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26.8.09

लो क सं घ र्ष !: लघुतम जीवन का अर्पण...


इसके विशाल पैरो में
मानव का आत्म समर्पण।
भावना विनाशी का क्रंदन
लघुतम जीवन का अर्पण ॥

घर काल जयी आडम्बर,
इस नील निलय के नीचे ।
भव विभव पराभव संचित,
लालसा कसक को भींचे ॥

निज का यह भ्रम विस्तृत है ,
है जन्म मरण के ऊपर।
यह महा शक्ति बांधे है,
युग कल्प और मनवंतर ॥

डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

1 comment:

अनूप शुक्ल said...

सुन्दर लेकिन इसे चार ब्लाग में काहे पोस्ट किया जाता है जी!