विनोद के मुसान
रामजी भाई गांव वाले इन दिनों काफी परेशान हैं। यूं तो उनकी परेशानी की वजह कुछ खास नहीं, लेकिन समस्या देशहित के साथ उनके कैरियर से जुडी है। व्यवस्था में रामजी भाई का योगदान मात्र इतना है कि वर्ष दर वर्ष किसी न किसी चुनाव में वे अपना कीमती मत 'दान` कर देते हैं। यूं तो उनका यह दान बहुत बड़ा है, लेकिन उन्हें लगता है मात्र दान कर लेने भर से उनकी और देश की समस्याएं हल होने वाली नहीं हैं। इसलिए पिछले दिनों उन्हें कुछ नया करने की सुझी और उन्होंने एक क्रांतिकारी कदम उठाने का निर्णय ले लिया।
आम आदमी का लेबल लिए रामजी भाई भले ही 'आम` हों, लेकिन उनमें वह सारी काबिलियत मौजूद हैं, जो उन्हें आम से खास बना सकती हैं। लेकिन व्यवस्था से अपरिचित जब उनका सामना सच्चाई से हुआ तो सारी की सारी योजनाएं धरी रह गइंर्।
रामजी भाई चाहते थे कि वे जनता की बीच जाकर देश की सर्वोच्च संस्था से जुड देशहित में योगदान दें। लेकिन, यहां पर आकार वे फंस जाते हैं।
उनके पास राजनीति में आने के लिए न तो किसी फिल्मीस्तान यूनिर्वसिटी की डिग्री है और न वे गुल्ली-डंडा केअलावा कभी क्रिकेटिया रंग में रंग पाए। गांव में रहते हुए उन्हें भाईगिरी करने का भी मौका नहीं मिला। बस नाम के ही 'रामजी भाई` बनकर रह गए। अब भला देश की समस्याएं हल कैसे हों, यही चिंता उन्हें आजकल दिन रात खाए जा रही है। इन दिनों रामजी भाई अपने गैर राजनीतिक खानदान को कोसने से भी बाज नहीं आते। दादा-नाना, चाचा-ताऊ, मामा-फूफा कोई तो होता, जो भवंर फंसी उनकी नैया का इस व त खेवनहार बनता। राजनीति केमैदान में उनका खानदान हमेशा से 'सफाच्चट` ही रहा। जिसका उन्हें इस दिनों खासा दुख है।
आर्थिक तंगी से जूझ रहे रामजी भाई की बीते दिनों की गई समाज सेवा भी काम नहीं आ रही। बुरे कर्मों की बाढ़ में लोग अच्छे काम करने वाले को किस कदर भूल जाते है, इसका अहसास रामजी भाई को इन दिनों खूब हो रहा है। वोट बैंक की राजनीति का आधुनिक 'विकृत` चेहरा देख वे हैरान हैं। टिकट से पहले नोट, जातिगत समीकरण और सेलिब्रिटी लेबल के अलावा तमाम दूसरे दाव-पेचों से उनकी झोली बिल्कुल खाली है। आमोखास बनने का कोई भी रास्ता उन्हें दिखाई नहीं दे रहा। ऐसे में उनकी चिंता लाजिमी है।
आखिर उनकी जुगत उनके साथ देशहित से जु़डी है। रामजी भाई बड़ा सोचते लेकिन बौनी व्यवस्था के आगे उनके कदम लड़खड़ाने लगते हैं। आखिर, हैं तो वह आम आदमी ही। जिसका कोई पूछनहार नहीं होता। कई तरह की जुगत लगाने के बाद भी जब रामजी भाई को कोई प्लेटफार्म नहीं मिल रहा तो वे अब इस क्षेत्र में आने से पूर्व अलविदा कहने की तैयारी कर रहे हैं।
17.3.09
राजनीति में एंट्री
Labels: तीर-ए-नजर
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