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31.8.09

चिराग तले अँधेरा !!!

सभी बुद्धिजीवियों को मेरा सदर प्रणाम !! इस लेख में मैं क्या लिखने जा रहा हु मुझे पता नही..लेकिन अगर इसमे लिखी बातों से आप के जज्बातों को ठेस पहुंचे तो मुझ नादान को माफ़ करियेगा॥!!!

अब बात उठी है चिराग तले अंधेरे की तो मैं उस बारे में भी बताऊंगा लेकिन उससे पहले एक बात मीडिया की ....

मीडिया हमारे भारत में ही नही वरन पुरी दुनिया में लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के रूप में जाना जाता है...कहीं भी क्रांति की बात हो सबसे पहले नाम आता है पत्रकारों का...ऐसा मैं नही इतिहास कहता है...अब इतिहास कहता है तो सही कहता होगा....खैर जो भी हो ये तो मैं भी मानता हूँ की स्वतंत्रता की बात हो...क्रांति की बात हो, सम्मान की बात हो या लोकतंत्र की....हर जगह मीडिया की अहम् भूमिका है...हाँ भाई हो भी क्यूँ न आख़िर लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ जो है...मीडिया में वो ताकत है जो किसी को भी हिला कर रख दे...

यहाँ ये बता दूँ की मीडिया की ताकत मीडिया के कर्णधारों यानी की पत्रकारों से है...भाई !!! इन्हे भूलना मतलब पानी में रह कर मगर से बैर करने जैसा होगा...हाँ तो मैं बात कर रहा था..मीडिया पत्रकार और उनकी ताकत के बारे में ...हाँ तो अगर स्वतंत्रता की बात हो तो पत्रकारों के बारे में बात करना चाहिए...जहाँ कहीं भी दुःख हो दर्द हो...नियमों का उलंघन हो रहा हो ....वहां पुलिस से पहले पत्रकार पहुँच जाता है...ये मेरा नही दुनिया मानना है....ओह्ह्ह !!! बातों बातों में मैं तो ये भूल गया की मुझे चिराग तले अंधेरे के बारे में लिखना है...खैर कोई नही ...मैं उसी के बारे में लिख रहा हूँ जनाब॥!!!
अब मेरे भोले भले चेहरे पे मत जाइये ..मैं तब से कोई बकवास थोड़े ही कर रहा था ...मैं उसी बारे में लिखे रहा था ...हाँ ये बात जरुर है की अब तक बताया नही...लीजिये अब बता दूंगा...थोड़ा धीरज रखिये...पेट का सवाल है इसलिए थोड़ा सोच समझ के लिखना होगा इसलिए इतना घुमा रहा हूँ...सबके साथ ऐसा होता है.....जो जनाब !! आज से ठीक चार साल पहले मेरे पिताजी ने मुझसे कहा , "बेटा जा पत्रकार बन जा ," मैं भी मनमौजी कहा चलो आज तक कुछ नही कर पाया पत्रकार ही बन जाता हूँ कुछ न कुछ रोटी का जुगाड़ तो हो ही जाएगा और अपनी समाज सेवा भी होती रहेगी ..... खैर मैं पत्रकार तो बन गया रोटी का जुगाड़ भी हो गया बस एक बात नही हुई और वो ये की समाज सेवा बंद हो गई ....अरे भाई मैं समझता हूँ मैं समाज सेवक नही लेकिन मेरा परिवार तो समाज में ही आता है ..जब उसकी सेवा बंद हो गई तो समाज की सेवा बंद हो गई .....सही कहा न !!!??
सबकी आंखों को आशा की किरणे देने वाला ये पत्रकार !! सॉरी!!!! गरीब पत्रकार आज ख़ुद की आंखों से छिनते उस आशा की किरनो९न को नही रोक पा रहा .....ऐसा नही है की मैं निराशावादी हूँ और ये बात कह रहा हूँ ...भाई !!!!मैं भी एक आशावादी इंसान हूँ और आप सब लोगों ने एक ऐसी जगह बना दी है जहाँ कोई भी पत्रकार अपनी भड़ास निकाल सकता है इसलिए मैंने सोचा की मैं भी अपनी भडास निकाल लूँ....
हाँ तो असली बात ये है की आज हर गली मुहल्ल्ले में मीडिया और चैनल खुल रहे हैं....गरीबी के मारे मुझ जैसे गरीबों को कहीं नौकरी नही मिलती तो रोटी का जुगाड़ यहाँ हो जाता है लेकिन असल में हम यहाँ एक कैदी की तरह ही रहते हैं,....न कुछ कह सकते हैं न ही नौकरी छोड़ कर जा सकते हैं...अब मुझे ही लीजिये जहाँ काम कर रहा हु कुछ ऐसे लोग हैं जिन्हें काम धाम तो कुछ आता नही है हुक्म chalaana खूब आता है...मैं नाम नही लूँगा लेकिन एक दिन गरीब टाइप का चैनल खोल के इनको वहां झाडू लगाने के काम पे रखूँगा...swatantrata की बात करने waale इन chiragon तले इतना andhera hoga मैंने सोचा नही था...
khair !!! maza आ गया ..अपनी भडास निकाल के ...
चलिए आज इतना ही था !!!
अब agali बार जब gulami से fursat मिलेगी फिर aaunga तब तक के लिए gustakhi maaf।
आपका
pranay

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