तेरी महफिल में किस्मत आजमाकर हम भी देखेंगे...., सइयां दिल में आना रे..., बूझ मेरा क्या नाम रे...., मेरे पिया गए रंगून किया है वहां टेलीफून...., एक दो तीन आज मौसम है रंगीन...., बूझ मेरा क्या नाम रे..., कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना....। इन गीतों केये अमर बोल पढ़कर आपने यह अंदाजा लगा लिया होगा कि मैं किसकी बात कर रहा हूं। हां आप एकदम सही सोच रहे हैं मैं बात कर रहा हूं महान गायिका शमशाद बेगम की। जैसे ही इन गीतों को मैं सुनता हूं मुझे उनके बारे में याल आने लगता है। अचानक आज(31 मार्च 2009) जब मैंने अपने आफिस में न्यूज प्रो आन करकेतस्वीरें चेक करनी शुरू की तो मुझे शमशाद बेगम की व्हील चेयर पर बैठे पुरस्कार लेते हुए एक तस्वीर दिखाई दी। इस तस्वीर को देखकर मैं खुश हो गया क्योंकि मैं इस गायिका के बारे मे न जाने कितने लोगों से सवाल कर चुका हूं पर किसी ने भी मुझे उनकेबारे में कोई जानकारी नहीं दी। मैं कई बार मुंबई गया और इस महान गायिका का साक्षात्कार करना चाहा पर मुझे कोई क्लू नहीं मिला। पर आज इस गायिका को रास्ट्रपति प्रतिभा देवी पाटिल के हाथों समानित होते देखना काफी अच्छा लगा। शमशाद बेगम को 2009 का पद्म भूषण समान दिया गया है। मैं ऐसे बहुत से पुराने कलाकारों के बारे में जानने की वाहिश रखता हूं जो अभी इस दुनिया मे हैं पर मुझे लगता है कि बहुत से कलाकार धीरे-धीरे गुमनामी केअंधेरे में खो गए हैं। पर ये जानकर अच्छा लगा कि चलो सरकार अभी इस महान गायिका को भूली नहीं है। मुझे सबसे अधिक उस समय लगा जब 2007 में महान भजन गायक श्री हरिओम शरण जी का निधन हो गया उनकी इस खबर का पता भी नहींं चला। अखबारों ने उनकी सिंगल कालम खबर तक नहीं छापी न ही टेलीवीजन चैनलों ने उसे कवर किया। पर हां किसी भलेमानुष ने उनका 5 सेकंड का वीडियो अंतिम यात्रा का यू ट्यूब पर जरूर पोस्ट कर दिया जिससे बहुत से लोगों को धीरे-धीरे यह पता चल रहा है कि एक हरिओम जी अब हमारे बीच नहीं रहे। आखिर कलाकारों के प्रति ऐसी उदासीनता क्यों?
31.3.09
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1 comment:
आज-कल ज़माना ही कुछ ऐसा है.. एक तरफ jade goody अपनी ही मृत्यु का मीडीया में प्रसारण करती है और दूसरी तरफ़ सामाजिक हस्तियाँ मिटती जा रही हैं पर मीडीया के पास उनके लिए मिनट तक नहीं। अब तो ये हाल है कि लोग अपना दुखड़ा सुनाने भी सज-सँवर कर जाते हैं टीवी पर..
कुछ चीजें पहले अनमोल हुआ करती थीं..जिनका कोई मोल ना था..और ना ही कोई लगा सकता था.. पर आजकल तो सबकुछ बिकता है..मृत्यू की भी बोली लगती है भाई.. :-(
हरिओम शरण जी के भजन तो घर-घर में बजाए और गाए जाते हैं.. कौन-से मंदिर में उनके हनुमान चालिसा के कैसेट नहीं बजते होंगे.. और शमशाद बेगम जा का तो कोई जवाब नहीं.. उनके तो कई सारे गाने मेरे favorite हैं..
समय बदल जाएगा और हस्तियाँ मिट जाएँगी.. पुष्त पर पुष्त बदल जाएँगे.. पर इन महान कलाकारों के कार्य हमेशा जीवित रहेंगे।
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