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28.11.08

अकेलेपन को बांटता हुआ मिलूँगा

मंद मंद बह रही इस हवा का
कोई अतीत तुम्हें याद है
जिसके स्पर्श से छत पर अकेले बैठे
एक आदमी ने गुनगुनाते हुए
मीलों लंबा पत्र लिखा था

दुनिया की सबसे पवित्र नदी में स्नान करने के बाद
जिसने एक रंग मलना शुरू किया
और रंग धुलने के लिए एक बारिश का इंतजार करता रहा

जिसके बारे में तुमने कहा था
त्वचा के आवरण में वह कितनी ही दीवार खड़ी कर ले
मैं उसके अंदर के आदमी को हाथ पकड़कर बाहर निकाल सकती हूं

कभी सौ बार थपकी देकर सुलाया गया था उसे
और एक बार बिना थपकी लिए वह तुम्हारी
थकान में गुम हो गया था

जब सभी छतें खाली हो गयी
उसके मरने के बाद
वह बादलों को भीगता हुआ मिला था
उसी छत पर अपने अकेलेपन को बांटता हुआ
pawan nishant
http://yameradarrlautega.blogspot.com

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