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29.11.08

क्या हम तैयार हैं?

अपने वीर जवानो ने मुंबई में फ़िर एक बार साबित कर दिया कि अगर हम लोग चैन से सो सकते हैं तो सिर्फ़ उनकी बहादुरी, इमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा की बदौलत।
अपने कायर नेताओं ने फ़िर एक बार साबित कर दिया कि हम आम इंसान शान्ति से सुरक्षा में नहीं जी सकते, बदौलत उनकी भ्रस्टाचारी, बेईमानी, धूर्तता और सिर्फ़ और सिर्फ़ सत्ता की निकृष्ट राजनीति के।
बहुत खुशी और गर्व की बात है कि हिन्दुस्तान के खून में गर्मी और साहस है जो दिखाई दिया मुंबई में।
बहुत दुःख और अफ़सोस की बात है कि हम इस खून का यूँ बहना रोक नही पाये।
ये खून इस तरह बहने देना ज़रूरी नहीं है , लेकिन मजबूरी ज़रूर है। व्यवस्था लचर है और हम लाचार।
अपनी व्यवस्था है, अपना देश है, अपने ही निर्दोष लोगों की जाने बेवज़ह चली जाती हैं!
वो जो आए हमें मारने को, बाहर के लोग थे। लेकिन ये जो जिम्मेदार हैं इस सबके, पूज्य नेतागण, ये कैसे हमारे हुए!
मज़ा ये है इन तमाम बातों और हादसों के बावजूद ये अपने ही सर पे सवार अपने ही दुश्मन, फ़िर से अपने सरों पे सवार रहेंगे और हम सब इनका कुछ नहीं बिगाड़ सकेंगे। ज्यादा से ज्यादा एक निकम्मे को एक दूसरे निकम्मे से बदल सकते हैं। ये हमारी मजबूरी है , नियति है!
और अगर हम नियति बदलने की सोच सकें कभी, तो ये तय है की एक बहुत बड़ी सोच की ज़रूरत होगी!
क्या हम तैयार हैं??

1 comment:

Sadhak Ummedsingh Baid "Saadhak " said...

व्यक्ति भले हो अच्छा, लेकिन तन्त्र बुरा है ज्यादा.
ऊँचे-ऊँचे महारथियों को, ब्ना दिया है प्यादा.
बना दिया है प्यादा, दुश्मन जान गये हैं.
भारत की असमत से खेलना जान गये हैं.
कह साधक अब तन्त्र बदलना बहुत जरूरी.
जैसे भी हो सोचो बन्धु,मगर यह काम जरूरी.