Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

15.8.08

किसे फरक पड़ता है किसी करुणाकर या कुंवर जी अंजुम के न होने पर....!!!!

करुणाकर जब जिंदा थे तभी यह सूचना मिली थी कि कुंवर जी अंजुम नहीं रहे। और उनका जाना कोई हफ्ते दो हफ्ते पहले का मामला नहीं था। पूरे एक साल पहले वे इस दुनिया से गए लेकिन खबर आते आते पूरा साल गुजर गया। कुंवर जी अंजुम ने अपनी जिंदगी के दो तिहाई दिन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के होलटाइमर के रूप में गुजारे। मास्को भी गए थे। सीपीआई की नेशनल कोउंसिल में रहे। सीपीआई की मैग्जीन के संपादक मंडल में तो रहे ही, उन्होंने अपनी पार्टी के कई बड़े कामरेडों की आत्मकथाएं भी लिखी थीं। क्रांति और आदर्शों से सीपीआई की बढ़ती दूरी और चुनाव व सत्ता से लगातार नजदीकी के चलते सीपीआई के नेता भी कुछ वैसे ही हरकत करने लगे जैसे दूसरी पार्टियों के नेता करते थे। पूरी पार्टी के सत्ता व वोट के लाभ हानि नफा नुकसान की तरफ बढ़ जाने से इस पार्टी के आदर्शवादी लोगों को झटका लगा और वे धीरे धीरे इधर उधर होने लगे। कुछ ने सीपीएम या सीपीआईएमएल का साथ पकड़ लिया तो कुछ जो ज्यादा चालाक व चतुर थे वे सपा और बसपा और कांग्रेस की ओर मुड़ लिए। कुंवर जी अंजुम दिल दिमाग व सोच से शायर, बेहतरीन इंसान, सांस्कृतिक चेतना से लैस, समाज व देश-दुनिया की गूढ़ समझ रखने वाले, हिंदी उर्दू लिट्रेचर के जानकार थे। ऐसे संवेदनशील आदमी के लिए यह दो तिहाई उम्र गुजारने के बाद यह समझ में आना की जिस राह पर चले थे वो मंजिल को नहीं जाती, कहीं और ले जाती है, बेहद झटका देने वाला रहा। ज़िंदगी की गाड़ी खींचने के लिए पत्रकारिता में चले आए और दुनिया के दोगलेपन से मुक्त होने व खुद को खो देने की खातिर शराब से दोस्ती कर ली। जब मैं जालंधर में अमर उजाला की लांचिंग पर ट्रेनिंग देने वास्ते डेपुटेशन पर गया था तो वहां कुंवर जी अंजुम एक साथी पत्रकार की भांति मिले। मोटे कंबल वाले जैकेट को पहने, मुंह में पान घुलाए, दाढ़ी बढ़ाए और चेहरे पर मुस्कान लिए गले मिले। इससे पहले हम लोगों की मुलाकातें लखनऊ में दुर्गा दादा के पास हुआ करती थीं। दुर्गा दादा सीपीआई के होलटाइमर होने के साथ साथ पार्टी की मार्क्सवादी साहित्व वाली दुकान चेतना पुस्तक केंद्र के प्रबंधक थे। दुर्गा दादा के यहां कुंवर जी अंजुम से लगातार मिलना होता था। कई बार विधायक निवास दारुलशफा के बगल वाली शराब की दुकान पर टकरा जाते थे। फिर जो मजा़ज़, ग़ालिब, बशीर बद्र, फिराक साहब ....की ग़ज़लों व शेरों से हम लोगों को रुबरु कराते थे, सुनाते थे, समझाते थे और जिंदगी के फलसफे को पद्य में इशारे इशारे में हौले हौले से नशे के साथ दिल में उतारते थे। मैं देहाती, तलछट, कम पढ़ा लिखा.....ऐसे विद्वान व्यक्ति पर मुग्ध सा होता गया। उनकी फटेहाली, उनकी सादगी, उनकी सहजता, उनकी विनम्रता, उनका ज्ञान, उनका विजन, उनकी सोच, उनका क्रांतिकारी अतीत, उनका संघर्षमयी वर्तमान...यह सब मुझे हीरोइक सा लगने लगा।
जालंधर में मुलाकात के बाद एक घटना हुई। कुंवर जी अंजुम शराब के इतने दीवाने हो चुके थे कि वे उसके साथ चौबीसों घंटे जीने लगे थे। नए बने अमर उजाला आफिस के बाथरुम में दीवार में एक ईंटे भर छेद में दारू का पव्वा रख देते थे और उपर से ईंटे के टुकटे से उसे ढक देते थे। हर दो घंटे पर बाधरूम जाते और एक पैग मारकर काम पर लग जाते। कुछ साथियों ने उन्हें ऐसा करते देख लिया और संपादक से शिकायत कर दी। संपादक रामेश्वर पांडेय जी कुंवर जी अंजुम के व्यक्तित्व को भली भांति जानते थे और उन्होंने ही कुंवर जी को ज्यादा उम्र के बावजूद उनके ज्ञान के चलते पत्रकारिता में मौका दिया। रामेश्वर जी ने कुंवर जी को समझाया, चेताया और ऐसा न करने की सलाह दी। दूसरा कोई संपादक होता तो शायद उसी पल कुंवर जी को हटा देता लेकिन रामेश्वर पांडेय ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने कुंवर जी को हमेशा मौका दिया। कुंवर जी बाद में दैनिक जागरण, नोएडा आ गए। यहां भी काम के बाद और काम के दौरान पीने पिलाने का दौर चलता रहा। इसके बाद उन्हें एक दिन नौकरी से निकाल दिया गया। साहिबाबाद में नया घर लिया था कुंवर जी, बिटिया पढ़ती है, पत्नी साथ रहती हैं। नौकरी जाने के बाद कुंवर जी से संपर्क किसी का नहीं हो पाया। जो खबरें पता चलीं उसके मुताबिक वो और ज्यादा पीने लगे थे। उसी क्रम में एक दिन उन्हें लखनऊ ले जाकर एसजीपीजीआई में भर्ती कराना पड़ा और कई महीने के इलाज के बाद लीवर सिरोसिस के चलते उनकी मौत हो गई। उनकी मौत की खबर दोस्तों तक पूरे साल भर बाद पहुंची। किसे फिक्र की कोई किसी बेरोजगार का हालचाल जाने। यहां तो उगते सूरज को सौ बार सलाम करने की परंपरा है। डूबते सितारे की तरफ कोई मुड़कर देखता तक नहीं। कुंवर जी नहीं रहे, यह अब भी उनके कई जानने वालों को पता नहीं है। मुझे भी पता नहीं था। जब कुंवर जी की पत्नी पूरे एक साल बाद दैनिक जागरण से उनका बकाया लेने आईं तक जाकर उनके साथ काम करने वालों को उनके निधन के बारे में पता चला। लखनऊ से लेकर जालंधर, नोएडा, दिल्ली में उनके हजारों जानने वाले थे पर किसी को उनकी फिक्र करने की जरूरत नहीं थी। कुंवर जी किसी को नौकरी नहीं दे सकते थे, कुंवर जी किसी को लाभ नहीं दिला सकते थे, कुंवर जी पैसे वाले नहीं थे, कुंवर जी किसी के सामने किसी चीज के लिए रिरिया नहीं सकते थे। कुंवर जी किसी की चापलूसी नहीं कर सकते थे। वो इंसान अपने में मस्त, अपने में खुश, अपने में उदास, अपने में दुखी। उसने जिंदा होते हुए भी खुद को इंसानों से काट लिया था। इंसानों के बीच रहता था लेकिन संवाद बस इतना ही जितने में जिंदगी चल जाती, नौकरी चल जाती।

आखिर में कुंवर जी नहीं रहे। मरना तो सबको है, कुंवर जी थोड़ा पहले चले गए। वो चाहते तो सीपीआई के नेताओं की तरह चतुर सुजान होकर किसी पार्टी में चले जाते और दलाली के जरिए लाखों करोड़ों कमा लेते। किसी बड़े नेता की चापलूसी करके उसके लिए मीडिया मैनेज करते और पैसे में खेलते। पर उन्होंने कुछ भी ऐसा नहीं किया जो उन्हें पसंद नहीं था। एक संस्कृतकर्मी, एक शायर, एक बेहतरीन इंसान कुंवर जी का जाना कचोट रहा है पर यह कचोट बस केवल कुछ सेकेंड के लिए है जब उनकी याद आ जाती है या जब उनकी याद दिला दी जाती है। अगले ही पल अपने दुनियावी ड्रामे में हम तल्लीन हो जाते हैं और चतुर सुजान आदमी की तरह शह-मत भरी इस बाजारवादी व्यवस्था में अपनी गोटियां चलने के बारे में रणनीति बनाने लगते हैं।

करुणाकर भी चला गया। जिंदगी जीने की उमंग लिए एक 23 साल के नौजवान की अचानक मौत हो जाती है। मौत तय थी, एम्स के मुताबिक पर हम लोग ठहरे एक भावुक इंसान। दिल नहीं मानता था कि वो मरेगा। सब कुछ तो ठीकठाक था बाहर से। हंसता मुस्कराता खाता पीता चलता पढ़ता सुनता बोलता ....सब कुछ करता एक नौजवान। पर अंदर जाने क्या पल रहा था। एम्स ने कहा कि लंग कैंसर अंतिम अवस्था में है, फेफड़े दोनों खत्म हो चुके हैं, छह महीने की जान बची है, जाकर गांव में मां बाप के सामने मरो। पर हम लोगों का दिल नहीं माना। ऐसे कैसे कह दिया कि जाओ और घर वालों के सामने बैठकर मौत की प्रतीक्षा करो। पर अंततः हुवा वही। दवा इलाज सिंपैथी अभियान आह्वान कवरेज मीडिया कंपेन ब्लाग कंपेन के बाद भी करुणाकर गांव में अपने परिजनों के बीच अचानक उभरे दर्द में तड़पकर मर गया।

आज आरकुट पर करुणाकर की प्रोफाइल पर पहुंचा। उसकी प्रोफाइल अब भी है। उसका आरकुट खाता अब भी चल रहा है। आपको कहीं से नहीं लगेगा कि करुणाकर इस दुनिया में नहीं है। जब वो जिंदा था तो मैंने उसे आरकुट पर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी थी पर वो उसके बाद आरकुट पर गया ही नहीं। मेरा फ्रेंड रिक्वेस्ट अब भी वेट कर रहा है। अब करुणाकर तो है नहीं, सो मेरा फ्रेंड रिक्वेस्ट वहीं का वहीं पड़ा रहेगा। संभवतः यह फ्रेंड रिक्वेस्ट तब कनफर्म हो जब मैं भी उपर उसके यहां पहुंच जाऊं। तब उस दूसरी दुनिया के आरकुट खाते में हम जरूर एक दूसरे के फ्रेंड बन जाएंगे। यहां तो करुणाकर मेरे रिक्वेस्ट को एसेप्ट करने से पहले ही गुजर गया।

करुणाकर के आरकुट खाते के स्क्रैप को मैं नहीं पढ़ सकता क्योंकि उसमें लिखा आ रहा है कि मैंने कोई स्क्रैप नहीं किया है इसलिए मैं नहीं पढ़ सकता। यह जरूर कोई तकनीकी व्यवस्था होगी पर अंदर से लगता है जैसे करुणाकर ने मुझे श्राप दिया हो, तुम सब जिंदा हो और मैं तुम लोगों के सामने ही मर कर चला आया, जाओ श्राप देता हूं, तुम मेरा स्क्रैप नहीं पढ़ सकते, तुम मेरे फ्रेंड नहीं बन सकते। करुणाकर, शायद मैं तुम्हारा मित्र पहले बन गया होता तो देख पाता कि तुम्हारे स्क्रैप बुक पर हाल फिलहाल किन लोगों ने क्या लिखा। बाल सुलभ उत्सुकता है। लेकिन मुझे पता है कि जिन लोगों को तुम्हारे मौत की खबर हुई होगी उन लोगों ने तुम्हारे स्क्रैपबुक पर जाकर तुरंत तुम्हें श्रद्धांजलि देकर तुमसे अपना नाता पूरी तरह तोड़ लिया होगा लेकिन मैं वादा करता हूं कि मैं तुम्हे तुम्हारे स्क्रैपबुक को नहीं पढ़ रहा और तुम्हें श्रद्धांजलि नहीं लिख पा रहा इसलिए मैं तुमसे नाता नहीं तोड़ रहा। यह मैं खुद के दिल को समझाने के लिए सोच रहा। जब हम उपर मिलेंगे तो शुरू से दोस्ती रखेंगे, स्क्रैप स्क्रैप खेलेंगे और तुम्हें मैं कुछ गंदी चीजें भी सिखावुंगा। तुमने तो जीवन भर सिगरेट या बीड़ी नहीं पी, पर तुम्हारे फेफड़े खराब हो गए। तुम्हें सिगरेट पीना सिखाउंगा ताकि किसी टेंशन में धुवें के छल्ले छोड़ते हुए तुम हलके से रिलीज हो सको। तुम्हें थोड़ा दारू पीना सिखाउंगा ताकि जब तुम बेहद दर्द में रहो तो इससे मुक्त होने के लिए थोड़ी सुरा ले लो और किसी नई दुनिया में पहुंच जाओ जहां कोई टेंशन नहीं। तुम्हें थोड़ी बदमाशी भी सिखावुंगा। यह सब तुमने किया नहीं। तुम तो ठहरे सीधे साधे आदर्शवादी नौजवान जो मां बाप के अरमान पूरा करने के लिए दिन रात सिर्फ और सिर्फ पढ़ता रहता था और अच्छे नंबरों से पास होता रहता था। पर देखा तुमने, तुम्हारी शराफत ने तुम्हें क्या इनाम दिया। हम लोगों तो सारी बुराई करके जिंदा हैं और तुम आदर्शवादी दोस्त.....चले गए न कलयुग में अच्छे कर्म करके किसी अच्छी दुनिया में, बुरे लोगों को और बुराइयों को यहीं छोड़कर। पर हम बदमाश और बुरे लोग तुम्हें दिल से चाहते हैं।

कुंवर जी, मुझे मलाल है कि मैं भी दिल्ली मे रहा और बेरोजगारी व दारूबाजी के बीच जिंदगी की गणित में उलझकर आपको याद तक न कर सका। पर अब जब आप याद आते हैं तो लगता है जैसे मुझसे पाप हुआ है। अब भी दिल होता है कि एक बार आपके घर जाकर पता करूं कि क्या हाल हैं, कैसे हो रहा है गुजारा पर सच कहूं तो मेरे पास भी टाइम नहीं है, मैं बहुत बिजी आदमी हूं, बहुत आगे जाना है मुझे, हेक्टिक शिड्यूल रहता है इसलिए सारी। मैं आपके परिजनों से भी नहीं मिल सकता। अब आप चाहे इसका बुरा मानों या भला, पर यही सच है मेरे भाई। आपके जीते जी आपकी मदद नहीं कर पाया और मरने के बाद आपके परिजनों के किसी काम न आउंगा लेकिन हां, देखिए आपको याद कर और इतना सब लिखकर कुछ अच्छे नंबर जरूर बटोरने की कोशिश कर रहा हूं। माफ करना दोस्त, आजकल दोस्त ही दगाबाज होते हैं और वही सबसे अच्छे दुश्मन बनते हैं। तुम मुझसे दुश्मनी करो न करो, मैं तुम्हारे लिए एक दोस्त के रूप में दुश्मन ही हूं।

चलिए.....करुणाकर और कुंवर जी अंजुम को थोड़ा याद कर लें, थोड़ा खुद को याद कर लें...बाकी कल तो हम सभी बिजी हो जाएंगे अपने अपने शिड्यूल के हिसाब से।

अंत में करुणाकर की आरकुट प्रोफाइल का लिंक, आप भी जाकर देखें और पढ़ें.....सोचें, बिचारें.....कुछ समझ में आए तो भड़ास निकालें......हम लोग तो बस भड़ास ही निकाल सकते हैं, और क्या कर सकते हैं.......


अगर आपका आरकुट खाता है तो क्लिक करें.......करुणाकर आरकुट पर


करुणाकर ने अपने आरकुट प्रोफाइल में खुद के एक ब्लाग के बारे में भी बताया है, वो है http://karunakarmishra.blogspot.com परफेक्ट डेट के बारे में उसका कहना है कि वो इसे इसलिए नहीं पसंद करता क्योंकि वो यह सब तब करेगा जब वह अपना लक्ष्य हासिल कर लेगा।


करुणाकर के आरकुट प्रोफाइल में सोशल, प्रोफेशनल, और परसनल सेक्शन में जो जो लिखा है वो इस प्रकार है....

relationship status: single

age: 23

languages i speak: English (UK), Hindi

here for: friends

about me: aasmaan ko neend aayegi to sulaaoge kahan...zameen ko maut aayegi to dafnaaoge kahan...

कौन हूँ??
इस अजनबी सी दुनिया में, अकेला इक ख्वाब हूँ.
सवालों से खफ़ा, चोट सा जवाब हूँ.
जो ना समझ सके, उनके लिये "कौन".
जो समझ चुके, उनके लिये किताब हूँ.

दुनिया कि नज़रों में, जाने क्युं चुभा सा.
सबसे नशीला और बदनाम शराब हूँ.
सर उठा के देखो, वो देख रहा है तुमको.
जिसको न देखा उसने, वो चमकता आफ़ताब हूँ.
आँखों से देखोगे, तो खुश मुझे पाओगे.
दिल से पूछोगे, तो दर्द का सैलाब हू

well....if u culd figure me out completely then u wuld b my best friend...multiple personality disorder wuz named after me....i live for a few people...friends mean the world to me...i go out of my way to help them wen they need me...not a gud listener unless its my frnz who wanna talk...outspoken most of the time....spontaneous n sarcastic jokes rule my roost...love is not my cup of tea...i flirt in d gud way n m honest about it....show me attitude n i'll give u an overdose of my own....in d end m gud to only

children: no

ethnicity: east indian

religion: Hindu

political view: not political

humor: campy/cheesy, dry/sarcastic, clever/quick witted, friendly, goofy/slapstick, obscure, raunchy

fashion: natural

smoking: no

drinking: no

pets: i like them at the zoos

living: alone, friends visit often

hometown: ayodhya/noida /delhi/banglore

webpage: http://www.jssate.com

passions: To be iimian

sports: cricket,chess;

activities: SPORTS,STUDY,TALKING WITH FREINDS,AKING FREINDS;

books: STUDY

music: SOFT OLD SONGS

tv shows: INDIAN IDEAL PART TWO

movies: MUNNA BHAI MBBS;PARDESH;

cuisines: kheer,chinees food

city: NOIDA

state: india

zip/postal code: 272123

country: India


education: Bachelor's Degree

high school: ya sure

occupation: STUDENT

industry: High Tech, Computer Software

title: http://www.orkut.co.in/UniversalSearch.aspx?q=%22http%3A%2F%2Fkarunakarmishra.blogspot.com%22

job description: as student life

career skills: IT GETS CHANGE ACCORDING TO REQUIRMENT.

career interests: OF COURSE MANAGEMENT

ideal match: that is in pending

first thing you will notice about me: MY simplicity

height: 172 centimeters

eye color: black

hair color: black

build: slim

looks: average

best feature: chest

my idea of a perfect first date: i do't like dating becoc i will do all these things after achieving all my goals

from my past relationships i learned: i do't have any relationship inspite of my parents and sister brothere and from these i am learning continously no endpoints

five things I cant live without: i can live without anything in the presense of air water and food

in my bedroom you will find: i have't here bedroom but i have my flat in that me and my freinds lives together so u find alot of things like MY PC,MY freinds laptop and as i am student then books obiously.


-----------

16 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

,,,,,,,,, ;;;;;;;;;; ॥॥॥॥॥॥

Anonymous said...
This comment has been removed by the author.
Anonymous said...

दादा,
ज़माने की इस कड़वी सच्चाई से मन कड़वा और कसैला जरूर होता है मगर किसी के लिए कोई भावः नही आ रहे हैं क्यूंकि सच में चलते चलते हम कहाँ से कहाँ आ गए, सिधांत, आदर्श, लड़ाई, विचार, समाज, रीति-कुरीति, ज्ञान-विज्ञान सच में ये अब एक किताबी बातें सी लगती है. समाज के चाक चौबंद को देखें को सब कुछ बदला और इसके साथ ही बदल गयी इंसानियत की परिभाषा, मानवता के मायने और कुछ बाकी रहा तो वो हम सब के सामने हैं. इस लेख के जरिये जो चोट आपने तथाकथित लोगों पर किया है उनके सफेदपोश नकाब पर भले ही कोई फरक न पड़े मगर दोगलेपन के परिचायक लोगों ने मानवता और इंसानियत को तार तार करने में कोई कसर न छोरी है.
अंजुम जी और करुनाकर से अब भेंट वहीँ जहाँ हमें नया भड़ास बसाना है और हाँ ऑरकुट का प्रोफाइल भी वहीँ बनाना जो है.
जय जय भड़ास

जगदीश त्रिपाठी said...

भाई यशवंत यही तो रोना है.हम गांव वाले भी भी महानगरों में आकर महानीच हो गए हैं.आंखों में आंसू ला देने के लिए धन्यवाद.अन्यथा मुझे तो याद ही नहीं था कि आंखों में अभी पानी बचा है.

अनिल भारद्वाज, लुधियाना said...

We have lost Kuwar ji Anjum.His passing away is great loss for the media people whose soul is still alive.Anjum Chaha tum chale gaye aur muze tumare jane ka pata bhi nahi chala. Chacha mana tum kise ko nukari to nahi de sakte thy par tumare pyar muze sari jindagi yaad rahega. May God give peace to the departed soul and courage to family and friends to face this moments.

Unknown said...

यशवंत वैसे तो मैं अक्सर भड़ास पर तुम्हारे विचार पढ़ता रहता हूं किंतु कुंवर अंजुम तथा करुणाकर के संदर्भ में तुम्हारी लेखन शैली भाषा व भाव से परे नितांत जिंदगी की लय महसूस होती है. वैसे में इन दोनों से मेरा निजी तौर पर कोई ताल्लुकात नहीं रहा किंतु इनकी जिंदगी का जो वृतांत तुमने लिखा है आखिर में वह हम सब का हाल है. हम शहर में आकर भूल ही गए हैं कि आखिर हम क्यों बिना फीलिंग्स के जिए चले जा रहे हैं, ऐसा शहरी जीवन के साथ ही कुछ पेशागत एडिक्शन भी जिसमें मौत व जिंदगी की सूचनाएं हमें चौंकाती नहीं है.यशवंत तुम्हें मैं आज पहली बार टिप्पणी इसलिए लिख रहा हूं कि चाहे थोड़ी ही देर के लिए तुमने कम से कम हमें अपने अंदर झांकने का मौका तो दिया. हम भले ही करुणाकर व कुंवर अंजुम से ताल्लुक न रखते हों किंतु जिंदगी वैसे ही जी रहे हैं जैसे कि आपने अपने बारे में लिखा है. फर्क सिर्फ इतना है कि तुम अपनी गलतियों को देख सुन व समझ रहे हो और हम जैसे लोग चाहकर भी उस अहसास को देख सुन समझ नहीं पा रहे हैं. यशवंत भाई धन्यवाद, कुंवर अंजुम व करुणाकर को मेरा सलाम ।

Unknown said...

यशवंत वैसे तो मैं अक्सर भड़ास पर तुम्हारे विचार पढ़ता रहता हूं किंतु कुंवर अंजुम तथा करुणाकर के संदर्भ में तुम्हारी लेखन शैली भाषा व भाव से परे नितांत जिंदगी की लय महसूस होती है. वैसे में इन दोनों से मेरा निजी तौर पर कोई ताल्लुकात नहीं रहा किंतु इनकी जिंदगी का जो वृतांत तुमने लिखा है आखिर में वह हम सब का हाल है. हम शहर में आकर भूल ही गए हैं कि आखिर हम क्यों बिना फीलिंग्स के जिए चले जा रहे हैं, ऐसा शहरी जीवन के साथ ही कुछ पेशागत एडिक्शन भी जिसमें मौत व जिंदगी की सूचनाएं हमें चौंकाती नहीं है.यशवंत तुम्हें मैं आज पहली बार टिप्पणी इसलिए लिख रहा हूं कि चाहे थोड़ी ही देर के लिए तुमने कम से कम हमें अपने अंदर झांकने का मौका तो दिया. हम भले ही करुणाकर व कुंवर अंजुम से ताल्लुक न रखते हों किंतु जिंदगी वैसे ही जी रहे हैं जैसे कि आपने अपने बारे में लिखा है. फर्क सिर्फ इतना है कि तुम अपनी गलतियों को देख सुन व समझ रहे हो और हम जैसे लोग चाहकर भी उस अहसास को देख सुन समझ नहीं पा रहे हैं. यशवंत भाई धन्यवाद, कुंवर अंजुम व करुणाकर को मेरा सलाम ।

rajendra said...

rula diya dada apne. dunia ki schai ujagar karke. sachmuch ham kitne bussy ho gye hai?

अबरार अहमद said...

यह मीडिया का दुर्भांग्य ही है कि जिस इंडस्ट्री में छोटी छोटी बातें भी मिनटों में जम्मू से कोलकाता पहुंच जाती हैं उसी इंडस्ट्री का एक सिपाही गुमनाम मौत मर जाता है। अंजुम जी के साथ काम करने का सौभाग्य तो नहीं मिला मगर उस जमीन पर काम किया जहां कभी उनकी पत्रकारिता बोलती थी। उनके बारे में अपने सीनियरों से काफी सुना और दिल में यही इच्छा रही कि कुंवर जी के साथ काम करने का मौका मिले। मगर अफसोस उनकी मौत की खबर भी समय पर न लग सकी। ऊपर वाला उन्हें स्वर्ग अता करे। मगर इस बात को सोचना होगा कि दिल्ली के एक पुलिस अफसर के कुत्ते की ब्रेकिंग न्यूज चलाने वाली मीडिया अपने एक सिपाही कि मौत को आखिर क्यों नहीं सूंध पाई।

अमित द्विवेदी said...

mujhe pata chalaa hai ki karunakar ne apni zindagi par lagbhad 70 panne likhe hain. wo abhee gaziabad me jis room me rahtaa thaa wo woheen par rakhe huye hain. kyunki unka kuch paisa abhee kaurnakar par banta hai isliye makan malik ne saman nahee lane diya. main koshish kar rahaa hoon ki jaldi un pannon ko haasil karke use ek kitab ka roop doon. kyunki use bhagwan se ye shikayat thee ki mera pair le liye haath bhee le lete par kam se kam uski jaan to bakhs dete jisse wo apne pariwar ki badhaalee ko door kar pata.

Ramashankar said...

क्या कहूं... क्या लिखूं... कुछ समझ में नहीं आ रहा... श्रद्धांजलि देने का मन नहीं कर रहा... आंखों का पानी भी जा चुका है... अफसोस जता कर उनकी मौत को हल्का नहीं करना चाहता... इसलिये... एक खामोशी एक मौन उस खामोशी और मौन के लिये

ताऊ रामपुरिया said...

000

नमन !!!

Praveen said...

i am very-very..sorry.....

yadi hum dharti wale apne jindgi ke kuchha dino ko ak-dusre ke sath mil-bant kar jite, to sayad hamar karunakar abhi hamare sath hota.
karunakar chala gaya, our hame rula gaya.

praveen

Praveen said...

I am very very sorry..........

yadi hum dharti wale apne jindagi ke khuchh palo ko ak-dusre ko de pate to shayad hamara karunakar abhi hamare sath hota.

karunakar to chala gya, hame rula gya. bhagwan uske ghar walo ko sukhi rakhe.

praveen

Sajid Khan said...

yashwant ji.aap ne sach ko jis tarha pesh kiya us ko pad kar ansu nikle ke liye tyaar ho gye

Krishan Gopal said...

very sorry,mouka jindagi deti he mout nahi.dont u think passive smokinmg is also is also a cause of lung cancer.can we not save many jindadil karunakaran to die from such dreadful disease.iske sath samaj ke is cancer ke against bhi kuch kiya jaye jisase hum kunwar anjum jesi shakhsiyat ko jaroori samman dila sake.