विनय बिहारी सिंह
ऐसे लोग आपको अक्सर दिख जाएंगे जो हाथ में माला फेर रहे हैं और बात भी कर रहे हैं या किसी महिला की ओर टकटकी लगाए देख रहे हैं या बेटे को कह रहे हैं- जरा अमुख काम कर दो। संत कबीर ने पूजा पाठ के ऐसे ही पाखंडों पर जम कर चोट किया। जैसे-कर का मनका छाड़ि के मन का मनका फेर यानी कर (हाथ) में माला लेकर जाप करने करना छोड़ो। तुम्हारा मन भटक रहा है। मन की माला जपो। तब मन कहीं नहीं भटकेगा। कबीर दास ने एक और प्रवृत्ति पर चोट की। उन्होंने कहा-दाढ़ी बढ़ाय जोगी, होय गैले बकराकाम जराय जोगी होय गैले हिजड़ा।।यानी दाढ़ी बढ़ाने और यौन भाव खत्म करने से कोई सन्यासी नहीं हो जाता। इसके लिए ऋषि पातंजलि का योग सूत्र अपनाना पड़ता है यानी- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। सिर्फ बाहरी रूप सज्जा और काम भाव को जीतने से कुछ नहीं होता। वरना तो हिजड़े भी ऋषि हो जाते। सचमुच हमें कबीर को पढ़ते रहना चाहिए।
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