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18.1.09

छत्तीसगढ़ः कहां खो गई ग्रेनबैंक योजना ?

"छेरछेरा माय धान ल कोठी हेरहेरा" याने छेरचेरा पर्व जो मनाया गया। जान कर बड़ी खुशी हुई कि इसी की तर्ज़ पर केंद्र सरकार ने पिछले साल एक योजना छत्तीसगढ़ के लिए बनाई थी। जिसका नाम था "ग्रेनबैंक" याने अनाज का बैंक। सचमुच गांवों की फालतू सी जान पड़तीं कइयों ऐंसी रीतियों रिवाज़ों के भीतर की परिकल्पना कितनी दूरदर्शी होती थी, कि लोग कभी भूखे ना मरें। पहले का समाज इतना जुड़ा,बंधा,कसा,और वेलनिटेड होता था कि काहे की मंदी, काहे की लाचारी "हमर पेट ना कोऊ खतरा हे" छत्तीसगढ़ का खास ज़िक्र इसलिए क्योंकि, इस राज्य ने अपने गांवी संस्करों, अल्हड़ पहाड़, जबान खेतों, ज़िम्मेदार खलिहानों, रचनात्मक हलों, बख्खरों, जुआं, नारियों, और घर के सदस्य से गाय, बैल, भैसों कुत्तों को अभी तक छोड़ा नहीं है....हाँ कुछ हैं जो अपने इस इतिहास पर शर्म करते हैं लेकिन बाकी राज्यों की तुलना में यहां ऐंसे लोगों की कमी है।.....यही चीज़ अच्छी लगती है।........मैं बात कर रहा था "ग्रेनबैंक" की। जी हां ये योजना "छेरछेरा" से प्रेरित थी, मगर दुर्भाग्यवश इस पर अमली जामा नहीं पहनाया जा सका......इसके पीछे मंशा थी कि गांवों के पास बड़े वेयर हाउस बना कर अनाज रखा जाए जिस पर ब्याज़ की भी व्यवस्था थी लेकिन कौन करे इस पर काम ये थोड़े ही इंपोर्टेड है, जो हम हाथोंहाथ लेते.....या कल कोई अखवार छाप दे या कोई नेता घूम आये विदेश जहां ये योजना चल रही हो....तब देखिए वही वरिष्ठ पत्रकार नेता चीखने लगेगें हमारे यहां भी होना चाहिए......खैर ये तो हमारी जेनेटिक प्रोबलम है। छत्तीसगढ़ को मैं देख नही रहा हूँ, बल्की महसूस कर रहा हूँ। ये है वह वेधड़क स्टेट जो अपने आप से ज़्यादा ग़िला शिक़वा नहीं करती आज भी ग्रामीण अपनी भाषा, पहनावे से बिल्कुल भी शर्मिंदा नहीं होते। यही चीज़ जो इसे पहचान दिलाती है।...हां कुछ शहरी,अपडेट,जींस,लेदरशू के बाइकिया लोगों के मन में ज़रूर ही अपने आप का गांव से संबद्ध होने का मलाल है।।।।।।।।।।

1 comment:

Dev said...

Kaha kho gayi Green bank yojana , bahut sahi visay utahaya hai aapne....

Dhanyavad....