"मेरी पारी पूरी हो चुकी है ,हर क्रिकेटर का समय होता है , इसके बाद उसे खेल को अलविदा कहना होता है मुझे ख़ुशी है कि भारत ने मेरी आखिरी श्रृंखला जीती। मैंने अच्छा खेला और पूरे संतोष के साथ खेल को अलविदा कह रहा हूँ "।
ये बोलते हुए दादा के चेहरे में साफ झलक रहा था की दादा का सन्यास लेने के पीछे कोई न कोई कहानी जरूर है जो शायद कुछ दिनों के बाद हम जान पाएंगे । ईरानी ट्राफी में शामिल न करना और आस्ट्रेलिया टीम में दादा का चयन होना अपने आप में एक अबूझ पहेली है । जहाँ तक दादा का क्रिकेट को अलविदा कहने की बात है मेरे विचार से यह दवाब में लिया गया फैसला है । दादा ,बोर्ड और चयन समिति के बिच चल रहा आपसी टकराव के कारन ही पहले दादा को टीम की कप्तानी से हाथ धोना पड़ा और फिर टीम से जाना पड़ा, लेकिन ये बंगाल का शेर ही था जो कभी हर नहीं माना , उसने हर परिस्थिति का सामना किया और टीम में वापसी करता रहा । बोर्ड की राजनीती और चयन समिति की बेरुखी के कारन गांगुली ने इस खेल से ही अपने को दूर रखना उचित समझा और अनमने मन से संन्यास लेने को मजबूर होना पड़ा । आज भारतीय क्रिकेट में कोई नहीं है जो दादा की जगह ले पायेगा। दादा ही एकमात्र इसे खिलाडी है जिन्होंने भारतीय क्रिकेट को बुलंदिओं तक पहुचाया जिसने लड़ना सिखाया। दादा भारतीय क्रिकेट में हमेशा याद आते रहेंगे । मझे दुःख होता है की अब हम दादा का दादागिरी नहीं देख पाएंगे। अंत में बी। सी. सी .ई से इतना कहना है की कमसे कम इन वरिष्ट खिलाडियों का सम्मान करना चाहिए जिन्होंने अपने जिंदगी के १५ - १५ साल देश के लिए खेलते हुए गुजरें हो ।
दादा अलविदा....
दादा अलविदा....
1 comment:
akash ji aapne bahut sahi kaha hai dada ek ase sakhsh rahe jo hamesh wiwadon me rahe unki vidai cricket premion ko rula gai hai
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