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29.3.09

आजाद भारत का गांधी

-आवेश तिवारी
वो देश के पहले प्रधानमन्त्री पंडित नेहरु का वंशज है ,वो महात्मा गाँधी के नाम की चादर ओढ़ कर देशज राजनीति की सरमायादारी का दावा करने वाले परिवार का एक सदस्य है ,वो उस माँ का बेटा है जिसे गाय का दूध पीना भी हिंसक लगता है,परन्तु अपने पुत्र की शाब्दिक हिंसा से उसे कोई ऐतराज नहीं वो उसे गर्व का विषय मानती है ,वो उस पिता का पुत्र है जो सत्तर के दशक में परदे के पीछे देश के अघोषित प्रधानमंत्री का किरदार निभा रहा था और उस वक़्त देश का अल्पसंख्यक त्राहिमाम कर रहा था ,ये वो व्यक्ति है जिसे शिव सेना का सुप्रीमो ये कह कर सम्मान करता है कि ये वो गाँधी है जिसे हम पसंद करते हैं ,वो उस राजनैतिक दल की नुमाइंदगी करता है ,जिसकी वादाखिलाफी और बड़बोलेपन ने राष्ट्रीय राजनीति में उसे हाशिये पर धकेल दिया है |जी हाँ ये वरुण गाँधी है ,वो वरुण गाँधी जिसका लोकसभा में पहुंचना लगभग तय है ,उसने देश के मुसलमानों को को पकिस्तान भेजे जाने और हिंदुओं की तरफ उठे हर हाथ को काट देने की बात कही और अपनी विजयश्री सुनिश्चित कर ली |कल को वो देश का प्रधानमन्त्री ,किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री या फिर कोई कैबिनेट मिनिस्टर भी हो सकता है |लन्दन स्कूल ऑफ़ इकोनोमिक्स के लोकतान्त्रिक और भेदभाव रहित वातावरण में शिक्षाप्राप्त वरुण ने पीलीभीत में जो कहा वो सिर्फ एक बचकाना बयान नहीं था ,विवादास्पद बयान के बाद जमानत की अर्जी वापस लेने और न्यायलय में उपस्थित होने के दौरान किया गया हाई प्रोफाइल ड्रामा,उस रणनीति का हिस्सा था जिसका इस्तेमाल भारतीय राजनीति में आम हो गया है ,यानि कि अगर आगे बढ़ना है तो विवाद में रहो |सच ही तो है आज समाचार चैनलों ,अखबारों की सुर्खियों और राजनैतिक गैर राजनैतिक मंचों पर वरुण और सिर्फ वरुण की चर्चा है | यहाँ पर सवाल सिर्फ वरुण के बयान और उसके बाद पैदा की गयी परिस्थितियों का नहीं है सवाल ये भी है कि ऐसे माहौल में जहाँ वोटों का निर्धारण उम्मीदवार की कट्टरता और उसकी विवादित छवि से होता हो ,चुनावों के नतीजे कितने पारदर्शी होंगे ?और क्या उन नतीजों की लोकतांत्रिक व्याख्या करना संभव होगा?
ये बात तो पूरी तरह से साफ़ है कि ये सारा खेल पूरी तरह से सुनियोजित है ,ये भी साफ़ है कि वरुण का बयान और उसके बाद की ड्रामेबाजी उत्तर प्रदेश में नेस्तनाबूद हो चुकी भाजपा के पॉलिटिकल गेम प्लान का हिस्सा है ,इस पूरे मामले के बाद प्रदेश में अगर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण बढ़ता है तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए |साथ में ये भी तय है कि आने वाले दिनों में वरुण अपने इसी बयान की माफ़ी मांगेंगे ,लेकिन तब तक काफी देर होचुकी होगी .दिल तब भी टूटे थे जब बाबरी मस्जिद टूटी थी,दिल तब भी टूटे थे जब गुजरात में निर्दोष हिन्दुओं कि सामूहिक हत्या के बाद ,बदले की कार्यवाही में हजारों मुस्लिम भी मारे गए थे ,दिल तब भी टूटे थे जब देश में लगातार सीरियल बम्ब ब्लास्ट किये जा रहे थे .अगर राजनीति विज्ञानं में इस पूरे सन्दर्भ की मीमांसा की जाए तो लगता है जैसे देश में अलग अलग जगहों पर अलग अलग दलों के प्रभुत्व की वजह सिर्फ उनको मिलने वाला जन समर्थन नहीं है बल्कि भीड़ का वो स्तरीकरण है जिसमे कोई एक दूसरे पर भारी हो जाता है ऐसे में ये कहना ग़लत नही होगा कि लगभग सवा अरब की जनसँख्या वाले भारत में लगभग आधी आबादी डर डर के साँसे ले रही है वो हिन्दू,मुस्लिम,सिख किसी की साँसे हो सकती हैं ,वो डर वरुण ,तोगडिया ,मोदी ,जगदीश ,सज्जन ,शाहबुद्दीन ,मुख्तार ,राज ठाकरे किसी का भी हो सकता है |ऐसे में कहाँ लोकतंत्र कैसा लोकतंत्र ?

जिस वक़्त मेनका गाँधी के पुत्र वरुण पीलीभीत की अदालत में आत्मसमर्पण कर रहे थे ,ठीक उसी वक़्त दिल्ली में सी.बी.आई ८४ के सिख दंगों में शामिल जगदीश टाईटलर के खिलाफ चल रही न्यायिक कार्यवाही वापस लेने के लिए कोर्ट में हलफनामा दे रही थी |वैसे तो इन दोनों घटनाओं में कोई साम्यता नहीं दिखती ,लेकिन अगर गहराई से देखा जाये तो ये साफ़ पता चलता है की इन दोनों घटनाओं का राजनैतिक नफा ,देश के दो बड़े राजनैतिक दल पूरे मनोयोग से भजायेंगे ,एक ने इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद दिल्ली की सड़कों पर भीड़ को ललकार कर भारी तादात में सिखों की बलि ले ली तो दूसरा भगवा झंडे के नीचे हिन्दुओं की तरफ उठे हर हाँथ को काट देने की बात करता है , अपने पुत्र के बयान पर उसकी पीठ ठोंकने वाली मेनका हास्यास्पद ढंग से कहती हैं कि ८४ के दंगों में अपनी भूमिका को छिपाने के लिए कांग्रेस वरुण के खिलाफ विषवमन कर रही है ,वहीँ दूसरी तरफ उन दंगों को लेकर कांग्रेस की हर वक़्त शिनाख्त परेड करने वाले आडवानी इस बड़बोले युवक को पोस्टर ब्वाय बताकर अपने नंबर बढाने में लगे हैं |वहीँ दूसरी तरफ कांग्रेस वरुण के बयान को राष्ट्रीयता के लिए खतरा बताकर निरंतर आलोचना तो कर ही रही थी उसकी गिरफ्तारी को पॉलिटिकल प्लान बताकर मुस्लिम वोट बैंक पर अपनी पकड़ मजबूत बनाने कि कोशिश कर रही है |

जैसे जैसे वक़्त बीत रहा है वरुण के समर्थन में बोलने वालों की तादात लगातार बढती जा रही है ,तमाम तथाकथित हिंदूवादी संगठन वरुण के समर्थन में खड़े हुए हैं ,प्रवीण तोगडिया ने ऐलान किया है कि पीलीभीत में हिन्दुओं पर मुसलमानों के कारण जो अत्याचार चल रहा है, उसका मुनासिब जवाब दिया जायेगा ,भाजपा के मुस्लिम चेहरे भी वरुण की आलोचना के बाद खुद ही अपना सर पिटते हुए उनके समर्थन में बोल रहे हैं इन सबके बीच सारे न्यूज़ चैनल वरुण को पॉलिटिकल आइकन बनाकर प्रस्तुत करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं ,चुनाव की अन्य खबरें गायब हैं ,मेरे एक पत्रकार मित्र कहते हैं कि 'वरुण की बयानबाजी के बाद उस पर कि जाने वाली आलोचना -प्रत्यालोचना से वोटों के ध्रुवीकरण का खेल शायद नहीं खेला जा सकता था अगर खबरिया चैनलों ने उसे प्रचारित किया होता '.खुद भाजपा के सीनियर नेता बलबीर पुंज कहते है कि 'वरुण समाचार चैनलों के लिए राष्ट्रीय नेता हैं ,भाजपा के लिए राष्ट्रीय स्तर का नेता बनने में उन्हें समय लगेगा '.ऐसे में सिर्फ वरुण के बयान को विषवमन बताकर ये चैनल अपनी नैतिक जिम्मेदारी से मुँह नहीं मोड़ सकते,पीलीभीत में कल की घटना के दौरान २० लोग घायल हुए ,भीड़ की उग्रता के पीछे कैमरों की उपस्थिति भी एक बड़ी वजह थी ,कल को अगर बवाल और भड़कता है तो उसकी एक वजह ख़बरों को जबरन पैदा करने की ये कवायत भी होगी ,जिसमे जानबूझ कर वरुण गाँधी और उसकी पार्टी को अतिरिक्त लाभ देने की कोशिश की जा रही है |ये बात सारे चैनलों को पता है कि उनकी ये तथाकथित साफगोई चुनाव नतीजों पर व्यापक असर डालने जा रही है |

हिंदुस्तान में लोकतंत्र घिसट घिसट कर चल रहा है,अगर किसी से अपेक्षा थी तो देश के युवाओं से ,मगर अफ़सोस युवाओं के नाम पर हमारे पास सिर्फ और सिर्फ गाँधी परिवार की आज की पीढी ही बची है ,बाकी जो लोग हैं उनके पास तो बोलने को शब्द है देखने को आँखें या फिर ये कहिये हम बोलना चाहते ही नहीं |वरुण का बयान डेमोक्रेसी के उस मैकेनिस्म का टूटना है जिस पर देश टिका हुआ था और जिसे बनाये रखने की जिम्मेदारी हम युवाओं पर थी |मुझे धूमिल की वो कविता साँसे लेती हुई नजर रही है जिसमे वो कहते हैं -
वो धड से सर ऐसे अलग करता है
जैसे मिस्त्री बोल्ट से नट अलग करता है
तुम कहते हो हत्याएं बढ़ रही हैं
मैं कहता हूँ मैकेनिस्म टूट रहा है

9 comments:

Unknown said...

GOOD VIEWS BUT WE SHOULD NOT FORGET THAT NOW EVERYTHING IS FARE IN POLITICS , IN FUTURE ONE DAY WE MAY SEE THAT HE IS IN CONGRESS ALSO.WE SHOULD EXPRESS OUR VIEWS BUT THINK BEFORE THAT .

Anonymous said...

aap ke pas is samayasha ka samashan

awesh said...
This comment has been removed by the author.
Abha Khetarpal said...

कहाँ लोकतंत्र कैसा लोकतंत्र ?...
bas yahi to ek sawal hai jo aaj har hindusatni ko pareshan kiye jata hai...
apka likha hua hum sab ko ye sochne par majboor kiye jata hai ki kya sach me hamara desh ek lotaantrik desh hai ya loktantra ke naam par kewal rajnitigyon ki bichhayi hui shatraj ki bisaat ya ek ghinona khel??!!

Anonymous said...

आप कुछ ज्यादा परेशान हे कोई काम धंधा नही है ,माना की आप जानकारी रखते देश दुनिया के बारे में मगर इससे कुछ होने वाला नही है आप वरुण को अपमानित करने की बजाये सम्मानित करे क्योकि वो अपने पूर्वजो के बताये रास्ते पर चल रहा है आख़िर आप चाहते क्या है नेहरू जी अपने आप को प्रधानमंत्री बनाने के लिए देश के बिभाजित कर दिया ,आप वरुण गाँधी से और क्या चाहते ये तो सिर्फ गाली दे रहे हे और गाली देने की इतनी सजा काफी है सत्ता पाने के लिए सब जायज है

Anonymous said...

आप कुछ ज्यादा परेशान हे कोई काम धंधा नही है ,माना की आप जानकारी रखते देश दुनिया के बारे में मगर इससे कुछ होने वाला नही है आप वरुण को अपमानित करने की बजाये सम्मानित करे क्योकि वो अपने पूर्वजो के बताये रास्ते पर चल रहा है आख़िर आप चाहते क्या है नेहरू जी अपने आप को प्रधानमंत्री बनाने के लिए देश के बिभाजित कर दिया ,आप वरुण गाँधी से और क्या चाहते ये तो सिर्फ गाली दे रहे हे और गाली देने की इतनी सजा काफी है सत्ता पाने के लिए सब जायज है

ज्योत्स्ना पाण्डेय said...

जिन बयानों से साम्प्रदायिकता का ज़हर फैलता उन्हें मीडिया इतनी प्रमुखता से क्यों सामने रखता है?
रही बात वरुण गांधी के बचकाने बयानों कि, तो वह अपनी अपनी स्थिति मजबूत करने की पार्टी की रणनीति है, जिसे हर पार्टी अपने फायदे ले लिए अपनाती है.
छल नीति, बल नीति, कूट नीति, रणनीति, ऐसी ही कई नीतियों का समन्वय है----"राजनीति"

Anonymous said...

hgfkgvfug

डॉ. जेन्नी शबनम said...

आवेश जी,
प्रजातंत्र को हर रोज़ मरते देखते हैं, ये कटु सत्य है, और इसका दोष सिर्फ सत्ता की पक्ष-विपक्ष की पार्टियों को नहीं दे सकते, हर एक भारतवासी कहीं न कहीं देश के इस दुर्भाग्य का कारण है| आश्चर्य होता कि इसी गाँधी परिवार का यह पुत्र कैसे ऐसा हो गया जिसके परिवार का हर सदस्य एक सोंच रखता है| राजनीति का ये खेल तो पुराना है, लेकिन इसी देश की जनता ऐसे धार्मिक कट्टरवादी का साथ देती, और इनकी सरकार भी बन जाती है| आज गुजरात, बिहार, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब...इत्यादि किसी भी प्रदेश की बात कहें तो कोई जगह ऐसा नहीं जहाँ साम्प्रदायिक दंगा न हुआ हो, जबकि यहाँ अलग अलग पार्टी की सरकार है|
जहाँ तक मीडिया की बात है, तो वो भी इसी देश का अंग है, शक्ति, सत्ता, और फायदा ये सबको चाहिए होता है, और इससे परहेज किसे है?
युवाओं पर देश की बागडोर होती है, लेकिन अफ़सोस ऐसे युवाओं को हीं हम जातिवाद, सम्प्रदायवाद, क्षेत्रवाद, आदि के घृणित अपराधों में संलग्न पाते हैं| आशा है कि आपके इस लेख को पढ़कर कुछ जागरूकता आये|
बहुत हीं सटीक और सार्थक लेख है| बधाई और शुभकामनायें|