मुंबई दहली, देश दहला। लगातार तीन दिन तक देश के जांबाजों ने जान पर खेलकर ताज, ओबेराय और नरीमन हाउस को आतंकियों से मुक्त कर आमची मुंबई भारत को सौंप दिया। इस दौरान हम जैसे आम नागरिक असीम व्यथा, बेचैनी और संत्रास के बीच खुद को पा रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि यह हो क्या गया। कुछ इस तरह जैसे इसकी कभी कल्पना भी किसी ने न की होगी। अब शीर्ष स्तर पर कई कवायदें हो रही हैं। एसपी के बदले पीसी गृह मंत्री बना दिये गये हैं। मुंबई के बड़बोले मुख्यमंत्री और गृह मंत्री को बदलने की बातें चल रही हैं। वे निर्लज्ज की तरह कह रहे हैं- इस्तीफा देने का सवाल ही नहीं पैदा होता- और इसी तरह कई डेवलपमेंट्स हो रहे हैं। अब जाकर पाकिस्तान के साथ युद्ध विराम का समझौता तोड़ने, एलओसी पर पर्याप्त फौज भेजने, बस और ट्रेन सेवा रद करने की बात हो रही है। भारत का जनवरी में होनेवाला पाक दौरा रद्द कर दिया गया है। कई गतिविधियां चल रही हैं। पर दो सौ नागरिकों के हताहत होने और २४ सुरक्षाबलों की शहीदी के बाद। इसके पहले भी आतंकी हमले हुए हैं, पर सरकार ने कुछ नहीं किया। यह हमला इतना बड़ा था कि सरकार को कहना पड़ा-इट्स ए वार लाइक इमरजेंसी।
पर क्या इतना सबकुछ होने के बाद हम यह आशा कर सकते हैं कि लिजलिजे, रीढ़हीन, वोटपरस्त, अनैतिक और बेशर्म राजनेता अपना स्टैंड बदलेंगे। कम से कम मुझे इस बात का जरा भी यकीन नहीं है कि ये नेता ऐसा करेंगे। ये लोगों के जख्म भरने का तबतक इंतजार करते हैं, जब तक कोई दूसरा जख्म देने के लिए धमक न पड़े। अभी सारे बड़बोले नेता चुप हैं। उनको काठ मार गया है। इनकी निर्लज्जता देखिए। केंद्रीय इस्पात मंत्री रामबिलास पासवान ने २७ नवंबर को रांची में रैली की, सभा की, भाषण भी दिया। देश के सैनिक जूझ रहे थे, ये नरपिशाच राजनीति भुनाने में लगे थे। इस बार जनता आक्रोश में है। जनता को समझ आ गया है कि सारे फसाद की जड़ ये नेता ही हैं। ये जरा भी बोलें, तो इनका मुंह नोच लेगी जनता। महाराष्ट्र की सरकार ने क्या किया। कोस्टल सिक्यूरिटी की फाइल वर्षों दबाकर रखी। १० भाड़े के पाकिस्तानी आये और कहर बरपा कर चले गये। इसपर भी महाराष्ट्र का गृहमंत्री आरआर पाटिल बयान देने से बाज नहीं आये। निर्लज्जता से कहा- इतने बड़े शहर में ऐसी छोटी-छोटी घटनाएं होती रहती हैं। जरा भी शर्म नहीं आयी। ऐसा व्यक्ति लगातार राज्य का गृह मंत्री बना रहता है और इतना अनैतिक है कि इस्तीफे की पेशकश भी खुद नहीं करता। जरा सोचिए, इनके हाथों में देश कितना सुरक्षित है? करकरे, सालस्कर, पाटिल, गजेंद्र सिंह समेत २० सुरक्षा जवानों की शहीदी से ही देश आज सुरक्षित है। उनके परिजनों की आंखों के आंसू पोंछने जाने का दिखावा करनेवाले नेताओं को क्या पता है इस शहीदी का मतलब? गोलियां मुंबई में उनको लगीं, सारा देश मर्माहत हो उठा। शहीद होनेवाले लोग देशवासियों के रिश्तेदार नहीं लगते थे, पर उन्होंने देशवासियों के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी। इसलिए हर देशवासी आज खून के आंसू रो रहा है। देश के लोग बेहद सदमे, गुस्से और आक्रोश में हैं। बार-बार देश की जनता की सुरक्षा और सेंटीमेंट्स से खेलनेवाले नेताओं में से दो-तीन को भी अगर उग्रवादियों ने मार गिराया होता तो शायद लोगों की आंखों में इतने आंसू न होते, जितने सुरक्षाबलों के शहीद होने पर हैं। इस व्यथा, बेचैनी और संत्रास की कीमत ये वोटलोलुप नेता कब चुकाएंगे, इसी का इंतजार है।
30.11.08
व्यथा, बेचैनी और संत्रास
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