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28.11.08

यह शोक का दिन नहीं

मुंबई पर नहीं भारत पर है यह हमला। कल तक हम नाराज थे कि मुंबई में उत्तर भारतीयों के साथ बदसलूकी की जा रही थी। आज हम दुखी हैं कि हमारी मुंबई को बर्बाद करने पर विदेशी ताकतें तुली हुई हैं। राज ठाकरे एंड कंपनी की बदतमीजी भुलाकर हम इस लिए दुखी हैं क्यों कि हम मराठी और मुंबई को खुद से अलग करके नहीं देखते। यह वक्त नाराजगी जताने का नहीं बल्कि मिलकर देश को तोड़ने की साजिश करने वालों के खिलाफ जिहाद छेड़ने का है। सचमुच यह शोक का नहीं मुट्ठी तानकर खड़े होने का है। राज ठाकरे को भी तुच्छता छोड़कर भारत की इस मूल आत्मा को पहचानना चाहिए। ईश्वर उसे सद् बुद्धि दें और मुंबई पर आतंकवादियों के हमले में मरे लोगों की आत्मा को शांति प्रदान करे। पूरे तीन दिन लोगों को बचाने में जुटे जवान यह सोचकर वहां जान की बाजी नहीं लगाने गए थे कि उन्हें राज ठाकरे की मुंबई को बचाना है। देश की खातिर शहीद हुए इन जवानों मैं सलाम करता हूं। देश का मतलब समझने वालों में यही जज्बा होना चाहिए। कविता वाचक्नवी ने हिंदी भारत समूह पर इसी जज्जे को सलाम करते हुए एक कविता पोस्ट की हैं। आप भी इसका अवलोकन करिए।

यह शोक का दिन नहीं

यह शोक का दिन नहीं,
यह आक्रोश का दिन भी नहीं है।
यह युद्ध का आरंभ है,
भारत और भारत-वासियों के विरुद्ध
हमला हुआ है।
समूचा भारत और भारत-वासी
हमलावरों के विरुद्ध
युद्ध पर हैं।
तब तक युद्ध पर हैं,
जब तक आतंकवाद के विरुद्ध
हासिल नहीं कर ली जाती
अंतिम विजय ।

जब युद्ध होता है
तब ड्यूटी पर होता है
पूरा देश ।
ड्यूटी में होता है
न कोई शोक और
न ही कोई हर्ष।
बस होता है अहसास
अपने कर्तव्य का।

यह कोई भावनात्मक बात नहीं है,
वास्तविकता है।
देश का एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री,
एक कवि, एक चित्रकार,
एक संवेदनशील व्यक्तित्व
विश्वनाथ प्रताप सिंह चला गया
लेकिन कहीं कोई शोक नही,
हम नहीं मना सकते शोक
कोई भी शोक
हम युद्ध पर हैं,
हम ड्यूटी पर हैं।

युद्ध में कोई हिन्दू नहीं है,
कोई मुसलमान नहीं है,
कोई मराठी, राजस्थानी,
बिहारी, तमिल या तेलुगू नहीं है।
हमारे अंदर बसे इन सभी
सज्जनों/दुर्जनों को
कत्ल कर दिया गया है।
हमें वक्त नहीं है
शोक का।

हम सिर्फ भारतीय हैं, और
युद्ध के मोर्चे पर हैं
तब तक हैं जब तक
विजय प्राप्त नहीं कर लेते
आतंकवाद पर।

एक बार जीत लें, युद्ध
विजय प्राप्त कर लें
शत्रु पर।
फिर देखेंगे
कौन बचा है? और
खेत रहा है कौन ?
कौन कौन इस बीच
कभी न आने के लिए चला गया
जीवन यात्रा छोड़ कर।
हम तभी याद करेंगे
हमारे शहीदों को,
हम तभी याद करेंगे
अपने बिछुड़ों को।
तभी मना लेंगे हम शोक,
एक साथ
विजय की खुशी के साथ।

याद रहे एक भी आंसू
छलके नहीं आँख से, तब तक
जब तक जारी है युद्ध।
आंसू जो गिरा एक भी, तो
शत्रु समझेगा, कमजोर हैं हम।

इसे कविता न समझें
यह कविता नहीं,
बयान है युद्ध की घोषणा का
युद्ध में कविता नहीं होती।

चिपकाया जाए इसे
हर चौराहा, नुक्कड़ पर
मोहल्ला और हर खंबे पर
हर ब्लाग पर
हर एक ब्लाग पर।


- कविता वाचक्नवी

5 comments:

niranjan dubey said...

bahut badhiya.

niranjan dubey said...

bahut badhiya.

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

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राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

अपने ब्लॉग पर कविता लगा रहे हैं.....................आपके इस प्रयास में सभी मुट्ठी तान कर खड़े हों, सीना तान कर खड़े हों, विश्वास बाँध कर खड़े हों क्यों की अब लड़ाई का वक्त आने को है.

Anonymous said...

कविता वाचक्नवी ki kavita nahin haen
jab tak sab aankh khol kar chalna nahin shuru karegae kewal shabdo ko yahaan wahaan kareney sae kuch nahin badlae gaa .