तुम मुझे भूल जो नहीं जाओगे? किसी और से बात मत करना प्लीज और मेरा इंतजार करना समय से खाना खा लेना और सुबह उठते ही पहले मेरा संदेश पढ़ना। अब मैं आपको रोज सुबह जगाया करूंगी तभी उठना। चलो अब सो जाओ। यह डॉयलाग सभी केसाथ उस समय घटता है जब वह प्यार के अपने पहले या दूसरे दिन में होते हैं और बात आई लव यू तक पहुंच जाती है। दुनिया हसीन लगने लगती है हर तरफ सिर्फ एक प्यारा सा संसार दिखाई देता है जिसमें सब अच्छे लगते हैं। कुल मिलाकर जिंदगी मोबाइल फोन और इंटरनेट केइर्द-गिर्द घिरकर रह जाती है। उसका इंतजार रहता है जिसके साथ चार दिन में चार सौ साल तक जीने तक केसपने देख लिए जाते हैं।
पर जैसे-जैसे दिन बीतते हैं बस प्यार में शिकायतें दस्तक देती हैं। डायलॉग बदल जाता है। प्यारा सा अहसास दिलाने वाली सारी बातें समय केसाथ धूमिल हो जाती हैं। फिर कुछ इस तरह से डायलॉग बनने लगते हैं।
मैंने तुहें फोन किया था। तुहारा फोन व्यस्त जा रहा था तुम किससे बात कर रहे थे। वह जरूर कोई लड़की या लड़का रहा होगा। तुम मुझे भूल रहे हो? आज तुमने पूरे दिन में मुझे एक बार भी याद नहीं किया। आखिर इतने जल्दी ऐसा क्या हो गया कि तुहें मेरी परवाह नहीं रही। इस तरह से चलते-चलते एक दिन ऐसा आता है कि शिकायतों और गुस्से के बवंडर में फंसकर पहले दिन के किए गए वादे और सारे प्यारे अहसास दुश्मनी में बदल जाते हैं। इसके बाद में जब प्यार का अंत होता है तो उसकी शुरुआत और भी भयानक होती है। जो कुछ सप्ताह पहले एकदूसरे के बगैर जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता था वह अब अपने दोस्तों में बैठकर अपने प्यार को जलील कर रहा है। उसकी गलतियां गिना रहा है। ये अंश जो मैंने लिखे हैं आज के प्यार की वास्तविकता है अब यह आप पर निर्भर करता है कि आप इसे क्या नाम देंगे। क्या यह सच में वही वाला प्यार है जिसे लैला-मजनू और हीर रांझा ने किया था। या फिर अब जरूरतों वाला प्यार है जिसमें एक इनफैचुएशन केसिवा कुछ और नहीं है। हर कोई किसी को चाहता है पर उसकेप्रति कितना गंभीर रहना चाहता है इसका वादा वह ना खुद से करता है ना ही उसका आभास अपने साथी को होने देता है। इस तरह से कुल मिलाकर कहा जा सकता है यह एक तरह की बीमारी है जिसमें बहुत से लोग एक दूसरे को मरने मारने पर उतारू हो जाते हैं। जिसका उदाहरण मुझे देने की जरूरत नहीं है अखबार समाज का आइना हैं उसमें हर दिन ऐसी खबरें प्रकाशित होती हैंं जिसमें प्यार के अंत का बेहतर उदाहरण दिया जाता है। पर मैंने अब तक जो देखा है वह मैंने बताया। अब आगे आप क्या सोचते हैं वह मुझे बताएं। और आधुनिक समाज के प्यार की एक परिभाषा देने में मुझे मदद करें जिसे मैं अपने अगले किसी पोस्ट में प्रयोग कर सकूं।
पर जैसे-जैसे दिन बीतते हैं बस प्यार में शिकायतें दस्तक देती हैं। डायलॉग बदल जाता है। प्यारा सा अहसास दिलाने वाली सारी बातें समय केसाथ धूमिल हो जाती हैं। फिर कुछ इस तरह से डायलॉग बनने लगते हैं।
मैंने तुहें फोन किया था। तुहारा फोन व्यस्त जा रहा था तुम किससे बात कर रहे थे। वह जरूर कोई लड़की या लड़का रहा होगा। तुम मुझे भूल रहे हो? आज तुमने पूरे दिन में मुझे एक बार भी याद नहीं किया। आखिर इतने जल्दी ऐसा क्या हो गया कि तुहें मेरी परवाह नहीं रही। इस तरह से चलते-चलते एक दिन ऐसा आता है कि शिकायतों और गुस्से के बवंडर में फंसकर पहले दिन के किए गए वादे और सारे प्यारे अहसास दुश्मनी में बदल जाते हैं। इसके बाद में जब प्यार का अंत होता है तो उसकी शुरुआत और भी भयानक होती है। जो कुछ सप्ताह पहले एकदूसरे के बगैर जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता था वह अब अपने दोस्तों में बैठकर अपने प्यार को जलील कर रहा है। उसकी गलतियां गिना रहा है। ये अंश जो मैंने लिखे हैं आज के प्यार की वास्तविकता है अब यह आप पर निर्भर करता है कि आप इसे क्या नाम देंगे। क्या यह सच में वही वाला प्यार है जिसे लैला-मजनू और हीर रांझा ने किया था। या फिर अब जरूरतों वाला प्यार है जिसमें एक इनफैचुएशन केसिवा कुछ और नहीं है। हर कोई किसी को चाहता है पर उसकेप्रति कितना गंभीर रहना चाहता है इसका वादा वह ना खुद से करता है ना ही उसका आभास अपने साथी को होने देता है। इस तरह से कुल मिलाकर कहा जा सकता है यह एक तरह की बीमारी है जिसमें बहुत से लोग एक दूसरे को मरने मारने पर उतारू हो जाते हैं। जिसका उदाहरण मुझे देने की जरूरत नहीं है अखबार समाज का आइना हैं उसमें हर दिन ऐसी खबरें प्रकाशित होती हैंं जिसमें प्यार के अंत का बेहतर उदाहरण दिया जाता है। पर मैंने अब तक जो देखा है वह मैंने बताया। अब आगे आप क्या सोचते हैं वह मुझे बताएं। और आधुनिक समाज के प्यार की एक परिभाषा देने में मुझे मदद करें जिसे मैं अपने अगले किसी पोस्ट में प्रयोग कर सकूं।
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