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7.9.08

भूखे पेट सोते उसी के बच्चे, जो सभी को अन्न है देता

आज इप्टा के एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में जाने का अवसर मिला. संवेदनाओं का सूखा और बुंदेलखंड का किसान विषय पर एक गोष्ठी का आयोजन भी किया गया था. शहर के प्रबुद्ध वर्ग के लगभग सभी लोग वहां उपस्थित थे. अच्छे वक्ता, अच्छे कवि, अच्छे श्रोता भी अपनी उपस्थिति दर्शा रहे थे. ऐसे अवसर एक बार में मित्रों के मेल-मिलाप के मंच का निर्माण भी करते हैं. अपने साहित्यिक मित्रों, सांस्कृतिक साथियों और अन्य लोगों के साथ विविध विषयों पर चर्चा भी हुई.
बात-बात के बीच, गोष्ठी में वक्ताओं द्वारा, कवियों, शायरों द्वारा काव्य रचनाओं, पंक्तियों को भी सुनाया गया. कुछ ने अपनी लिखी सुनाईं, कुछ ने विषय के अनुरूप दूसरे रचनाकारों की रचनाएं सुनाईं. कुछ पंक्तियाँ ऐसी होतीं हैं कि दिल को छू जातीं हैं। यहाँ भी कुछ पंक्तियों ने दिल को छू लिया. ऐसी ही कुछ पंक्तियाँ आपके साथ भी बाँटना चाह रहे हैं. गौर फरमाइयेगा-
एक मित्र ने आज के हालातों पर बात करते-करते कुछ पंक्तियाँ पढीं, आज के सन्दर्भ में बड़ी ही सार्थक लगीं-
राजा ने कहा रात है,
रानी ने कहा रात है,
प्रजा बोली रात है........
ये सुबह-सुबह की बात है।
जावेद की कविता गाँवों के किसानों, कुम्हारों, मजदूरों का मार्मिक चित्रण करती दिखी। उसकी कुछ पंक्तियाँ आपकी नजर हैं।
कोई लेता नहीं घडे, दीवाली के दिए।
अब किसानों ने सदा को चाक धोकर रख दिए।
पनघट सूने, पनिहारिन भी दिखती नहीं।
अब पथिक भी जा रहे हाथ में थर्मेस लिए।
किसानों की दशा को दिखाते एक मित्र की पंक्तियाँ थी कि
कोई नहीं आकर गाँवों की ख़बर है लेता,
भूखे पेट सोते उसी के बच्चे, जो सभी को अन्न है देता।
कार्यक्रम का सञ्चालन कर रहे युशुफ इश्तिहाक ने बीच-बीच में काव्य पंक्तियों से गोष्ठी को प्रभावी बना दिया। एक दो पंक्तियाँ उनकी भी अच्छी लगीं.
उनको तो अपना घर सजाना था,
मेरे घर का लुटना एक बहाना था।
इसके अतिरिक्त बहुत सारी पंक्तियों ने अपना रंग दिखाया। बाक़ी कभी बाद में। आज की अपनी पोस्ट का समापन बुन्देलखण्ड की गरिमा, उसके शौर्य आदि को दर्शाते एक गीत के मुखड़े से (ये पूरा गीत यहाँ गया गया, कभी आपको भी सुनवायेंगे, ये गीत बुन्देलखण्ड की अपनी अलग कहानी कहता है)
बुन्देलखण्ड की सुनो कहानी,
बुंदेलों की बानी में।
पानीदार यहाँ का पानी,
आग यहाँ के पानी में।

3 comments:

यशवंत सिंह yashwant singh said...

भाई, आप बढ़िया लिखते हैं लेकिन आज लगता है गुस्सा कर एक पैरा उपर लिख दिया था, पेलमपेल वाला। माफ करिएगा, उसे हटा दिया। हालांकि हटाने का कोई तुक नहीं था लेकिन इन दिनों भड़ास पर सब कुछ बढ़िया और स्तरीय चल रहा है तो लगता है कि इसे यूं ही चलने दिया जाए। एक सार्थक मंच की तरह डेवलप हो रहा है। आपके लिखे को मैं लगातार पढ़ता हूं और आपके विचारों का मैं जबरदस्त रूप से प्रशंसक भी हूं। उम्मीद है आपकी लेखनी इसी तरह अपने जादू से हम सबको रूबरू कराती रहेगी।
जय भड़ास
यशवंत

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

कुमारेन्द्र भाई,आज आपने मुझे मेरे बचपन का झांसी याद दिला दिया, वो "इतै-उतै" वाली बोली और जन्मजात भड़ासी लोग... न जाने क्या-क्या...
धन्यवाद भाई एक बार फिर से...
जय जय भड़ास

Anonymous said...

बहुत बढ़िया,
जारी रहिये,
लोगों को आपका इन्तेजार रहता है.
जय जय भड़ास