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9.11.08

रिक्शे पर `एमएलए´ साहब

चार साल सात महीने बाद विधायक जी को फिर `जनता´ याद आई
गंगानगर विधायक सुरेन्द्रसिंह राठौड़ बिल्कुल अपने लालू यादव मानिंद हैं। चर्चा में रहना बखूबी जानते हैं। जनता को कैसे पटाया जाता है, यह भी जानते हैं। चार साल सात महीने पहले कुछ भी नहीं थे। राजनीति में जोर लगा रहे थे। कहीं तो पटरी बैठेगी, शायद जानते थे। इसीलिए हर जगह टपक जाते थे। भैरोंसिंह शेखावत के सामने भी चुनाव लड़ चुके हैं। और कोई ऐब नहीं इनमें, बस थोड़ी सी पी लेते हैं। और वो भी मालूम नहीं खुद पीते हैं, या कहीं की कोई `सैटिंग ´ पिलाती है, पर पी तो लेते ही हैं। पिछले चार साल सात महीने तक उन्हें बिल्कुल भी सुध नहीं थी, गंगानगर की जनता की। पूरे देश की जनता की बात नहीं करेंगे, क्योंकि ना तो एमएलए साहब इतने बड़े हैं, कि पूरे देश की जनता का ठेका उन्हें दे दिया जाए या फिर उनका दिल ही इतना बड़ा नहीं कि वो पूरे देश के बारे में सोचें। हमने तो उन्हें एमएलए इसलिए बनाया था कि वो गंगानगर का ही कुछ भला कर दें, तो हम धन्य हो जाएं। पर वो तो ख़ुद का ही भला करते-करते धन्य हो गए।
अब पीछे से शुरू करते हैं- पहले हरे रंग की `चक्कर´ वाली पार्टी के गंगानगर से सर्वे-सर्वा ये एमएलए साहब ही थे, या यूं कहिए कि अकेला इनका ही वोट था इस पार्टी का। नाका नहीं जमा। अगले चुनावों में निर्दलीय में भी नाका नहीं जमा। हालांकि इस समय पूर्व आयुर्वेद राज्यमंत्री राधेश्याम जी और भैरोंसिंह जी के बाद तीसरे नंबर पर यही एमएलए साहब थे। इससे अगले चुनावों में गंगानगर बीजेपी के एक नंबर के नेता महेश पेड़ीवाल ने इनको भाजपा का प्रत्याशी बनवाया। पूरा जोर लगाया और `साहब´ की किस्मत ने भी जोर मारा। चूंकि बीजेपी की टिकट थी और `एमएलए´ साहब की लहर भी थी, सो वक्त बदल गया और एक संघर्षशील कार्यकर्ता विधायक बन गया।
चुनाव जीतते ही `एमएलए´ साहब एक बार जयपुर आए और फिर गंगानगर। तीसरी बार जयपुर गए तो वहीं के हो गए। बहाना- `एमएलए´ साहब की किडनी में प्रोब्लेम है, हॉस्पिटल में भरती हैं, पूरे `एक साल´ भरती रहे। गंगानगर की जनता का प्यार तो `एमएलए´ साहब के साथ ही था। पर एक साल बाद जब राठौड़ साहब गंगानगर पहुंचे तो रंग बदल चुके थे। कल तक जो आदमी तीन सौ रुपए की शर्ट और ढाई सौ रुपए की पैंट ही पहनता था, आज उसने पूरे `बारह सौ रुपए´ की `अनिल कपूर वाली´ टोपी पहन रखी थी। शायद खुद को अनिल कपूर समझ भी बैठे थे। बिल्कुल एक टुच्चे से गुंडे के माफिक बीजेपी की सभा में जाकर नेताओं की `मां-बहन´ की स्पष्ट गालियां निकालीं। फिर पहुंच गए जयपुर। वहीं हॉस्पिटल में भरती हो गए। आठेक महीने बाद फिर गंगानगर पहुंचे तो इन्होंने एक `भाईसाहब´ को गोली मरवा दी, भाड़े के टट्टूओं से। ये भाईसाहब वही थे- अपने महेश पेड़ीवाल- जिन्होंने `एमएलए´ साहब को टिकट दिलवाने और जितवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पेड़ीवाल साहब की आंख में गोली लगी थी। वो तो बच गए, लेकिन उनकी एक आंख चली गई। अदालत में मामला अभी भी चल रहा है और `एमएलए´ साहब उसके मुख्य आरोपी हैं। हालांकि क्राइम के बाद `एमएलए´ साहब फरार हो गए थे, पर कोर्ट द्वारा `कुर्की´ के अंदेशे के चलते उन्हें समर्पण करना पड़ा। बीजेपी से निष्कासित हैं। टिकट की कोई उम्मीद नहीं थी। कांगे्रस में भी धोक लगाई, यहां भी अर्जी खारिज होने के बाद तीन दिन पहले ही समाजवादी पार्टी में शामिल हुए हैं।
अब वही `एमएलए´ साहब फिर जनता की शरण में है। ऊपर आप जो फोटो देख रहे हैं, उसमें रिक्शे पर `एमएलए´ साहब बैठे हैं और राज ठाकरे के बयानों के विरोध में सड़क पर उतरे हैं। हालांकि राज ठाकरे के मामले को लगभग एक महीना होने को है। चलो जो भी हो, पर अब जनता क्या फिर से उनकी गोटी चलने देगी। गोटी तो नहीं चलेगी, स्पष्ट मालूम है। फिर भी अब जब `एमएलए´ का तगमा उतर जाएगा, तो भी क्या वही चाल रहेगी। वक्त ही बताएगा।
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