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21.8.09

ज़रा सोंचिये... आपका आँगन भी सुना है?

बहन सोनल के ब्लॉग पर उनकी लिखी कविता "सुनी कलाई" पढ़ी. कहीं न कहीं मेरे मन को कहीं अन्दर छू गई और मुझे भी लिखने को मजबूर किया।
क्यों आज अकारण ही आज एक घर के कई सारे घर होते जा रहे है? क्यों आज हम अकेले तन्हा रहने को मजबूर है? क्यों हर त्यौहार सुना-सुना गुजर जाता है? क्यों राखियों पर बहने भाई को सिर्फ याद ही कर पति है? जवाब तो नहीं है मेरे पास इन सवाल का बस कुछ मन की भडास है जो निकाल दिया मैंने आप लोगों के सामने. मार्ग-दर्शन जरूर कीजियेगा... पढने के लिए यहाँ क्लिक करें...

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