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25.3.09

सवाल ही जवाब हैं

http://crykedost।blogspot.com/ से शिरीष खरे


बच्चों को चाहिए सारा आकाश....
पंखों के लिए पूरी आज़ादी
CRY- बच्चों के हक़ की आवाज़ को बुलंद करता रहा है। देश के आधे बच्चे अपनी मौलिक शिक्षा से महरूम हैं। सालाना, २ मिलियन से अधिक शिशु अपना पहला बर्थडे नहीं मना पाते हैं ? कई मिलियन बच्चें भूखे और बेघर है. CRY, पिछले २९ सालों से grassroot पर वंचित बच्चों, उनके परिवार और समुदाय के साथ अब तक १८ राज्यों के २५००० गॉव और झुग्गियों में बदलाव की कोशिशों में लगा रहा है. हम लिंग, जाति, आजीविका और विस्थापन की तह तक जाकर रोजाना भूख, गरीबी, बेकारी, शोषण, अत्याचार और तमाम रोगों के खिलाफ लड़ते हैं.

भारत में बालश्रम आंकडों के आईने में

भारत में दुनिया के किसी भी देश की तुलना में सबसे अधिक 1.7 करोड़ बालश्रमिक हैं जबकि पूरी दुनिया में बालश्रमिकों की संख्या फिलहाल 24.6 करोड़ है जिसमें से 70 प्रतिशत की स्थिति दयनीय है।
स्वयं सेवी संस्था 'चाईल्ड राईट्स एंड यू' के मुताबिक देश में मौजूद बालश्रमिकों में से 19 प्रतिशत घरेलू नौकर हैं, 90 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में हैं और 85 प्रतिशत असंगठित क्षेत्र के उद्योगों में हैं, जबकि लगभग 80 प्रतिशत बालश्रमिक कृषि क्षेत्र से जुड़े हुए हैं।

संस्था के मुताबिक बालश्रम में लगे 18 वर्ष से कम उम्र के 25 प्रतिशत बच्चे व्यावसायिक यौन शोषण के शिकार हैं।

संस्था का कहना है कि देश के लाखों बच्चे अपने परिवार के सदस्यों की आर्थिक मदद के लिए काम करते हैं। उनके घर वालों के बेरोजगार होने के कारण वे स्कूल जाना तो दूर खेलने और आराम करने के लिए भी समय नहीं निकाल पाते।

संस्था का कहना है कि कुछ गरीब परिवार ऐसे हैं जो अपने बच्चों को ठेकेदारों के हाथ बेच देते हैं जो उनसे होटलों और कोठियों में काम करवाते हैं।बालश्रम रोकने के लिए देश में 'बालश्रम (सुरक्षा एवं विनियमन) अधियनिम 1986' की कानूनी व्यवस्था है। लेकिन इस कानून का प्रभाव केवल 15 प्रतिशत है।

सवाल ही जवाब हैं

कई बार, ऐसा भी होता है कि आपके बच्चे को स्कूल से बाहर का रास्ता दिखाया जाता है, इसलिए क्योकि आपके पास नहीं होती वो नौकरी, जो आपके परिवार को एक बेहतर परवरिश के लिए चाहिए.
सोचिये, एक छोटी मगर अहम् बात, कि आपकी बच्ची स्कूल महज़ इस संकोच में नहीं जाना चाहती, क्योकि वहां उसके लिए बाथरूम नहीं होता. अपने देश में, कई परिवारों के, कई-कई बच्चों को, बंधुआ मजदूरी के लिए पैदा किया जा रहा है.
अपने यहाँ, रोजाना १० हज़ार बच्चे यूं ही मर जाते हैं. सालाना, २० लाख शिशु एक साल भी नहीं जी पाते हैं . क्या हम भारतीय, एक ऐसी हवा में साँस लेना चाहेंगे, जहाँ हजारों नन्ही आँखें बिना किसी ठोस कारण के सदा के लिए बंद हो जाती हैं ? हर रात, कई लाख 'देश के भविष्य' भूखे सोने पर मजबूर हैं.
क्या आप उस अपमान भरी बात से वाकिफ हैं, जब अपने यहाँ के, आधे से अधिक बच्चे , रोजाना शिक्षा के कानूनी हकों से बेदखल कर दिए जाते हैं ? इन सच्चाइयों को किसी भी आपदा से कमतर नहीं आँका जा सकता. इन हालातों को पलट सकतें है,
हम और आप. जरूरी होगा बच्चों की दिक्कतों की असली वजहों को जानना, इनके आसपास के इंसानी पहलुओं को समझना और एक 'अधिकार-मूलक' सोच को अपनाना. अगर आप भी ऐसा ही सोचते है तो आइये मिलकर लड़े, अन्धकार के खिलाफ 'भारत की रोशनी' के लिए....

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