धार्मिक स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार हमारे देश की धर्म-निरपेक्ष विचारधारा ने कभी धर्म को अस्वीकार नहीं किया बल्कि संविधान के निर्माताओ ने देश के नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार प्रदान किया है संविधान के अनुछेद २५ (क) और (ख) में किसी भी व्यक्ति द्वारा कोई भी धर्म और उसके कर्मकांडों को मानने का अधिकार है, बशर्ते वह छुआछुत जैसे ग़लत विचारधारा को न माने कोई भी व्यक्ति अपनी धार्मिक संस्थाएं स्थापित कर सकता है धार्मिक शिक्षाएं दे सकता है एवं अपने धर्म का प्रचार भी कर सकता है किसी भी व्यक्ति को कोई रोक-टोक नहीं है और पूरी स्वतंत्रता है की वह अपने धर्म को माने अगर कोई तीसरा व्यक्ति या राज्य उसके किसी भी मौलिक अधिकार का हनन करता है तो वह सीधे उच्चतम न्यायालय में जाकर उचित व्यवस्था प्राप्त कर सकता है अतः एक तरीके से सभी प्रकार के व्यक्तिओं को यहाँ सुरक्षा की पूरी गारेंटी है अतः किसी भी प्रकार की विचारधारा चाहे वह धार्मिक हो या वैज्ञानिक, किसी पर भी थोपी नहीं जा सकती यह स्वतंत्रता एवं कानून के विरुद्ध हैं दरअसल कुछ लेखक धर्म एवं ग़लत सोच में अन्तर नहीं कर पाते वे मानवता हीन सोच को धर्म मान बैठते हैं उनमे नैतिक मूल्यों को समझने की ताकत भी नहीं हैं आज के लेखक अपने में बहुत संदेही है यह घोर आश्चर्य की बात है और मुझे लेखकों से कोई उम्मीद भी नहीं जो आजादी के ६१ साल बाद भी भ्रष्टाचार और दहेज़ प्रथा जैसे कानून विरुद्ध अभिशाप को रोकने में नाकाम हुए हैं और संविधान के अनुकूल अधिकारों का प्रयोग करने वाले भोले लोगो को ठेस पहुंचाकर अपने कर्तव्य की सराहना करते हैं अतः आज के अधिकतर लेखक अपने विचारों को थोपते हैं जो समाज के लिए ग़लत संकेत हैं
12.11.08
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