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15.11.08

एक और अध्‍याय बंद हुआ

आचार्यराज का गुरुवार रात हृदयगति रुक जाने से निधन हो गया। ये वे ही आचार्यराज हैं जिनके साथ अमृता प्रीतम ने सितारों के अक्षर किरणों की भाषा और सितारों के संकेत पुस्‍तकें लिखी थीं। इसके अलावा लम्‍बे समय तक धर्मयुग, आनन्‍द बाजार पत्रिका और अन्‍य कई पत्र पत्रिकाओं में लिखते रहे।
ज्‍योतिष के क्षेत्र से जुडे़ अधिकांश लोग आचार्यराज का नाम जानते हैं। कुछ नए लोग नहीं जानते हैं तो इसके दो कारण हैं। एक तो यह कि नए लोग प्रयोग के बजाय सहज सुलभ तरीकों से सीखकर आगे काम करने में रुचि दिखाते हैं और दूसरा कारण यह भी कि पिछले दस बारह साल से आचार्यराज इस क्षेत्र में अधिक सक्रिय नहीं थे। या कहूं तो सक्रिय नहीं थे। बताया जाता है कि शादी के बाद आचार्यराज ने अधिकांश समय यायावर की तरह बिताया। मैं नहीं जानता कि इसमें कितनी सच्‍चाई है लेकिन उनका कर्मक्षेत्र कोलकाता, दिल्‍ली और मुम्‍बई में रहा। बहुत कम ज्‍योतिषी ऐसे होते हैं जिन्‍हें ऐसा सम्‍मान मिलता है कि राष्‍ट्रपति भवन में रहने के लिए कमरा दिया जाए। तत्‍कालीन राष्‍ट्रपति जाकिर हुसैन के काल में आचार्यराज उन्‍हीं के भवन में रहे थे। अमृता प्रीतम के साथ लिखी किताबों ने उन्‍हें पूरे देश में प्रसिद्ध कर दिया। हालांकि उन्‍होंने खुद ने कोई किताब नहीं लिखी लेकिन उनके नाम से कई लोगों को ज्‍योतिष का अच्‍छा रोजगार मिला हुआ है।
आचार्यराज ने अपने सक्रिय दिनों में ही घोषणा कर दी थी कि वे 73 या 74 वर्ष की आयु में दिवंगत होंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कुछ कहते हैं गणेश की उपासना कर उन्‍होंने मौत को धोखा दिया तो कुछ ने उनके फलादेश को ही गलत माना। कहा भी जाता है कि जन्‍म और मृत्‍यु के बारे में केवल ब्रह्मा ही बता सकते हैं ब्रह्मा के पुत्रों यानि ज्‍योतिषियों को यह अधिकार नहीं है। खैर उनकी बताई तारीख को उन्‍हें गंभीर रूप से पक्षाघात हुआ और वे लम्‍बे समय के लिए बिस्‍तर पर आ गए।
जिन दिनों वे स्‍वास्‍थ्‍य लाभ ले रहे थे उन्‍हीं दिनों में मेरे एक मित्र ने मुझे बताया कि एक नेशनल फेम के ज्‍योतिषी इन दिनों बीकानेर लौटे हुए हैं चल चलकर मिलके आते हैं। साथ ही उसने यह भी बता दिय कि पिछले दिनों उनकी खुद पर की गई उक्‍त भविष्‍यवाणी गलत हो चुकी है। मैं दोहरे आश्‍चर्य के साथ आचार्यराज से मिलने के लिए गया। हालांकि उन दिनों में ज्‍योतिष की क, ख, ग... सीख रहा था सो उनसे खुलकर बात नहीं कर पाया। लेकिन उन्‍होंने हमारी भावना को समझा और हमें यह सिखाने का प्रयास किया कि किसी एक विचारधारा से जुड़कर मत बैठो हर कहीं ज्ञान बिखरा हुआ है। तुम्‍हारी कुव्‍वत होनी चाहिए उसे समेट लेने की। दिमाग की खिड़कियां खुली रखोगे तो लाल किताब और रुद्राभिषेक में समान रूप से ज्‍योतिष के सूत्र ढूंढ निकालोगे वरना परम्‍परागत तरीके के पंडित होकर रह जाओगे।
मैं नहीं जानता कि मैं कितना ग्रहण कर पाया लेकिन एक के बाद दूसरी और तीसरी मुलाकात हुई। ये तीनों मुलाकातें मेरे लिए अविस्‍मरणीय हैं। उनके एक वाक्‍य 'संकल्‍प में विकल्‍प आने पर संकल्‍प नष्‍ट हो जाता है' को मैं पहले पेश कर चुका हूं। और भी कई बातें हुई उन दिनों। कुछ याद आएगा तो फिर बताउंगा।
आज उनके दाह संस्‍कार में जाकर आया। शमशान में मुझे महसूस हुआ कि पंडित बाबूलालजी शास्‍त्री के रूप में बीकानेर ने पांचांग और ज्‍योतिषीय गणनाओं वाला एक विशद विद्वान खोया था आज आचार्यराज के रूप में एक प्रयोगशील विशिष्‍ट हस्‍ती को खोया है। मैं आह्वान करना चाहूंगा बीकानर की उर्वरा धरती को कि जल्‍द ही कोई विद्वान और पैदा करे। आचार्यराज को भावभीनी श्रद्धांजलि...