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1.12.07

रेती में लोटने, बिना मकसद कुछ दिन यूं ही ज़िंदगी जीने....आ रहा हूं इलाहाबाद!!!

एक महीने की गुमशुदगी दर्ज कराने के बाद ब्लागिंग में हाजिर हुए बोधि भाई ने न सिर्फ हाजिरी बजाई, बल्कि हम लोगों को बडे़ प्यार से ईर्ष्या और द्वेष से भर भी दिया। यह बता बता के उन्होंने किस तरह से उन गुमशुदगी के दिनों में ज़िंदगी की असल खुशबू को महससू किया और जिया। और इन मूल्यवान क्षणों को जीने के बाद उन्होंने आकर बता भी दिया.....गांव वाले कभी नहीं मरते, माटी झाड़कर-पोंछकर उठ खड़े होते हैं। फिर लड़ने, जूझने और जिंदादिली से जीने के लिए। वाह, भड़ासी जिन बातों को समझाने में जाने कितनी पोस्ट खर्च कर देते हैं उसे एक कवि अपने गद्य में कितने आसानी से समझा देता है।

बोधि भाई को पढ़कर दिल मचलने लगा... निकल ले बेटा यशवंत तू भी। दिल्ली-बिल्ली को छोड़कर। यह ससुरी कहां जा रही। यह बिगड़ैल तो यहीं रहेगी, और बिगड़ेगी, और फैलेगी, और मोटी होगी...लोगों को बिगाड़ेगी, लोगों को मोटा बनायेगी, दिमाग में कमीनापन भरेगी। तो ऐसे में बेटा यशवंत जरा तू भी टहल ले। ले ले माटी की सोंधी गंध। नथुने से खींचकर उस खुश्बू को गहरे आत्मा तक उतार ले। जो प्राण उर्जा की तरह तुम्हारे मस्तिष्क से लेकर दिल और मन तक को सींच देगी।

तो भइया....आज प्लान तैयार हो गया। शाम तक रिजरवेशन हो जाएगा। संगम तीरे के लिए। अबकी एक हफ्ते के लिए जा रहा हूं। फिर लौटूंगा। बाद में पूरे एक महीने का तंबू गड़ेगा। लैपटाप लेकर वहीं से ब्लागिंग होगी, लाइव ब्लागिंग...संगम तीरे से।

अबकी माघ मेला में संगम तीरे टेंट लगाकर जीवन जीना है, गांजे के कश खींचते हुए, कबीर को गाते हुए....रहना नहीं देस बेराना है, यह संसार कागद की पुड़िया, बूंद गिरे गल जाना है, यह संसार झाड़ और झांखड़, आग लगे बर जाना है...रहना नहीं देस बेराना है.... और इन मुक्तिदायी आह्वानों के साथ झाल मंजीरे और ढोलक की थाप पर नृत्य करते हुए....ओसो के शब्दों में.... बेतरतीब नाचो, कुछ भी बोलो, लेकिन मुंह खोलो, आसपास के परिवेश से अनजान, दिमाग पर बिना जोर लगाए, गाओ और नाचो, चिल्लाओ और नाचो, रोओ और नाचो....नाचते रहो, गाते रहो, चिल्लाते रहो.....और धड़ाम से लेट जाओ, थक कर। शांत हो जाओ। अंधेरे में खो जाओ। जहां अंधेरा खत्म होगा, अंधेरे की सुरंग जहां खत्म होगी वहां से आगे निकलो तो रोशनी है, कोई और दुनिया है प्रेम की। वहां शांति है। वहां सहजता है। वहां सरलता है। वहां मनुष्य ही मनुष्य नहीं है। वहां सब कुछ है। पेड़, फूल, बंदर, हिरन, चूहा, हवा...सब लेकिन कोई कम और ज्यादा नहीं। सब एक दूसरे के मित्र और साथी.....।

खैर, मुझे लग रहा है कि मैं यह सब लिखते हुए कहीं ध्यान न करने लगूं। खबर यही है कि मैं मंगलवार की सुबह से लेकर रविवार तक इलाहाबाद में हूं। वहां माघ में तंबू गड़वाने से लेकर कुछ और प्रबंध करने के काम को निपटाने के बाद लौट आउंगा।

इस मौके पर मैं उन सभी इलाहाबादी साथियों को याद करना चाहूंगा जो इलाहाबाद में अब भी हैं या इलाहाबाद के हैं या इलाहाबाद में रहे हैं लेकिन अब बाहर हैं। अगर वे साथ चलना चाहें, बीच में जुड़ना चाहें तो निसंकोच बता दें। अगर मेरी मदद करने की स्थिति में हों तो जरूर बता दें। वहां माघ के दौरान ठहरने की उत्तम व्यवस्था करनी है। इसके लिए क्या तरीका अपनना होगा, अभी मुझे मालूम नहीं। यहां यह भी बता दें कि मेरे इस प्लान को मेरी कंपनी लाइवएम ने ओके कर दिया है। तो यह निजी मस्ती कंपनी द्वारा संस्तुत भी है, है न मजेदार....। फिर क्या, फिर तो मिल बैठेंगे चार यार....। चीयर्स...। जय हो।

09999330099 पर उपलब्ध हूं, पूर्व और वर्तमान इलाहाबादियों से अनुरोध है कि वे संगम तीरे की मेरी मुहिम में योगदान करें या योगदान लें। वैसे, मैंने इलाहाबाद के अपने मित्रों को फोन करना शुरू कर दिया है, भइया.....मैं आ रहा हूं....तुम्हारो देस, म्हारो देस, रेती में लोटने। बिना मकसद कुछ दिन यूं ही जिंदगी जीने। आप भी चलोगे?????

जय भड़ास
यशवंत

3 comments:

बोधिसत्व said...

जय हो बाबा यशवंत की
मैं हर साल माघ मेले पहुँचता रहा हूँ....इस बार भी आ रहा हूँ...तो रमाए रहो धुनिया गंगा तीरे....मस्त रहो साथी....

Ashish Maharishi said...

वाह फ़िर तो मजा ही मजा है

Batangad said...

यशवंत जी हमारे इलाहाबाद में लोटने के लिए बधाई। मैं अभी तो मुंबई में हूं। लेकिन, 7 साल पहले महाकुंभ में उसी जगह काफी मारामारी की है। नौकरी से पहले तक उसी धरती पर जीवन जिया है। अब भी जीवन की ऊर्जा वहीं से मिलती है। घर है इसलिए आना जाना लगातार होता है। बताइए किसी तरह का सहयोग चाहिए हो। जाने की खबर की हेडलाइन बड़ी तगड़ी लगाई है।