMED said...

doctor sahab aapne bilkul theak hi kha hai. padhe likhi is trah ki bato main jyada visvash karte nazar aa rahe hai. lekin media jagat ko bhi aatm chintan karn hoga ki uski samagik jimmedari hai ki woh samaj main is trah ki khabron ko dikha kar samagik aatankvad na phelanee.

Anonymous said...

सेंगर जी,
समाज के तथाकथित बुद्धिजीवी की इसी कमजोर नस को पहचान कर मीडिया चुतियापे के धंधे में अपने लाला को खुश करने कि मुहीम में जुटी हुई है.
जय जय भड़ास