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23.1.09

हां, ढोंगी साधुओं की भरमार है, लेकिन दिव्य संतों को हम क्यों भूलें


विनय बिहारी सिंह

कुछ मित्रों ने रमण महर्षि पर लिखे मेरे लेख पर टिप्पणी की है, कुछ फोन भी आए हैं। सबका कहना है कि आजकल ढोंगी साधु इतने हो गए हैं कि अब साधु- संतों से घिन आने लगी है। हां मित्रों, यह सच है कि नकली या कहें इंद्रिय लोलुप या भेड़िए साधु के रूप में खूब मिल जाएंगे। आजकल जहां देखिए वही वही नजर आ रहे हैं। लेकिन इस वजह से क्या हम उन संतों को भूल जाएं जिन्होंने इस पृथ्वी को पवित्र किया है? हां, रमण महर्षि ऐसे ही संत थे। ऐसे संतों के बारे में दुबारा- तिबारा पढ़ कर कई चीजें दिमाग में कौंधती हैं, जो एक तरह से अच्छी बात कही जाएगी। एक तो साधना करने वाले दिखाते- बताते नहीं हैं कि वे बहुत पहुंचे हुए संत हैं। दूसरे रबड़ी- मलाई के लिए वे लोलुप व्यक्ति की तरह चक्कर नहीं लगाते रहते। वे धन के लिए चंदा या कपड़ा या और कुछ नहीं मांगते। सच्चे संतों के बारे में मैंने जो भी अध्ययन किया है, उससे यही निकला है कि संत तो जन कोलाहल से दूर कहीं किसी गुफा में या एकांत में बैठ कर साधना करते हैं और उन्हें संसार से कुछ भी नहीं चाहिए। कोई भी इच्छा, मैं फिर से दुहरा रहा हूं- कोई भी इच्छा उनके मन में नहीं होती और उन्हें कुछ नहीं चाहिए। कुछ भी नहीं। वे सिर्फ औऱ सिर्फ ईश्वर से प्रेम करते हैं और इस कारण दुखी, पीडि़त और असहायों की करुणा के कारण मदद करते हैं। न उन्हें रहने के लिए मकान चाहिए, न गाड़ी और न कपड़े। रमण महर्षि जीवन भर एक लंगोटी पहन कर रहे। नंगे बदन। जाड़े में भक्त उन्हें गर्म चादर ओढ़ा देते थे। लेकिन वह तब, जब रमणाश्रम बना और लोगों ने उन्हें वहां रहने की प्रर्थना की। उसके पहले वे जाड़ा, गर्मी और बरसात में एक लंगोटी पहने साधना करते रहते थे। उन्होंने कितने लोगों का कल्याण किया, बीमारियां ठीक कीं, भय, तनाव और क्रोध खत्म किया इसका कोई हिसाब नहीं है। और वह भी मुस्कराते हुए। और रमण महर्षि तो आज हैं नहीं। उनके शरीर छोड़े अनेक वर्ष हो गए। हम उन्हें सिर्फ याद ही कर सकते हैं। यहां तो प्रचार वगैरह वाली भी कोई बात नहीं है। पाल ब्रंटन ने उन पर किताब लिख कर जो कर दिया है उसके एक टुकड़े बराबर भी हम नहीं कर सकते। पुरानी बातों को याद करने की वजह सिर्फ यही है कि हम एक बार फिर मूल्यांकन करें कि आज जो साधु वेश में अनेक भ्रष्ट लोग घूमा करते हैं, वे खुद को ही कलंकित कर रहे हैं। लोग इतने बेवकूफ नहीं कि उनकी असलियत थोड़ी देर में न भांप लें। और सच कहें तो ऐसे नकली लोगों ने ही अनेक लोगों को नास्तिक बना दिया है। एक मित्र ने फोन किया है कि कोई क्या करे जब बार- बार नकली और दुष्ट साधुओं से ही पाला पड़े। मेरा कहना है- आप साधुओं से दूर रहिए। उन पर भरोसा मत कीजिए। लेकिन रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, रमण महर्षि, और उनसे पहले आदि शंकराचार्य आदि की लिखी किताबें जरूर पढिए। वे असली संत थे। उनकी किताबें पढ़ कर आपको लगेगा कि ये संत खुद ही बोल रहे हैं। उनकी शिक्षा तो कभी नहीं मर सकती। और वे क्या साधु- संत नहीं थे? और क्या संसार भर के साधु- संत भ्रम हैं। उनमें ईसा मसीह, सेंट फ्रांसिस, सेंट पाल और सेंट जेम्स प्रमुख हैं। ये दिव्य संत मनुष्य जाति का कल्याण कर गए हैं। क्या हम उन्हें याद न करें?

2 comments:

Jayram Viplav said...

sahi kaha winay bhai..... apne naam ke anurup hiaapke sabd bhi prabhawit karte hain.......
sadhu- santon ke dosh ginte -ginte haM APNE AP KO BHULJATE HAIN ... KHUD AGAR EK BHI SATWIK GUN PAIDA KAR LE TO KALYAAN HO JAYEGA..
AISE FAZIL TIPPANI KARO KE UPAR SOCHNA BEKAR ........KUCHH LOG TO AAJKAL BAS AISE HI KUCHH BHI LIKHTE HAI POPULARITY KA NAYA FANDA YAHI HAI ...........
MANA KI AAJ SANT LOGO KE UTRADHIKARI BABAGIRI KE DHANDHE KO KHUB CHAMKA RAHE HAIN PAR AAJ BHI SACHCHE JANSEWI , SAMAJ KO JAGANE WALO KI KAMI NAHI HAI. JARA UNKE BARE MAIN JANE.. KEWAL WESH DHARNE SE AUR PRAWACHAN YA CHAMATKAR SE KOI SANT NAHI BANTA.........
PATA NAHI KISI KO AISA KYUN LAGTA HAI KI DUNIYA MAIN WAISE HI LOG HAIN JAISA USNE DEKHA HAI.............. KUAN KE MEDHAK..................KO SAMUDRA KI GAHRAI KA KYA ANDAJA......

Jayram Viplav said...

sahi kaha winay bhai..... apne naam ke anurup hiaapke sabd bhi prabhawit karte hain.......
sadhu- santon ke dosh ginte -ginte haM APNE AP KO BHULJATE HAIN ... KHUD AGAR EK BHI SATWIK GUN PAIDA KAR LE TO KALYAAN HO JAYEGA..
AISE FAZIL TIPPANI KARO KE UPAR SOCHNA BEKAR ........KUCHH LOG TO AAJKAL BAS AISE HI KUCHH BHI LIKHTE HAI POPULARITY KA NAYA FANDA YAHI HAI ...........
MANA KI AAJ SANT LOGO KE UTRADHIKARI BABAGIRI KE DHANDHE KO KHUB CHAMKA RAHE HAIN PAR AAJ BHI SACHCHE JANSEWI , SAMAJ KO JAGANE WALO KI KAMI NAHI HAI. JARA UNKE BARE MAIN JANE.. KEWAL WESH DHARNE SE AUR PRAWACHAN YA CHAMATKAR SE KOI SANT NAHI BANTA.........
PATA NAHI KISI KO AISA KYUN LAGTA HAI KI DUNIYA MAIN WAISE HI LOG HAIN JAISA USNE DEKHA HAI.............. KUAN KE MEDHAK..................KO SAMUDRA KI GAHRAI KA KYA ANDAJA......