‘22-23 जून 07 की रात जलालुद्दीहन उर्फ बाबू भाई के साथ मो0 अली अकबर हुसैन, अजीजुर्रहमान और शेख मुख्तार चारबाग लखनऊ, रेलवे स्टेशन किसी आतंकी वारदात को अजांम देने आए। बाबू भाई तीनों को वहीं रुकने के लिए कह, कहीं चला गया। 23 की सुबह चाय पीने के लिए जब वे तीनों बाहर आए तो टीवी पर चल रहे समाचार कि बाबू भाई गिरफ्तार, की खबर सुनने के बाद वे घबरा गए। इस आपा-धापी में उन लोगों ने रायबरेली जा रही एक जीप से पीजीआई के पास पहुंचे जहां टूटी हुई कोठरी की पिछली दीवार के पास गड्ढा खोद उसमें डेटोनेटर और हैंड गे्रनेड गाड़ दिया।’ थर्ड क्लास की जासूसी फिल्मों से ली गयी इस पुलिसिया पटकथा से पिछले दिनों तब पर्दा हटा जब पता चला कि अजीजुर्रहमान को 22 जून 07 को तिलजला कोलकाता में डकैती करने की साजिश के आरोप में गिरफ्तार कर अलीपुर न्यायालय में पेश किया गया था। जहां न्यायालय ने उसे 26 जून 07 तक की पुलिस रिमांड में दे दिया था। ऐसे में सवाल उठता है कि जब अजीजुर्रहमान पुलिस की हिरासत में था तो वह कैसे तकरीबन हजार किलो मीटर की दूरी तय करके लखनऊ आ सकता था।
कहानी में आए इस नए मोड़ से यूपी एसटीएफ सकते में आ गयी है कि एक बार फिर से उसकी थुक्का-फजीहत होने जा रही है। यूपी के एडीजी बृजलाल इस पर कोई प्रतिक्रिया यह कहते हुए नहीं दे रहें हैं कि मामला कोर्ट में है। पुलिस की इस गैरजिम्मेदाराना हरकत पर उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक एस आर दारापुरी कहते हैं कि इस तरह की फर्जी गिरफ्तारियां एसटीएफ की कार्यशैली बन गयी हैं। जिसके चलते सैकड़ों निर्दोष जेलों में सड़ने को मजबूर हैं। इसके पीछे वजह बताते हुए वे कहते हैं कि एसटीएफ को जिस तरह की खुली छूट मिली है, जो बहुत हद तक गैरकानूनी है, उससे ही इस तरह की स्थितियां उत्पन्न हुयी हैं। क्योंकि उनको इतने विशेषाधिकार मिले हैं कि उनके हौसले बुलंद हो गए हैं। ऐसे में वे पेशेवर अपराधियों की तरह लोगों को फर्जी मामलों में फसा रहे हैं या एनकाउंटर कर रहे हैं।
बहरहाल, सवाल यहां यह है कि इतनी भारी मात्रा में विस्फोटक पुलिस को कहां से मुहैया हुआ। क्योंकि अजीजुर्रहमान कोई पहला शख्स नहीं है, इसके पहले आफताब आलम अंसारी जिसे हुजी का एरिया कमांडर और कचहरी धमाकों का मास्टर माइंड बताया गया था उसके पास से तो डेढ़ सौ कुंतल आरडीएक्स बरामदगी का दावा पुलिस ने शुरु में किया ; पुलिस से कोई कैसे जीते/1 अपै्रल 08 प्रथम प्रवक्ता द्ध। पर मात्र 22 दिनों में रिहाई के बाद यह सवाल गायब हो गया कि पुलिस को किस सरकारी या आतंकी संगठन से विस्फोटक मुहैया हुआ था।
दरअसल इस पूरी थ्योरी को गढ़ने के लिए यूपी पुलिस ने एक अभियान चलाया था। जिसका जिक्र उसने चार्जशीट में भी किया है। पर इस पुलिसिया अभियान का पर्दाफाश उसी समय हो गया था जब हरिद्वार से उठाए गए नासिर जिसकी गुमशुदुगी की रिपोर्ट और पेपरों में आयी खबरों से यह बात आ चुकी थी कि उसे एसटीएफ ने ही उठाया था। उसी नासिर को जब पुलिस ने 21 जून 07 के प्रेस कानफ्रेस में पेश किया तो पत्रकारों ने सवाल कर दिया कि क्या यह वही नासिर है जिसे ऋषिकेश से उठाया गया था। इस पर पुलिस सकते में आ गयी और तकनीकी कारणों का हवाला देते हुए उसे वहां से हटा दिया और उस पर कुछ बोलने से इनकार कर दिया। ; आतंक, उत्पीड़न और वहशीपन यानी एसटीएफ! 16 जुलाई 08 प्रथम प्रवक्ता द्ध। बाद में आयी चार्जशीट में पुलिस ने उसे उसी दिन लखनऊ से गिरफतार करने का दावा किया।
हूजी के नाम पर पकड़े गए इन युवकों को पकड़ने के अभियान की कागजी शुरुवात 21 जून 07 से शुरु हुयी। जिसमें उसने नासिर को नाका से तो याकूब को हुसैनगंज थाना क्षेत्र लखनऊ से गिरफ्तार करने का दावा किया। नासिर की कहानी से ही मिलती जुलती याकूब की भी कहानी है। याकूब की पत्नी शमा बताती हैं कि 9 जून 07 को 2 बजे के तकरीबन याकूब अपने गांव तारापुर से नगीना के लिए गया, उसके बाद उसका कुछ अता-पता नहीं चला। वे बताती हैं कि 22 तारीख के अखबारों से उन लोगों को मालूम हुआ कि याकूब को पुलिस ने पकड़ लिया है।
पुलिसिया पटकथा के अनुसार नासिर और याकूब से पूछताछ में यह जानकारी हुयी कि जलालुद्दीन उर्फ बाबू भाई और नौशाद एक बड़ी आतंकी वारदात को अंजाम देने के लिए लखनऊ में हैं। 22 जून 07 की रात के तकरीबन साढ़े ग्यारह बजे मुखबिर से सूचना मिली कि वे अमीनाबाद के किसी होटल में भारी मात्रा में विस्फोटक और हथियारों के साथ हैं और वे बस स्टैंड से कहीं बाहर निकलने की फिराक में हैं। इसके बाद क्या था, पुलिस ने सूचना के आधार पर इनकी घेरेबंदी की जिसमें पुलिस के साथ इनकी मुठभेड़ भी हुयी। जिसमें पुलिस अंततः सफल हुयी और रात के तकरीबन 2ः40 पर जलालुद्दीन और नौशाद को एके 47, पिस्टल और भारी मात्रा में विस्फोटक के साथ गिरफतार किया। इस गिरफ्तारी के बाद की घटना बड़ी दिलचस्प ह।ै पुलिस के अनुसार गिरफ्तारी के तत्काल बाद उन्होंने बताया ‘दो बांगलादेशी हमारे पीछे रिक्शे से आ रहे थे। शायद उन्होंने आपको देख लिया तो वे हमारे पीछे नहीं आए। वे हमारी मदद के लिए आज ही आए थे उनका नाम हम नहीं जानते, अजीज जानता है। क्योंकि वे लोग उसी के गुर्गे थे और हम सबको ट्रेनिंग के वक्त नाम नहीं बताया जाता।’ यहां गौर करने की बात है कि इन दोनों को अजीज का नाम मालूम था। दूसरी बात यह कि जिस जलालुद्दीन को हूजी का बहुत बड़ा मास्टर माइंड पुलिस ने बताया वह गिरफ्तारी के तुरंत बाद किसी रट्टू तोते की तरह सब कबूलने लगा। और उसका भरोसा करके पुलिस ने पीछे आ रहे दोनों लोगों का पीछा करने की कोशिश भी की। इतना ही नहीं इन लोगों ने अजीजुर्रहमान के बारे में यह भी बताया ‘अजीज और उसका भाई शहर से आरडीएक्स कमर के कहने पर हमारे साथ-साथ अन्य टेªनिंगशुदा लोगों को देते थे।’ यहां आरडीएक्स का ऐसे नाम लिया गया है जैसे वो किराने पर मिलने वाली कोई वस्तु हो। जलालुद्दीन का यहां एक और बयान कि अजीजुर्रहमान 22 जून 07 को ही लखनऊ से कोलकाता चला गया था, एक और अंर्तविरोध पैदा करता है। जो सुनवायी के दौरान ही प्रमाणित होगा कि वह पुलिस के दबाव में दिया गया बयान था कि खुद उसका।
इस पूरी घटना में अजीजुर्रहमान का इकबालिया बयान और उसके बयान पर उप अधिक्षक आर एन सिंह ने जो बरामदगी दिखायी वो काफी महत्वपूर्ण है। जिसमें उसने कहा कि जलालुद्दीन की गिरफ्तारी के बाद वह अपने साथियों के साथ विस्फोटक छुपाकर ‘इलाहाबाद होते हुए कलकत्ता चले गए थे, वहीं पकडे़ गए। लखनऊ की पुलिस हमें लखनऊ लाकर जेल में बंद कर दी।’ ये बयान स्पष्ट करता है कि यह अजीजुर्रहमान का नहीं बल्कि पुलिस का बयान है। दूसरा कि जिस तरह इसमें कहा गया कि उसे कोलकाता में पकड़ा गया वह स्पष्ट करता है कि अजीज के बारे में यूपी पुलिस उस तथ्य को कि वह अलीपुर में किसी दूसरे मुकदमें के तहत बंद है, नहीं बताना चाहती थी। क्योंकि इससे उसकी पूरी कहानी ही बिगड़ जाती क्योंकि एक ही व्यक्ति जो कोलकाता में पुलिस की अभिरक्षा में उसी दिन था वह कैसे लखनऊ पहुंच सकता था। आतंकवाद के नाम पर बंद कई निर्दोषों को छुड़ा चुके और कई बार अदालतों में सांप्रदायिक और लंपट वकीलों के शिकार बने वकील मो0 शोएब कहते हैं कि अजीजुर्रहमान ही नहीं ऐसे दर्जनों लड़के हैं जो पुलिस की अन्र्तविरोधी फर्जी पटकथाओं के शिकार हैं। ऐसे तमाम लोगों को वकील मिल जांए तो वे छूट सकते हैं पर एसटीएफ और पुलिस उनको वकील मिलने ही नहीं देते और अगर कोई उनका मुकदमा लड़ता है तो उन पर हमला करवाते हैं। वे कहते हैं कि अजीजुर्रहमान का मुकदमा उन्हें दिसंबर में मिला और मैंने सारी तफ्तीश कर जमानत अर्जी डाल दी है और वह बस चंद दिनों का सरकारी मेहमान है। बड़े अफसोस के साथ वे कहते हैं कि अजीज सिर्फ वकील न मिलने के चलते इतने दिनों तक जेल में बंद रहा उसके खिलाफ तो कोई सबूत ही नहीं बनता बल्कि उल्टे पुलिस के खिलाफ सबूत बन रहे हैं।
अजीजुर्रहमान ईंट भट्ठा मजदूर था। अजीज की पत्नी आरिफा बताती हैं कि इस घटना ने उनकी घर-गृहस्थी को बर्बाद कर दिया और वे दाने-दाने को मोहताज हो गए हैं, क्योंकि अजीज ही एक कमाने वाला था। वे कहती हैं कि उनके पास तो वकील रखने तक का पैसा नहीं है। अजीज की बूढ़ी मां सफूरा बीवी पूछने पर कहती हैं कि खुदा के यहां देर है अंधेर नहीं, वह हमारे साथ न्याय करेगा।
पीयूसीएल के प्रदेश अध्यक्ष और वरिष्ठ मानवाधिकार नेता चितरंजन सिंह कहते हैं कि पुलिस में जिस तरह फर्जी तरीके से लोगों को उठाने की प्रवृत्ति बढ़ी है उस पर अंकुश लगाने के लिए जरुरी है कि अगर कोई अभियुक्त छूटता है और पुलिस के चार्जसीट फर्जी निकलती है तो ऐसे में राज्य को ऐसे पुलिस अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने और दंड देने की गारंटी करनी चाहिए। जो पुलिस वाले ऐसी घटनाओं में झूठी गवाही देते हैं उन पर फर्जी गवाही देने का मुकदमा चलाया जाना चाहिए।
-राजीव यादव
लोकसंघर्ष पत्रिका में जल्द प्रकाशित
23.8.09
लो क सं घ र्ष !: यूपी एसटीएफ का एक और कारनामा
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