आजकल भड़ास पर अहम् मुद्धो पर कम भड़ास और आपसी छीटाकसी पर जायदा भड़ास निकल रही है। क्या यह ठीक है ? मुझे लगता है की भड़ास समाज मैं पनप रही गंदगी को साफ करने के लिए है , बेकसूरो पर हो रहे अत्त्याचारो को रोकने के लिए है , नकाबपोसो का नकाब उतारने के लिए है और जो लोग दूसरो को बेवकूफ समझते हैं उन्हें बेवकूफ , कुत्ता , कमीना ,गन्दी नाली के गंदे कीड़े सीधा उन्ही के मुहँ पर कहकर अपनी भड़ास निकालने के लिए है ,उन्हें उनकी औकाद दिखाने के लिए है । पर जाने क्यों ये आजकल एक अखाडा बनता नजर आ रहा है । जहाँ तक मुझे लगता है "भड़ास" एक झील की तरह है जिसमे कई प्रजातियों की मछलियाँ भरी पड़ी हैं । अगर कोई बीमारी फैला रही है तो उसे ढूंड के सीधा निकाल बाहर फेंको , ख़ुद ही दम निकल जायेगा उसका बिन पानी के । कहते है न "१०० सुनार की एक लोहार की " तो बन जाओ लोहार और एक ही चोट मै दम निकाल दो । ये थोड़े की लगे पोस्टमार्टम करने और ख़ुद भी आ गए बीमारी की जकड मै।
दोस्तो ये सब मैंने कोई लेक्चर देने के लिए नही लिखा है । लिखा है तो बस इसलिए की कहीं हमारी जरा सी भूल की वजह से कोई यह न सोच बैठे की भाडासियों की ख़ुद की लड़ाई ही नही सुलझती ,औरो की लड़ाई मै क्या ख़ाक साथ होंगे ।
15.6.08
भाई लोगो ज़रा नही पूरा ध्यान दो
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1 comment:
मैं भड़ास के तब से पठ रहा हू जब यह केवल गालियों के द्धारा अपनी अभिव्यिक्ति देने का अडृडा था
परन्तु
भड़ास ने खुद को बदला
अब तो केवल आपसी टिप्पणी के रुप में बुखार के बाद का जुकाम ही बचा है जो आश है जल्द ही चला जायेगा ।
..........वीनस केशरी
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