विनय बिहारी सिंह
बहुत अच्छा लगता है जब कोई व्यक्ति नए साल में अपना कोई व्यसन छोड़ देने का संकल्प लेता है। व्यसन यानी सिगरेट, पान, चाय या ज्यादा तली- भुनी चीजें वगैरह। कुछ लोग संकल्प लेते हैं कि मैं अनावश्यक बातों की चिंता नहीं करूंगा, जैसे कुछ लोगों की आदत होती है कि वे सोचते रहते हैं- अगर अमुक बात हो जाए तो मेरे लिए बड़ी मुश्किल होगी। जबकि देखा जाता है कि वैसी कोई बात ही नहीं हुई जिसकी वे आशंका कर रहे थे। यानी वे व्यर्थ में ही चिंता किए जा रहे थे। मनोचिकित्सकों ने भी कहा है कि फिजूल की चिंता करने वाले हमेशा भीतर ही भीतर डरे, घबराए या चिंतित रहते हैं और अनजाने में ही अपने मानसिक स्वास्थ्य को चौपट करके रखते हैं। तो नए साल में लोग यह संकल्प भी लेते हैं कि मैं अनावश्यक चिंताएं नहीं करूंगा। बुजुर्गों ने कहा ही है- चिंता से चतुराई घटे, दुख से घटे शरीर। मान लीजिए जर्दे वाला पान खाना छोड़ना है। किसी को इसकी लत है। तो यह नशा छोड़ना उसके लिए पहाड़ सिर पर उठाने जैसा लगता है। यह सोचना उसके लिए मुश्किल है कि पान के बगैर वह रहेगा कैसे? लेकिन अपनी प्रबल इच्छा शक्ति से जब वह पान छोड़ ही देता है तो उसे लगता है- हे भगवान, यह पान तो मेरा शत्रु ही था। इससे सारे दांत खराब हो रहे थे और घिस भी रहे थे। मुंह की कोमल झिल्ली नष्ट हो रही थी, वगैरह वगैरह। एक बार दृढ़ हो कर अच्छी बातों का संकल्प लेने और उसका पालन करने का मजा ही कुछ और है। यानी जितना नशा करने में आनंद है उससे कई गुना ज्यादा हर नशे से दूर रहने में है। कोई भी व्यसन हमें बांधता है, हमें गुलाम बनाता है। क्यों न हम आज से इसी तरह का कोई संकल्प लें कि अपने भीतर से अमुक कमी को दूर करना है, अमुक व्यसन को छोड़ना है। यह संकल्प भी कि हर महीने कोई न कोई अच्छी आदत खुद में जोड़ते जाना है। इन सब बातों का अपना ही आनंद है।
2 comments:
bihari singh is likhte rahiya, accha lagta hai
yeh bhi jaruri hai
आपकी टिप्पणी से सुख मिला। आभार। वैसे मेरा नाम- विनय बिहारी सिंह है। नाम लिखने में गड़बड़ी हो गई है। कोई बात नहीं। ऐसा हो जाता है। नया साल आपके जीवन में हमेशा के लिए सुख, शांति और आनंद लाए।
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