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10.1.09

चल दिए हैं पूस के तानाशाह

अभी अभी जड़ था कबूतर
वर्फ की पहाड़ सी परत में
अभी अभी हुआ है चेतन
सूर्य के पहले प्रकाश में

रोंया रोंया शुष्क था मौसम
मौत की पगडंडी पर
अभी अभी पिघला है
जीवन की ताल तलैया में

घर घर सोया पड़ा था आदमी
कुछ सुध कुछ बेसुध
अभी अभी जागा है हौसला
ताल ठोंक कर गांव गांव

शाख शाख पसरी थी रात
चंगेजी ठंड के शासन में
अभी अभी हिनहिनाने लगे हैं घोड़े
चल जो दिए हैं पूस के तानाशाह

पवन निशान्त

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