रविवार, ३० अगस्त की जनसत्ता में अपने कालम कभी-कभार में अशोक वाजपेयी ने सवाल उठाया है की बरसों जवाहर लाल नेहरू विश्वविधालय में सेवारत नामवर सिंह भारतीय जनता पार्टी के नेता जसवंत सिंह की पुस्तक समारोह में क्यों गए। इसे राजस्थान के पुराने सम्बन्ध , लोकतांत्रिकता आदि कह कर समझाया जा सकता है। लेकिन अभी कुछ दिन पहले वामपंथी लेखकों ने एकजुट हो कर उदय प्रकाश के विरूद्व अभियान छेडा था की वे एक ऐसे मंच पर गए , जहाँ भाजपा का सांसद मौजूद था। अब जसवंत सिंह न तो कोई सार्वजनिक बुद्धिजीवी है और न ही इतिहासकार या लेखक । उनकी बुनियादी छवि भाजपा नेता की थी जो अब भूतपूर्व हो गई है। नामवर जी के इस आचरण को ले कर चुप्पी क्यों है?
अशोक वाजपेयी का सवाल जायज है, यद्पी उदय प्रकाश के मामले में और इस मामले में अन्तर है। किंतु ये सवाल तो अपनी जगह है ही की नामवर सिंह जी एक भाजपा नेता की पुस्तक विमोचन समारोह में क्यों गए थे। अशोक वाजपेयी ने प्रगतिशीलों की इस चुप्पी परकई आरोप लगाये है । नामवर सिंह जी को इसका जवाब देना चाहिए।
31.8.09
नायक और खलनायक
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