एक पत्रकार पुलिस, नेता और अपराधियों से इतना तंग आ जाता है कि उसे शर्मिंदगी के मारे आत्महत्या करने पर मजबूर होना पड़ता है। युवा पत्रकार संवेदनशील था। उसकी चमड़ी मोटी नहीं थी। उसे दुनिया के दंद-फंद नहीं आते थे। वह तो केवल मेहनत, ईमानदारी, सच्चाई और साहस जानता था। उसे इसका 'फल' मिला। झूठे मामलों में उसे पिटवाया गया। उसे प्रताड़ित किया गया। इस युवा पत्रकार के पिता भी पत्रकार हैं। बेटे को लगा कि इस लोकतंत्र में कहीं से कोई न्याय नहीं मिलने वाला है तो उसने न्याय पाने के लिए खुद को दांव पर लगा दिया। मरने से पहले जो सुसाइड नोट लिखा, उसमें उसने दोषियों के नाम साफ-साफ लिख डाले थे। इस सुसाइड नोट पर क्लिक कर आप इसे बड़ा कर पूरा पढ़ सकते हैं।
क्या हम लोग वाकई अब उस असभ्यता की ओर बढ़ चले हैं जहां ईमानदारी, सच्चाई और साहस के साथ जीने का मतलब होता है हत्या या आत्महत्या? सोचने और फिर सड़क पर उतरने का वक्त है यह दोस्तों वरना हमारी पीढ़ियां हम लोगों को माफ नहीं करेंगी। वे कहेंगी कि तुम लोगों ने ऐसा समाज हमारे लिए छोड़ा जिसमें सच की कोई साख ही नहीं थी......।
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क्या हम लोग वाकई अब उस असभ्यता की ओर बढ़ चले हैं जहां ईमानदारी, सच्चाई और साहस के साथ जीने का मतलब होता है हत्या या आत्महत्या? सोचने और फिर सड़क पर उतरने का वक्त है यह दोस्तों वरना हमारी पीढ़ियां हम लोगों को माफ नहीं करेंगी। वे कहेंगी कि तुम लोगों ने ऐसा समाज हमारे लिए छोड़ा जिसमें सच की कोई साख ही नहीं थी......।
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2 comments:
durbhaagya bhai.....durbhaagya
desh ka bhi
deshvasiyon ka bhi !
is mamale ko patrakarita se jude log kyo nhi utha rhe hain...? sabhi ek-ek karke mar diye jayenge agar ham sabhi kuchh pahal nhi kiye to...?
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