............जीवन तो संघर्षों की आंच में पक-कर ही निखरता है....उसमें एक गहराई भी तभी आती है...उसी गहराई से आदमी,आदमी कहलाने लायक बनता है.. और जिनका नाम लेकर आपने लिखा है....वो नाम भी पैदा होता है.....असल में संघर्ष किए हुए व्यक्ति के प्रति हमारे दिल में सम्मान की एक अतिरिक्त भावना होती है....जो उसके संघर्ष को हमारा सलाम होती है....बेशक हम ख़ुद कोई काम,कोई संघर्ष करें या ना करें....मगर एक संघर्ष किए हुए तपे हुए....और साथ ही जो ईमानदार भी हो,व्यक्ति से डरतें भी हैं.....(ध्यान रहे मैं यहाँ बेशर्म किस्म के स्वार्थी लोगों की बात नहीं कर रहा....)हमारी पहचान दरअसल हमारा कर्म ही तो होते हैं....अकर्मन्यों को तो समाज सिरे से ही नकार देता है....तो हम देखते हैं कि आदमी का आदमी की देह के रूप में जन्म लेना ही काफ़ी नहीं होता,वरन उसे अपने-आप को साबित भी करना होता है...ये साबित करना ही तपने की शुरुआत होती है....और जीवन जब तलक तोड़ देने का हद तक संघर्ष पैदा करता है....आदमी उन परिस्थितियों से जूझ कर.....उनको हरा कर ख़ुद को साबित करता है....भाई मेरे यही तो जीवन है..... ....भाई मेरे यही तो जीवन है..... और क्या.......!!!!
3.1.09
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