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10.11.09

गुंडांे से नहीं हारेगी हिन्दी

राहुल कुमार
राज ठाकरे के गुंडों का तमाचा हिंदी पर नहीं लोकतंत्र पर ज्यादा है। ओछी राजनीति व टुच्ची गुडंई करने वाले ठाकरे की इतनी औकात नहीं कि वह हिंदी की बिसात को ललकारे सके। उसने आकाश की ओर थूंका है मंुह पर ही गिरेगा। विधायिका में उसकी पार्टी का दुस्साहस संविधान की अवहेलना व देश चलाने वाले अगुआ बने नेताओं व कानून व्यवस्था के जिम्मेदार लोगों के ढुलमुल रवैये की देने है। वरना हिंदी भाषी छात्रों के साथ दुव्र्यवहार के बाद ही सरकार राज ठाकरे के पंख क्यों नहीं कतरे गए। क्यों वोट बैंक की राजनीति के चलते राष्ट्रभाषा का अपमान किया व सहा जा रहा है। बात महज भाषा की नहीं उसके दुस्साहस और कारगुजारियों की है। जिसने अब हदें लांघ दी हैं।
जिस हिंदी की छाती पर चढ़ राज ठाकरे अपनी राजनीति चमकाना चाहता है वह उसकी ताकत से बेखबर है। चंद छात्रों के साथ मारपीट कर लेेने भर से अगर वह समझ रहा है कि हिंदी की गलेबान भी पकड़ लेगा तो भूल में है। जिस हिंदी को एक हजार वर्षांे की गुलामी खाक न कर सकी उसे 12 विधायक लिए ठाकरे क्या आंच पहुंचाएंगे।
यह वही हिंदी है जिसने भारत का स्वतंत्रता संग्राम अपने बलबूते लड़ा। वही हिंदी जिसके गीत गाते गाते शहादतें क्रांतिकारी हंसते हंसते दे गए। वही हिंदी जिसके अक्षरों के प्रेम से करोड़ों हिन्दुस्तानी एक होकर ललकार उठे और अंग्रेजों को बोरिया बिस्तर बांधकर जाना पड़ा। जिसका सूरज कभी अस्त नहीं होता था उस ग्लोबल अंग्रेजी को मुंह की खानी पड़ी।ये वही हिंदी है जिसने मोहम्मद बिन कासिम से लेकर अब्दाली तक के तुफानी आक्रमण सहे। जिसने अरबी, फारसी, मुगल, फ्रैंच, पुर्तगाली और अंग्रेजी भाषाओं से लोहा लिया। वह भी तक जब इन भाषाओं के रखवाले देश की सत्ता पर काबिज हो गए थे और कुछ होने की लड़ाई लड़ रहे थे। हर हिंदी भाषी पर जमकर अत्याचार कर रहे थे।
फिर यह वही हिंदी तो है जिसने प्रेमचंद, अज्ञेय, जैसे कथाकार व मैथलीशरण गुप्त जैसा राष्ट्रकवि, मीरा का प्रेमलाप और कबीर सा दर्शन अपने अक्षरों से दिया। यह वही हिंदी है जिसमें गुलजार ने प्रेम के गीत रचे, निदा फाजली ने गजलें गढ़ी और जावेद अख्तर धड़कनों तक पहुंच रहे हैं। वही हिंदी जिसने अमिताभ बच्चन को सदी का महानायक बना दिया। जिसने सारी दुनिया की मां मदर टेरसा को भारत बुला लिया।
हिंदी दिल और जुबान ही नहीं लहू भी है। जो खौलता भी है। जिसमें करोड़ों हिंदुस्तानियों के सपने हैं और जब इन्हें आघात लगेगा तो कोई गुंडा या दुस्साहसी टिकेगा नहीं। जब तक चुप्पी सधी है सधी है। खमोशी टूटेगी तो नमोनिशान न होगा। क्योंकि हिंदी हिंदी है। हिंदुस्तानियों का दिल। धड़कन और जीवन। और ठाकरे भी खूब जानता है तभी तो महाराष्ट्र की चाहरदीवारी मंे बयानबाजी व हरकतें करता है। कभी लखनउ, भोपाल या पटना आकर दिखाए। हिंदी गुंडई भूला देगी।

3 comments:

मनोज कुमार said...

इस भाषाई संप्रदायिकता का हमे विरोध करना चाहिए। बहुत अच्छा लेख।

RAJNISH PARIHAR said...

दरअसल में राज ठाकरे को हिंदी से नहीं अपनी राजनीती से मतलब है!तभी तो हिंदी फिल्म इंडस्ट्री से उन्हें तकलीफ नहीं है,जहाँ लाखों मराठी मनोयोग से काम कर रहे है...

Creative Manch said...

बहुत सही और सटीक लेख है आपका !
आपसे पूरी तरह सहमत हूँ !
आभार


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