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18.11.08

अल्फाजों मे वो दम कहा

संजय सेन सागर की यानि मेरी एक अधूरी सी कविता आपके लिए इस बादे के साथ की कल यह अधूरी कविता पूरी होगी यही पर भड़ास पर और मेरे ब्लॉग पर !यार अभी मैं कैफे मे हूँ और पूरी कविता दिमाग से निकल गयी है और कल तक रुक नहीं सकता सो अभी आधी ही सुन लो लो हां भैया कल सबको आना है.....तो तब तक के लिए देखते रहिये भड़ास और हिन्दुस्तान का दर्द [www.yaadonkaaaina.blogspot.com]


अल्फ़ाज़ों मैं वो दम कहाँ जो बया करे शख़्सियत हमारी,
रूबरू होना है तो आगोश मैं आना होगा ,
यूँ देखने भर से नशा नहीं होता जान लो साकी,
हम इक ज़ाम हैं हमें होंठो से लगाना होगा.

हमारी आह से पानी मे भी अंगारे दहक जाते हैं,
हमसे मिलकर मुर्दों के भी दिल धड़क जाते हैं,
गुस्ताख़ी मत करना हमसे दिल लगाने की साकी,
हमारी नज़रों से टकराकर मय के प्याले चटक जाते

जब हमसे कोई जुदा होता है तो जैसे मछलियाँ पानी से जुदा हो जाती है
हमारी याद मे ये हवा भी जल जाती है
हमें मिटाने की बेकार कोशिश ना करो तुम ,
क्यों की जब हम दफ़न होते हैतो ये जमी भी पिघल जाती है!!
संजय सेन सागर

1 comment:

Anonymous said...

great , super, fantastic poem friend.........
first time bhadas par itni bhadaas bhari kavita padne mili.....nice job.......