मेरी सोई हुई पीढ़ी,
उठो फिर से संभलना है,
यही मंजिल नहीं अपनी,
अभी तो और चलना है।
सितारे गुम हैं अम्बर से,
जुदा हर शाख तरुवर से,
सभी वातावरण बिखरा,
सितारों का चमन बिखरा,
सितारों को उगाना है,
चमन फिर से सजाना है,
नए श्रम के नगीने से,
कि अपने ही पसीने से,
तुम्हें अब प्यार से ही,
नफरतों का रुख बदलना है।
यही मंजिल नही अपनी,
अभी तो और चलना है।
ज़रूरत चेतना की है,
ज़रूरत साधना की है,
ज़रूरत एकता की है,
समन्वय वंदना की है,
बनो मुस्कान की दुनिया,
नई पहचान की दुनिया,
अकेली गूँज से हटकर,
बनो सहगान की दुनिया,
अँधेरी राह में सूरज,
तुम्हें बनकर निकलना है।
यही मंजिल नहीं अपनी,
अभी तो और चलना है।
चेतन आनंद
20.3.09
गीत- अभी तो और चलना है
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